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कैसे एक बच्चे के कारण Teacher की जिंदगी बदल गई ( TRUE STORY) | Kaise Ek Bache Ke Karan Teacher Ki Jindagi Badal Gyi | How A Child Changed A Coach's Life (True Story) In Hindi By Saral Vichar


कैसे एक बच्चे के कारण Teacher की जिंदगी बदल गई ( TRUE STORY) | How A Child Changed A Coach's Life (True Story) In Hindi By Saral Vichar


मैं पूना के एक इंस्टिट्यूट में जिंदगी को कैसे जीएं, या यह कहें कि लोगों को motivated (प्रेरित) करने की कोशिश करता हूं। जब 20-22 साल पहले में यहां आया तो मेरी मुलाकात योगेश नाम के लड़के से हुई। हमारी क्लास छोटी सी थी। 20.25 लोग बैठ सकते थे। योगेश बिल्कुल सफेद रंग का था। बाल भी सफेद थे। शायद यह कोई बिमारी होती है जिसमें सारा जिस्म सफेद हो जाता है। वह लड़का योगेश आंखों पर मोटा चश्मा पहनता था, जैसे सोडा वॉटर की बोतल का कांच होता है । उसके चश्मे का कांच बिल्कुल उस कांच की तरह मोटा था। सभी ने उसका नाम ही सोडा वॉटर बॉटल रख दिया था। 

वह पहली पंक्ति में बैठता था। सभी उसका मजाक उड़ाते थे क्योंकि हम कुछ पढ़ने के लिए देते थे तो वह आंखों के एकदम पास रखकर, एकदम नजदीक रखकर पढ़ता था। वह सबसे पहले क्लास में आता, और सबसे आखिर में क्लास से जाता था ।
बीच में 10.15 मिनट का ब्रेक होता था तो वह अपने बैग में से टिफिन निकालकर वहीं बेंच पर खाता था । कोई उससे बात करता तो वह उससे अच्छी तरह बात करता किंतु वह खुद किसी के पास जाकर बात नहीं करता था। हमें कभी टाईम ही नहीं मिला या यों कहो कि कभी हमने ध्यान ही नहीं दिया कि वह ऐसा क्यों है।

एक बार शनिवार को हम 7 लोग टीचर बैठे थे । कुछ ऐसे ही क्लास के बारे में बात कर रहे थे कि हमें महसूस हुआ कि बाहर गेट पर कोई है। बाहर देखा तो योगेश खड़ा था। रात के साढ़े नौ बजे क्लास खत्म हो चुकी थी। अभी दस बजे थे। रात के 10 बजने के बाद हमारा मन नहीं होता था कि किसी से मिलकर उसकी समस्या सुलझाएं। किंतु उसने कहा कि उसे आज ही बात करनी है। कल संडे है तो क्लास बंद थी इसलिए वह आज ही कुछ जरुरी बात करना चाहता था। उन दिनों मोबाईल फोन का जमाना नहीं था। हां पेजर होते थे। 

हमारी इच्छा तो नहीं थी कि उससे बात करें किंतु उसकी आवाज में पता नहीं ऐसा क्या था कि हम ना नहीं कर सके। अगले 15 मिनट उसने बात की। उसने जो बात की, उसके बाद हममें से किसी की भी जिंदगी पहले जैसी नहीं रही हमारी.. या कह सकते हो, मेरी जिंदगी बदल गई।

उसने कहा- ये सच्चाई है कि मेरी आंखों से मुझे 90% दिखाई नहीं देता। मैं करीब-करीब अंधा हूं। आप लोगों में यहां कौन-कौन बैठा है मुझे नहीं मालूम। मुझे सिर्फ आउटलाईन ही दिखाई दे रही है। मैं पहली पंक्ति में इसलिए बैठता हूं ताकि आप लोग जो बोलें मुझे वह सुनाई दे । अगर पीछे बैठूंगा और पास वाला बात करेगा तो मुझे कुछ सुनाई नहीं देगा। आप जो शीट देते हैं पढ़ने के लिए, वह आंखों के इतने पास इसलिए रखता हूं ताकि लोगों को पता न चले कि मैं अंधा हूं। क्योंकि मैं जिंदगी में किसी से सहानुभूति की अपेक्षा नहीं रखता । ना ही किसी की मुझे सात्वंना चाहिए।
हमारी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। अंधा आदमी है और हमें दो महीने में पता ही नहीं चला। हमें आज तक समझ में क्यों नहीं आया? अब हमें सारी बातें समझ में आने लगी कि वह ब्रेक के वक्त बाहर क्यों नहीं जाता, क्योंकि इसे समझेगा ही नहीं कि कोई चीज कहां पड़ी है या आसपास कौन बैठा है ?
वह बोला- मैं बचपन से ऐसा नहीं हूं। 5 वीं कक्षा तक मुझे सब दिखता था । उसके बाद यह लिकोडर्मा नाम की बिमारी हो गई । 9 वीं कक्षा तक आते-आते मुझे सिर्फ बड़े अक्षर दिखते थे । 9 वीं कक्षा में मुझे जीरो मिला क्योंकि उसमें प्रश्न क्या थे यह मुझे समझ ही नहीं आया। घर में कुछ बताया नहीं था, क्योंकि मां-बाप परेशान हो जाएंगे यह सोचा। फेल हो गया तब मां- बाप को बताया । मां-बाप को गुस्सा नहीं आया। किंतु अफसोस जरुर हुआ । किंतु यह कहकर छोड़ दिया कि ऊपर वाले की मरजी के आगे किसका बस चला है। उन्होंने कहा- खाना खाओ और सो जाओ। उस रात करीब दो बजे डर के कारण उठ गया । शरीर इतनी ठंड में भी पसीने से तर-बतर था। मैं कांप रहा था ।

