Ticker

7/recent/ticker-posts

नालायक | NALAYAK | (HINDI STORY) Worthless In Hindi By Saral Vichar

नालायक | Worthless In Hindi By Saral Vichar


देर रात अचानक ही पिता जी की तबियत बिगड़ गयी। आहट पाते ही उनका नालायक बेटा उनके सामने था। माँ ड्राईवर बुलाने की बात कह रही थी पर उसने सोचा अब इतनी रात को इतनी जल्दी ड्राईवर कहाँ आ पायेगा? यह कहते हुये उसने सहज जिद और अपने मजबूत कंधो के सहारे बाऊजी को कार में बिठाया और तेज़ी से हॉस्पिटल की ओर भागा।

बाउजी दर्द से कराहने के साथ ही उसे डांट भी रहे थे - "धीरे चला नालायक, एक काम जो इससे ठीक से हो जाए।"

नालायक बोला - "आप ज्यादा बातें ना करें बाउजी, बस तेज़ साँसें लेते रहिये, हम हॉस्पिटल पहुँचने वाले हैं।"

अस्पताल पहुँचकर उन्हे डाक्टरों की निगरानी में सौंप वो बाहर चहलकदमी करने लगा।

बचपन से आज तक अपने लिये वो नालायक ही सुनते आया था। उसने भी कहीं न कहीं अपने मन में यह स्वीकार कर लिया था कि उसका नाम ही शायद नालायक है तभी तो स्कूल के समय से ही घर के लगभग सब लोग कहते थे कि नालायक फिर से फेल हो गया। नालायक को अपने यहाँ कोई चपरासी भी ना रखे। कोई बेवकूफ ही इस नालायक को अपनी बेटी देगा।

शादी होने के बाद भी वक्त बेवक्त सब कहते रहते हैं कि इस बेचारी के भाग्य फूटे थे जो इस नालायक के पल्ले पड़ गयी।

हाँ बस एक माँ ही है जिसने उसके वास्तविक नाम को अब तक जीवित रखा है पर आज अगर उसके बाउजी को कुछ हो गया तो शायद वे भी! इस ख़याल के आते ही उसकी आँखे छलक गयी और वो उनके लिये हॉस्पिटल में बने एक मंदिर में प्रार्थना में डूब गया। प्रार्थना में शक्ति थी या समस्या मामूली, डाक्टरों ने सुबह-सुबह ही बाऊजी को घर जाने की अनुमति दे दी।

घर लौटकर उनके कमरे में छोड़ते हुये बाऊजी एक बार फिर चीखे "छोड़ नालायक! तुझे तो लगा होगा कि बूढ़ा अब लौटेगा ही नहीं।"

उदास वो उस कमरे से निकला तो माँ से अब रहा नहीं गया, "इतना सब तो करता है, बावजूद इसके आपके लिये वो नालायक ही है? विवेक और विशाल दोनो अभी तक सोये हुए हैं। उन्हें तो अंदाजा तक नही हैं कि रात को क्या हुआ होगा? बहुओं ने भी शायद उन्हें बताना उचित नही समझा होगा। यह बिना आवाज दिये आ गया और किसी को भी परेशान नही किया। भगवान न करे कल को कुछ अनहोनी हो जाती तो?और आप हैं कि? उसे लज़्ज़ित करने और डांटने का एक भी अवसर नही छोड़ते!" कहते कहते माँ रोने लगी थी।

इस बार बाऊजी ने आश्चर्य भरी नजरों से उनकी ओर देखा और फिर नज़रें नीचीं कर ली।

माँ रोते रोते बोल रही थी - अरे, क्या कमी है हमारे बेटे में?? हाँ मानती हूँ पढाई में थोड़ा कमजोर था तो क्या? क्या सभी होशियार ही होते हैं? वो अपना परिवार, हम दोनों को, घर-मकान, पुश्तैनी कारोबार, रिश्तेदार और रिश्तेदारी सब कुछ तो बखूबी सम्भाल रहा है जबकि बाकी दोनों जिन्हें आप लायक समझते हैं वो बेटे केवल अपने बीबी और बच्चों के अतिरिक्त अधिक से अधिक अपने ससुराल का ध्यान रखते हैं। कभी पूछा आपसे कि आपकी तबियत कैसी है?? और आप हैं कि...

बाऊ जी बोले - सरला! तुम भी मेरी भावना नहीं समझ पाई? मेरे शब्द ही पकड़े न? क्या तुझे भी यहीं लगता हैं कि इतना सब के होने बाद भी इसे बेटा कहकर नहीं बुला पाने का, गले से नहीं लगा पाने का दुःख मुझे नही है? क्या मेरा दिल पत्थर का है? हाँ सरला! सच कहूँ, दुःख तो मुझे भी होता ही है पर उससे भी अधिक डर लगता है कि कहीं ये भी उनकी ही तरह लायक ना बन जाये इसलिए मैं इसे इसकी पूर्णता का अहसास इसे अपने जीते जी तो कभी नही होने दूंगा।

माँ चौंक गई!

ये क्या कह रहे हैं आप?

हाँ सरला! यहीं सच है। अब तुम चाहो तो इसे मेरा स्वार्थ ही कह लो। कहते हुये उन्होंने रोते हुए नजरें नीची किये हुए अपने हाथ माँ की ओर जोड़ दिये, जिसे माँ ने झट से अपनी हथेलियों में भर लिया और कहा अरे! अरे! ये आप क्या कर रहे हैं ? मुझे क्यो पाप का भागी बना रहे हैं। मेरी ही गलती है, मैं आपको इतने वर्षों में भी पूरी तरह नही समझ पाई और दूसरी ओर दरवाज़े पर वह नालायक खड़ा-खड़ा यह सारी बातचीत सुन रहा था। वो भी आंसुओं में तरबतर हो गया था। उसके मन में आया कि दौड़ कर अपने बाऊजी के गले से लग जाये पर ऐसा करते ही उसके बाऊजी झेंप जाते, यह सोच कर वो अपने कमरे की ओर दौड़ गया।

कमरे तक पहुँचा भी नही था की बाऊजी की आवाज कानों में पड़ी - अरे नालायक! वो दवाईयाँ कहां रख दी? गाड़ी में ही छोड़ दीं क्या? कितना भी समझा दो! इससे एक काम भी ठीक से नहीं होता।

नालायक झटपट आँसू पौंछते हुये गाड़ी से दवाईयाँ निकाल कर बाऊजी के कमरे की ओर दौड़ गया।

लेखक- अज्ञात

एक टिप्पणी भेजें (POST COMMENT)

0 टिप्पणियाँ