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अंतिमदर्शन | ANTIM DARSHAN | Last Sight In Hindi By Saral Vichar


अंतिमदर्शन | ANTIM DARSHAN | Last Sight In Hindi By Saral Vichar-Artist is Joao Borges..

चारों ओर विषैली गंध फैली थी। भीड़ मुँह ढके सारा मंजर चुप चाप देख और सुन रही थी..परंतु कह कोई कुछ नहीं रहा था..बस एक दूसरे को शांत नज़रों से देखे जा रहा था...

नगर पालिका की मुर्दा गाड़ी वर्मा जी के दरवाजे पे आकर लगी थी..


किसी ने वर्मा जी की पत्नी के मरने की खबर नगरपालिका को कर रखी थी शायद..

नगर पालिका वाले उनका अंतिम संस्कार करना चाह रहे थे

परन्तु वर्मा जी थे की मान ही नहीं रहे थे..


और न ही स्ट्रेचर बॉय को अंदर कमरे में जाने दे रहे थे..जहाँ उनकी पत्नी का पार्थिव शरीर पड़ा था..


चलिए चच्चा हटिए...अब कोई नहीं आने वाला.....


चच्ची को ले जाने दिजिए...


हम भी ज्यादा देर तक नहीं रूक सकते हैं...


वैसे भी आज़ हमको बहुत काम है...


काम का लोड भी बहुत ज्यादा है...आज


स्ट्रेचर बॉय बार बार अपनी घड़ी देख रहा था..और कहे जा रहा था..


नहीं नहीं....


जरा रूको भाई...


वो आता ही होगा... वर्मा जी बाहर की तरफ इशारा करके बोले।


अरे विदेश से आ रहा है ना मेरा बेटा, आने में थोड़ा समय तो लगेगा ही न ...?


उसके रूखे व्यवहार के वावजूद वर्मा जी विनम्रतापूर्वक स्ट्रेचर बॉय से बार बार विनती कर रहे थे।


थोड़ी देर और रूक जाओ....


साथ मे बेटी और बच्चे भी हैं उसके...


कम से कम उन्हें अपनी माँ के अंतिमदर्शन तो कर लेने दो...


आखिर तुम भी तो किसी के बेटे हो..


यह कहकर वो व्याकुल नज़रों से दरवाजे की ओर देखने लगे...


वो बार बार दरवाजे की तरफ़ दौड़कर जाते और लौटकर भीतर कमरे में पड़ी अपनी पत्नी के पार्थिव शरीर से लिपट कर रोने लगते।


देखो अभी तक नहीं आए वो सब लोग..


तुम्हें तो बहुत विश्वास था ना...कुछ हो जाए तुम्हारी बेटी तुम्हें नहीं छोड़ सकती..एक ना एक दिन तो मेरे पास आएगी ही, आखिर कब तक अपनी माँ से दूर रहेगी..

बेटी को पढ़ाने लिखाने के लिए तुमने तो अपने सारे जेवर तक बेच दिए।

पर देखो तुम्हारे जीते जी तो नहीं आई वो..तुम्हारे मरने की खबर सुनकर भी लगता नहीं कि वो नहीं आ रही।


वो अपने बेटे और बेटी का दो दिन से इंतजार कर रहें थे।

लेकिन अभी तक वो लोग आए नहीं थे।


वर्मा जी ने बेटे और बेटी को जब से खबर की थी

कि उनकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही..

उस खबर के बाद न तो उनके बेटे का फोन लग रहा था और न ही बेटी का।


दोनों के फोन लगातार स्विचऑफ बता रहे थे।


हालांकि माँ के मरने की खबर सुनकर बेटे ने कहा जरूर था कि टिकट लेकर आज शाम को ही निकलता हूँ...कल सुबह तक आ जाऊँगा..बहू और रास्ते में दीदी भी साथ होगी।


लेकिन अब तक नहीं आया था..तीन दिन हो गए आज ।


अब तक तक तो आ जाना चाहिए था उसे..और छोटी को।

आखिर कब तक पत्नी के पार्थिव शरीर को इस तरह रोके रखे रहें।

उनकी आत्मा बच्चों को सोच तड़प रही थी।


जिन हाथों ने उँगली पकड़कर उन्हें चलना ‍सिखाया, जिन काँधों ने बचपन में सहारा दिया, आज वही माँ बाप बेटे बेटी के लिए जी का जंजाल बन गए थे। एक बार मुड़कर ताकना तक गवारा नहीं समझा दोनों ने।