मैंने सपना देखा था कि मेरा ही परछाई मुझे कह रही था कि तेरी आंखें कमजोर हैं तो कोई लड़की तुझसे शादी नहीं करेगी। कोई तुम्हें नौकरी नहीं देगा । न मेरे पास पैसा था और न रंग-रुप था। पढ़ाई अच्छी हो या अपना धंधा हो तो भी किसी तरह जिंदगी गुजर जाती । मेरा ही अक्स मुझे डॉंट रहा था। कि कब तक मां-बाप पर बोझ बनोगे?
मैंने सोचा अगर मुझे दिखता नहीं है यह कहकर बहाना बनाकर बैठूंगा तो अपना ही नुकसान करूंगा।
यह कहकर मैं कितने दिन जीवन से भागूंगा। मैंने सोचा अगर मुझे दिखाई नहीं देता है तो मुझे दूसरों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। क्योंकि मेरी भी इच्छा थी कि मैं भी अच्छा जीवन जीऊं। उस दिन मैंने निर्णय लिया कि मेरे जीवन को आगे बढ़ाने के लिए मेरी आंखें बाधा नहीं बन सकतीं।
आप लोगों को पता है लोग एक शब्द कहते हैं- ओह! बेचारा... । 
लोग सहानुभूति में ये कहते हैं। कुछ लोगों को यह शब्द सुनने की आदत हो जाती है। फिर उन्हें कोई भी मिलता है तो पकड़-पकड़ कर लोगों को अपनी तकलीफ सुनाते हैं क्योंकि उन्हें बेचारा शब्द सुनना अच्छा लगता है। 
मान लो किसी भाई ने दूसरे भाई के साथ अन्याय किया तो वह लोगों को बार-बार सुनाता है। क्योंकि लोग उससे सहानुभूति करते हैं और उसे अच्छा लगता है। किंतु योगेश इस श्रेणी में नहीं था।
योगेश ने सोचा कि मैं मेहनत ज्यादा करूंगा। मैं देख नहीं सकता तो क्या हुआ? मैं सुन तो सकता हूं। मैं अपने कानों से ही पढ़ेगा। दूसरे दिन जबरदस्ती वह अपने मां-बाप को प्रिंसिपल के पास ले गया। प्रिंसीपल के कहने पर उसने स्कूल में अर्जी दी कि क्या मुझे परिक्षा में किसी आदमी की मदद मिलेगी कि वह आदमी प्रश्न पढ़े और इसके उत्तर देने पर वह आदमी इसके कहे अनुसार पेपर लिखे । 
वह अर्जी रिजेक्ट हो गई। किंतु उससे एक बात कही गई कि वह अपने उत्तर हमें कैसेट में अपनी आवाज में रिकार्ड करके दो, क्योंकि आप जो आन्सर (उत्तर) दोगे अगर सामने वाला आदमी उस तरह से नहीं लिखेगा तो भी तुम्हें परेशानी होगी।
उसने जेमिट्री तक को अपने मुंह से बोला । उसके हिसाब से उसे मार्क मिले और वह अपनी कक्षा में 9 रेंक पर आया । लोगों ने वाह-वाह की तो उसे विश्वास हो गया कि वह आंखों के बिना भी पढ़ सकता है। इसी तरह उसने 12 वीं कक्षा उत्तीर्ण की । 12 वीं में वह पूरे बोर्ड में दूसरे २nd नं. पर आया। वह अंधा नहीं था । 10% देख सकता था। फिर उसने MBA करने का सोचा । 
सबने उससे पूछा कि एम.बी.ए. ही क्यों? तो वह बोला कि मैं डॉक्टर, चॉर्टेट अकांऊटेट या इंजिनियर तो नहीं बन सकता, क्योंकि उनमें भी आंखों की आवश्यकता होती है। हां, मैं मैनेजमेंट कर सकता हूं। उसने एम.बी. ए. किया और पूरे कंट्री में पहला नंबर आया तो बाहर से उसको इंन्टरव्यू का लैटर आया। 
वैसे तो इन्टरव्यू के लिए पूछा जाता है कि हम आपको एडमिशन क्यों दें? किंतु उसने उन लोगों से पूछा कि मैं आपके ही कॉलेज में एडमिशन क्यों लूं? मुझे तो बेहतर से बेहतर कॉलेज मिल रहे हैं।
उसने अहमदाबाद में अपनी पढ़ाई पूरी की और इंन्टरनेशनल कंपनी ने चेन्नई फैक्टरी में काम दिया।
वह कपड़े की फैक्टरी थी। कपड़े में स्पर्श (tuch) का काम होता है। आंखें न होने के कारण उसके कान और हाथ शार्प हो गए थे। वह स्पर्श से बता देता था कि कपड़ा अच्छा है या नहीं। पहले वह चेन्नई में इंचार्ज था। आज उसे नेशनल हेड का प्रपोज़ल मिला था । उस दिन योगेश शाम को इसलिए ही रुका था और हमसे पूछना चाहता था कि मेरी कंपनी मुझे प्रमोट करना चाहती है, कंपनी उसे पूरे बांग्लादेश का इंचार्ज बनाना चाहती थी।
वहां का हेड बनना इसके लिए बहुत बड़ी बात थी। यहां उसका वेतन साढ़े तीन लाख था। वहां उसे 12 लाख रुपए मिलना तय हुआ था । 20 साल पहले 12 लाख की नौकरी बहुत बड़ी बात थी ।
यह पूरी कहानी सुनाने के बाद योगेश ने कहा कि मुझे आप लोगों पर बहुत विश्वास है। मुझे आप बताईए कि मैं वहां जाऊं या न जाऊं? क्योंकि परसों सोमवार को ही मुझे बांग्लादेश जाना है।
मैं पिछले कई सालों से लोगों को ट्रेनिंग दे रहा था। किंतु पहली बार हमने उससे कहा कि - तुम कोर्स छोड़ दो। उसे 90% दिखाई नहीं देता था, इस हालात में शायद ही कोई दूसरी कंपनी ऐसा ऑफर दे या न दे, इसका विश्वास हमें नहीं था। जाने से पहले योगेश ने कहा कि अगर रास्ते में चलते हुए कभी भेंट हो जाए तो मुझे आवाज जरुर देना मैं      आपसे जरुर मिलूंगा। क्योंकि मैं आपको नहीं पहचान पाऊंगा।
वह चला गया और जिंदगी भर के लिए हमें बहुत बड़ी सीख देकर गया । 

