दूसरों को सही-गलत साबित करने में जल्दबाजी न करें
पहली कहानी
ट्रेन में एक पिता-पुत्र सफर कर रहे थे। 24 वर्षीय पुत्र खिड़़की से बाहर देख रहा था, अचानक वो चिल्लाया – पापा देखो पेड़ पीछे की ओर भाग रहे हैं...
पिता कुछ बोला नहीं, बस सुनकर मुस्कुरा दिया। ये देखकर बगल में बैठे एक युवा दम्पति को अजीब लगा और उस लड़़के के बचकाने व्यवहार पर दया भी आई।
तब तक वो लड़़का फिर से बोला – पापा देखो बादल हमारे साथ दौड़ रहे हैं ।
युवा दम्पति से रहा नहीं गया और वो उसके पिता से बोल पड़े़ – आप अपने लड़़के को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते ?
लड़के का पिता मुस्कुराया और बोला – हमने दिखाया था और हम अभी सीधे हॉस्पिटल से ही आ रहे हैं। मेरा लड़का जन्म से अंधा था और आज वो यह दुनिया पहली बार देख रहा है।
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दूसरी कहानी
एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी। कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया। जहाज पर एक युवा दम्पति थे। जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है। इस मौके पर आदमी ने औरत को छोड़ दिया और नाव पर कूद गया। डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा- _______?
अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ?
ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूं ! I hate you !
प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हें क्या लगता है ?
वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना । प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लड़के से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ? लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी। प्रोफेसर ने दु:खपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है। प्रोफेसर ने कहानी आगे बड़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना बाकि जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया। कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक डायरी मिली। डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे तो उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे। ऐसे कठिन मौके पर
एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे, जो कि इस प्रकार थी –
एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी। कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया। जहाज पर एक युवा दम्पति थे। जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है। इस मौके पर आदमी ने औरत को छोड़ दिया और नाव पर कूद गया।
डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा- _______?
अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ?
ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूं ! I hate you !
प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हें क्या लगता है ?
वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना ।
प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लड़के से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ?
लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी।
प्रोफेसर ने दु:खपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है।
प्रोफेसर ने कहानी आगे बढ़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना बाकि जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया। उसने अपनी पत्नी की यादों को संजोकर रखा और अपनी बेटी को उसकी माँ की ममता और त्याग के बारे में बताता रहा।
जब लड़की थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे पड़ोसियों या रिश्तेदारों से धीरे-धीरे यह पता चलने लगा कि उसके पिता उस भयानक रात उसकी माँ को जहाज पर अकेला छोड़कर लाइफबोट पर कूद गए थे।
यह सुनकर लड़की के मन में अपने पिता के प्रति गहरी नफरत पैदा हो गई। उसे लगने लगा कि उसके पिता ने अपनी जान बचाने के लिए उसकी माँ के साथ विश्वासघात किया। वह उनसे दूर रहने लगी और उनके प्रति कठोर व्यवहार करने लगी। पिता अपनी बेटी के बदलते व्यवहार से बहुत दुखी थे, लेकिन उन्होंने कभी अपनी सफाई में कुछ नहीं कहा। वह अपनी पत्नी के आखिरी शब्दों को निभाते हुए अपनी बेटी की परवरिश में लगे रहे।
कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया, तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक पुरानी डायरी मिली। डायरी के पन्ने पीले पड़ चुके थे और उनकी लिखावट धुंधली हो गई थी। उत्सुकतावश लड़की ने डायरी खोलकर पढ़ना शुरू किया।
डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे तो उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे। डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया था।
ऐसे कठिन मौके पर उसके पिता ने एक कड़ा निर्णय लिया था। उन्होंने डायरी में लिखा था – "मेरी प्यारी पत्नी, तुम्हारे बिना मेरे जीवन का कोई अर्थ नहीं। मेरा मन तो करता था कि मैं भी तुम्हारे साथ ही समंदर में समा जाऊं। लेकिन हमारी संतान, हमारी बेटी का ख्याल मुझे तुम्हारी यादों के सहारे इस दुनिया में रहने के लिए मजबूर कर रहा है। तुम्हारी आखिरी इच्छा मेरे लिए सर्वोपरि है। मैं वादा करता हूँ कि मैं हमारी बेटी का हमेशा ख्याल रखूंगा और उसे तुम्हारी कमी महसूस नहीं होने दूंगा।"
डायरी के आखिरी पन्नों पर उसकी माँ की बीमारी और उसके दर्द का वर्णन था। उसके पिता ने लिखा था कि कैसे उसकी माँ अपनी बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित थी और उसने ही अपने पति से कहा था कि अगर ऐसी कोई स्थिति आती है तो वह बच्चे का ध्यान रखे।
जब प्रोफेसर ने कहानी समाप्त की, तो पूरी क्लास में शांति थी। लड़की को अपनी गलती का एहसास हो चुका था। उसे समझ आ गया था कि उसके पिता ने उसकी माँ को छोड़ा नहीं था, बल्कि उसकी माँ की आखिरी इच्छा का पालन किया था। उसकी नफरत पश्चाताप में बदल गई और उसे अपने पिता के त्याग और प्रेम का गहरा अनुभव हुआ। अब उसे समझ आया कि उसके पिता ने अकेले रहकर उसे क्यों पाला और क्यों कभी अपनी सफाई नहीं दी। वह अपनी माँ के आखिरी शब्दों और अपने पिता के बलिदान को समझ चुकी थी।
* इस संसार में कईयों सही गलत बातें हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी कई जटिलतायें हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं। इसीलिए ऊपरी सतह से देखकर बिना गहराई को जाने-समझे हर परिस्थिति का एकदम सही आकलन नहीं किया जा सकता।
* कलह होने पर जो पहले माफ़ी मांगे, जरुरी नहीं उसी की गलती हो। हो सकता है वो रिश्ते को बनाये रखना ज्यादा महत्वपूर्ण समझता हो।
* दोस्तों के साथ खाते-पीते, पार्टी करते समय जो दोस्त बिल पे करता है, जरुरी नहीं उसकी जेब नोटों से ठसाठस भरी हो। हो सकता है उसके लिए दोस्ती के सामने पैसों की अहमियत कम हो।
* जो लोग आपकी मदद करते हैं, जरुरी नहीं वो आपके एहसानों के बोझ तले दबे हों। वो आपकी मदद करते हैं क्योंकि उनके दिलों में दयालुता और करुणा का निवास है।
* आजकल जीवन कठिन इसीलिए हो गया है क्योंकि हमने लोगों को समझना कम कर दिया और फौरी तौर पर judge करना शुरू कर दिया है। थोड़ी सी समझ और थोड़ी सी मानवता ही आपको सही रास्ता दिखा सकती है। जीवन में निर्णय लेने के कई ऐसे पल आयेंगे, सो अगली बार किसी पर भी अपने पूर्वाग्रह का ठप्पा लगाने से पहले विचार अवश्य करें।
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