जिन हाथों को बुढ़ापे में अपने थर्राते पिता के हाथों को थामकर उनका सहारा बनना था,

आज वही बेटा उन्हें बुढ़ापे में मरता छोड़कर विदेश बैठा था।


और बेटी की तो क्या कहें..कहा जाता है कि एक मां-बाप को सहारे के लिए बेटियां वरदान होती हैं। एक ही कोख से जन्म लेने वाले दो औलादों में बेटा मां-बाप को ठुकरा सकता है, लेकिन बेटियां अपने माता-पिता का बुरा कभी नहीं चाहती। लेकिन आज..बेटे को छोड़ उनकी बेटी भी उनकी परवरिश को गलत साबित कर रही थी।


वर्मा जी पत्नी का सर गोद में लिए रोए जा रहे थे, साथ ही साथ मरी पत्नी से बातें किए जा रहें थे।


उनके मुर्झाए चेहरे पर चिंता और वेदना की लकीरें कोने कोने पसरी थी।


अच्छा हुआ कि तुम मुझसे पहले मर गई....

मैं तो यही सोच कर हलकान और परेशान रहता था कि मेरे बाद तुम्हारा क्या होगा।

मैं हरदम सोचता था कहीं मैं पहले मर गया तो कौन ध्यान रखेगा तुम्हारा।

अब कम से कम तुम्हारी चिंता तो नहीं रहेगी मुझे। फिर मेरा क्या है... मैं तो यूँ भी जिंदा होकर भी लाश ही हूँ और मुझे लाश बनाया है तुम्हारी अंधी ममता ने.... जिसकी आज किश्त भर रहा हूँ मैं.. कहकर पत्नी को सीने लगाकर रोने लगे।


तभी स्ट्रेचर बॉय की आवाज ने उनका ध्यान भंग किया।


स्ट्रेचर बॉय लगभग खिसियाहट भरे लहजे में कहने लगा

हटिए भी चाचा..अब ले जाने दीजिए।

कोई नहीं आएगा तुम्हारा अब ...मुझको ही अपना बेटा समझ लो और चच्ची को ले जाने दो।


वर्मा जी ने भी मानों नियति से हार मान ली हो जैसे... 


उनके न न करते करते भी स्ट्रेचर बॉय कमरे के अन्दर  घुस गया।


लेकिन अगले ही पल..आश्चर्य से उसकी कदम पीछे हो गए....बिस्तर पर एक नहीं दो मृत शरीर पड़े थे।

सड़ी सिकुड़ी दो लाश और एक दूसरे को सीने से लगाये। एक की नजरें खिड़की से बाहर तक रही थी.. और दूसरे की नजरें उसको तक रही थी।


एक लाश वर्मा जी की पत्नी की थी और दूसरी उनकी खुद की।


स्ट्रेचर बॉय की नज़रें वर्मा जी को ढूँढ रही थी लेकिन वो कहीं नहीं थे।


सच का एहसास होने के बाद स्ट्रेचर बॉय की रूह काँप गई कि वो इतनी देर से वर्मा जी नहीं बल्की उनकी आत्मा से बातें किए जा रहा था।


इतनी देर वर्मा जी की आत्मा ने उसका रस्ता रोक रखा था... और मानो सुनिश्चित करना चाहतें हो कि उनका अंतिम संस्कार उनका बेटा ही करे।

और स्ट्रेचर बॉय के मुझे अपना बेटा मान लो कहते ही निश्चिंत होकर चल दिए हों।


दूसरी तरफ़ बूढ़े मां-बाप को उनके जवान बच्च्चों के इस तरह मरता छोड़ जाने से पूरे मुहल्ले की आंखें दर्द से छलछला रही थी..सबकी आँखें नम थी।

हाँ ये अलग बात थी जो किसी ने लाश को छुआ तक नहीं था और न ही उन दोनों के अंतिम स्नान और कर्म की जहमत उठाने की कोशिश की थी।


अकेला स्ट्रेचर बॉय वेदना में डूबा अपना कर्म कर रहा था। आज वो मुर्दों की बस्ती से दो मुर्दे साथ ले जा रहा था.... क्रियाक्रम करने के लिए..


क्योंकि और कुछ न सही वर्मा जी का अंतिमदर्शन तो सिर्फ़ उसने ही किया था...फिर चाहे उनकी आत्मा का ही सही..


दोनों की लाश जलाते स्ट्रेचर बॉय मन ही मन सोच रहा था कि कैसे अभागे माता पिता हैं दोनों। दुनिया पितृ_दिवस और मातृ_दिवस मनाती रहती है और इन्हें मरकर भी उनके बच्चों के हाथों मुखाग्नि तक नसीब नहीं...


बृजपाल मलिक -साझा रचनाकार


सरल विचार 


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