कभी इंसान के साथ बहुत बड़े हादसे होते हैं। कुछ ऐसा हो जाता है जो हमारे काबू में नहीं होता । जब साधारण लोगों को देखते हैं तो लगता है हमारे साथ बहुत बुरा हुआ। लगता है जो सबके पास है, वह मेरे पास नहीं है। अफसोस होता है... लड़ने का मन करता है। किंतु किस पर चिल्लाएं?
उस समय एक ही विकल्प होता है, उदास हो जाओ, और बेचारा शब्द सुनने की आदत डाल दो । 
दूसरा वह आदमी होता है जो बेचारा शब्द सुनने की बिल्कुल अपेक्षा न करे ।
अपने बारे में किसी को ऐसा मत बताओ कि कोई बेचारा कहे। लेकिन खुद को जिंदगी में मजबूत बना लो, इतना बुलंद कर लो कि जिंदगी में जो चाहिए, वह तुम्हें मिले।
मुझे अफसोस इस बात का है कि मुझे यह भी पता नहीं चला कि योगेश का सरनेम क्या है? क्लास का एक बच्चा था, चला गया। उस समय तो न इंटरनेट था न फेसबुक । आज उसे ढूंढना चाहूं तो कैसे ढूंढू? हां, यह उम्मीद करता हूं कि एक बार वह जरुर मिले। मैं उससे यही कहूंगा कि तुमने तो अपने मन की बात कह दी, किंतु उससे हमारी जिंदगी पर जो असर हुआ वह तुम्हें नहीं मालूम। 
आज अगर कभी जिंदगी में लगता है कि मैं यह काम नहीं कर पाऊंगा तो योगेश की याद आती है और उस समय अपने आप से पूछता हूं कि योगेश के अंदर वह क्या ताकत थी? वह इतना आगे नहीं बढ़ता इतनी तरक्की नहीं भी करता तो भी लोग उससे कुछ नहीं कहते, पर उसे यह गवारा नहीं था ।

नरेंद्र गोईदानी


सरल विचार 

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