राजा ययाति का अनुभव-
एक बार की बात है दैत्यों के राजा की पुत्री शर्मिष्ठा और गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी अपनी सखियों के साथ घूम रही थी। दोनों एक दूसरे से सुंदरता के मामले में कम नहीं थी। वे अपने वस्त्र उतारकर स्नान करने लगी। बाद में भूल से शर्मिष्ठा ने देवयानी के वस्त्र पहन लिए। इस पर देवयानी क्रोधित हो गई और खूब भला बुरा कहा। इससे शर्मिष्ठा ने अपमान से तिलमिलाकर देवयानी के वस्त्र छीन कर उसे कुएं में धकेल दिया।
शर्मिष्ठा के चले जाने के पश्चात राजा ययाति शिकार करते हुए वहां पहुंचे और उन्होंने देवयानी को वस्त्र दिए और कुएं से बाहर निकाला।
शुक्राचार्य (दैत्यों के गुरु) को यह पता चला तो वे दैत्यों से रूष्ठ हो गए। बड़ी मुश्किल से शुक्राचार्य का क्रोध शांत हुआ, बोले- मेरी बेटी को अगर प्रसन्न कर सको तो मैं भी प्रसन्न हो जाऊंगा। देवयानी को प्रसन्न करने के लिए दैत्यराज ने उससे कहा कि तुम जो भी मांगोगे, वह हम तुम्हें प्रदान करेंगे।
देवयानी ने कहा मुझे आपकी पुत्री शर्मिष्ठा... दासी के रूप में चाहिए। अपने परिवार पर आए संकट को टालने के लिए शर्मिष्ठा ने देवयानी की दासी बनना स्वीकार कर लिया।
शुक्राचार्य ने अपनी पुत्री देवयानी का विवाह राजा ययाति के साथ कर दिया। देवयानी के पुत्रवती होने पर शर्मिष्ठा ने भी पुत्र की कामना से राजा ययाति से प्रणय निवेदन किया। जिसे ययाति ने स्वीकार कर लिया।
राजा ययाति को देवयानी से 2 पुत्र व शर्मिष्ठा से 3 पुत्र प्राप्त हुए।
बाद में जब देवयानी को ययाति व शर्मिष्ठा के संबंध के विषय में पता चला तो वह क्रोधित होकर अपने पिता के पास चली गई। शुक्राचार्य ने राजा ययाति को बुलाकर कहा मैं तुझे श्राप देता हूं तुझे तत्काल वृद्धावस्था प्राप्त होगी।
राजा ययाति ने गिड़गिड़ा कर कहा मुझे इस शाप से मुक्त करो। मेरी अभी तृप्ति नहीं हुई है। इस अवस्था के कारण तो आप की पुत्री का भी अहित है। कुछ विचार करके शुक्राचार्य जी ने कहा यदि कोई तुझे प्रसन्नता पूर्वक अपनी यौवन अवस्था दे दे तो तुम उसके साथ अपनी वृद्धा अवस्था को बदल सकते हो ।
उनके पांच बेटे थे, चार बड़े बेटों
के मना करने पर सबसे छोटे पुत्र पुरु ने उन्हें अपना यौवन दिया व उनका
बुढ़ापा ले लिया।
पुनः युवा होकर ययाति ने फिर से भोग भोगना शुरु
किया। एक हजार वर्ष तक भोग भोगने के बाद भी भोगों से जब संतुष्ट नहीं हुआ
तो उसने अपना बचा हुआ यौवन अपने पुत्र पुरु को लौटाते हुए कहा-
'पुत्र!
मैंने तुम्हारी जवानी लेकर अपनी रुचि, उत्साह और समय के अनुसार विषयों का
सेवन किया लेकिन विषयों की कामना उनके उपभोग से कभी शांत नहीं होती, अपितु
घी की आहुति पड़ने पर अग्नि की भांति वह अधिकाधिक बढ़ती ही जाती है।
रत्नों
से जड़ी हुई सारी पृथ्वी, संसार का सारा सुवर्ण (सोना) पशु और सुंदर
स्त्रियां ये सब एक पुरुष को मिल जाएं तो भी वे सबके सब उसके लिए पर्याप्त
नहीं होंगे। अतः तृष्णा का त्याग कर देना चाहिए।
तृष्णा का रोग
प्राणघातक रोग है, तृष्णा का त्याग करना कठिन है। किंतु जो इस तृष्णा का
त्याग करता है वही पुरुष सुखी है।
ययाति आगे कहता है- पुत्र! देखो, मेरे एक हजार
वर्ष विषयों को भोगने में बीत गए तो भी तृष्णा शांत नहीं हुई और आज भी
प्रतिदिन उन विषयों के लिए ही तृष्णा पैदा होती है।
इसलिए पुत्र! अब
मैं विषयों को छोड़कर ब्रह्माभ्यास में मन लगाऊंगा। ममतारहित होकर मृगों
के साथ विचरुंगा। हे पुत्र! मैं तुम पर प्रसन्न हूं। अब तुम अपनी जवानी पुनः
प्राप्त करो और मैं यह राज्य भी तुम्हें ही अर्पण करता हूं।
इस
प्रकार अपने पुरु को राज्य देकर ययाति ने तपस्या हेतु वनगमन किया। उसी राजा
पुरु से पुरु वंश चला।
RAAJA YAYAATI KA ANUBHAV
Punah yuva hokar yayaati ne phir
se bhog bhogana shuru kiya. Ek hajaar varsh tak bhog bhogane ke baad
bhee bhogon se jab santusht nahin hua to usane apana bacha hua yauvan
apane putr Puru ko lautaate hue kaha-
Putr! mainne tumhaaree
javaanee lekar apanee ruchi, utsaah aur samay ke anusaar vishayon ka
sevan kiya lekin vishayon kee kaamana unake upabhog se kabhee shaant
nahin hotee, apitu ghee kee aahuti padane par agni kee bhaanti vah
adhikaadhik badhatee hee jaatee hai.
Ratnon se jadee huee saaree
prthvee, sansaar ka saara suvarn (sona) pashu aur sundar striyaan ye sab
ek purush ko mil jaen to bhee ve sabake sab usake lie paryaapt nahin
honge. Atah trshna ka tyaag kar dena chaahie.
Trshna ka rog
praanaghaatak rog hai, Trshna ka tyaag karana kathin hai. Kintu jo is
trshna ka tyaag karata hai vahee purush sukhee hai. Yayaati ka anubhav
bada maarmik aur manushy jaati ke lie hitakaaree hai.
Yayaati
aage kahata hai- Putr! dekho, mere ek hajaar varsh vishayon ko bhogane
mein beet gae to bhee trshna shaant nahin huee aur aaj bhee pratidin un
vishayon ke lie hee trshna paida hotee hai.
Isalie putr! ab main
vishayon ko chhodakar brahmaabhyaas mein man lagaoonga. Mamataarahit
hokar mrgon ke saath vicharunga. He putr! main tum par prasann hoon. Ab
tum apanee javaanee punah praapt karo aur main yah raajy bhee tumhen hee
arpan karata hoon.
Is prakaar apane puru ko raajy dekar yayaati
ne tapasya hetu vanagaman kiya. Usee raaja puru se puru vansh chala.
Usee vansh mein pareekshit ka putr raaja Janmejay paida hua tha.
SARAL VICHAR
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