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शुक्रगुज़ार | SHUKRAGUJAR | THANKFUL | SARAL VICHAR

 शुक्रगुज़ार

शुक्रगुज़ार  | THANKFUL - www.saralvichar.in


भगवान की बक्शी हर नेमत का तहे दिल से शुक्रगुज़ार होना चाहिए। अपनी बेटी का स्कूल में नया-नया दाखिला कराया था । एक दिन उसके स्कूल में कविता गायन की प्रतियोगिता थी। चूंकि वह बोलने में काफी होशियार है, मैंने उसे बहुत अच्छी कविता याद करवाई । कविता से संबंधित कुछ चित्र भी मैंने उसे एक चार्ट पर चिपकाकर दिए और उसे प्रौप के रुप में इस्तेमाल करने को कहा । मुझे उसके प्रथम आने की पूरी उम्मीद थी।

प्रतियोगिता के दिन स्कूल की छुट्टी होने के बाद में जब उसे कक्षा में लेने गई
। वहां उसकी अध्यापिका मुझसे बोली, क्लास में तो सबसे अच्छा सुना रही थी, लेकिन स्टेज पर जाकर जाने इसे क्या हो गया था? यह अचानक रोने लगी और मैं इसे स्टेज से नीचे ले आई ।

मैं हैरान भी थी और दुःखी भी। मैंने बेटी को बहुत डांट लगाई। तभी उसकी कक्षा की एक लड़की हमारे पास आकर खड़ी हो गई और मेरी बेटी के आंसू पोंछने लगी । उसका अपनी बेटी के प्रति ऐसा लाड़ देखकर मैंने उससे पूछा, बेटा, आपने कौन-सी कविता सुनाई थी? उसी समय उसकी टीचर वहां आई और बोली- इसका नाम सचि है और यह जन्म से ही मूक-बधिर है। पढ़ने का शौक बहुत है, इसलिए स्कूल आ जाती है।

यह सुनकर जैसे मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई और मैं सोचने लगी कि हम क्यों हमेशा अपने बच्चों को प्रथम आने का दबाव डालते हैं... हमेशा उनके पीछे पड़े रहते हैं... प्रतियोगिता में हिस्सा लेना छोटी बात नहीं, जबकि कुछ बच्चे चाहकर भी उस प्रतियोगिता का हिस्सा नहीं बन पाते।

-अंजू बहल

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