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कर्म से नहीं, बंधन से बचो। | KARM SE NAHI, BANDHAN SE BACHO | SARAL VICHAR


सुधांशुजी महाराज

कर्म से नहीं, बंधन से बचो।

 कर्म से नहीं, बंधन से बचो। |  KARM SE NAHI, BANDHAN SE BACHO - www.saralvichar.in

ऐसा माना जाता है कि कर्म एक क्रिया है। लेकिन हर क्रिया कर्म नहीं है। जो कुछ भी मनुष्य करता है उसके बीज अंतःकरण पर अंकित होते हैं । शायद इस जन्म में वह अपना फल दे दे। जब तक वह फल नहीं देता वह खत्म नहीं होता । कहीं न कहीं चाहे इस जन्म में, चाहे अगले जन्म में वह सामने आता जरुर है। न एक बाप के बेटे एक जैसे हैं न एक गाय की बछिया एक जैसी दूध देनेवाली बनती है। न एक गुरु की कक्षा में पढ़नेवाले शिष्य एक जैसे टैलेंटेड होते हैं। एक जैसे मकान में रहकर भी सभी एक जैसा सुख नहीं भोग पाते ।

एक जैसा पद पाकर भी एक आदमी इज्जत पाता है तो दूसरा नहीं प्राप्त कर पाता । क्योंकि बाहर से आप कुछ भी कर लेना, किंतु जो व्यवस्था परमात्मा की है, जो कर्म का विधान है वह अपना कार्य करेगा ही ! एक समृद्ध मां-बाप की बेटियां समृद्ध घरों में बयाही गई हैं। एक बेटी खुश है, एक खुश नहीं है।

मां-बाप धन देकर बच्चे का भाग्य ऊंचा करने की कोशिश करते हैं कि हमने किस्मत बना दी उनकी । लेकिन किस्मत लिखनेवाला इंसान नहीं है। उस विधाता के लिखे अनुसार ही जीवन में परिस्थितीयां आती हैं। समृद्धी दी गई किंतु गरीब होने में देर नहीं लगेगी। कहीं संग ऐसा हो जाएगा कि वे आपको ऐसी जगह ले जाएंगे कि सारी दौलत हाथ से चली जाएगी । हमारा भाग्य निर्माता मनुष्य नहीं है। मनुष्य हमेशा दूसरों को दोष देता है कि मैं दूसरे की वजह से दुःखी हूँ। याद रखना चाहिए कि कहीं न कहीं हमारा कर्म आगे आता है।

तीन तरह के कर्म हैं। जो किया जा रहा है वह क्रियमान कर्म । कुछ कर्म का फल आपको आज ही मिल जाएगा, कुछ कर्म का फल आपको एक साल, दस, बीस साल बाद मिलेगा। कुछ ऐसे कर्म के फल होंगे जो आपको अगले जन्म में मिलेंगे । अच्छे फल आपको अच्छा फल व बुरे कर्म आपको बुरा फल ही देंगे। लेकिन सब अपना कार्य करते जरुर हैं। कुछ कर्म होते हैं, कुछ अकर्म और कुछ विकर्म । विकर्म वे हैं जिनका शास्त्रों में निषेध है। विकर्म याने वे कर्म जो कर्म आपको करने नहीं थे फिर भी किए, आपने कर्म किए उनका फल आपको भोगना ही है।

एक कर्म वह है जिसे हम अकर्म कहेंगे, जिसे कर्म की संज्ञा में नहीं रखा जाएगा। कर्म करते हुए भी जो बंधन में नहीं डालेगा।

आप कर्म करते रहें, संसार में रहें, समृद्धी में रहें, रिश्ते-नाते निभाएं, लेकिन फंसे नहीं । वह अकर्म है । भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि उसी को करना सीख जाओ । 

डॉ. ने गोली दी और वह गोली काम नहीं कर पाई तो कहा जाएगा कि डॉ. की गोली बेकार गई । ऐसे ही किसी ने आपको गाली दी। आप पर गाली का असर नहीं हुआ तो वह गाली बेकार गई । तो दूसरों की गालियां बेकार करते   जाओ  और आगे बढ़ते जाओ । ऐसी अपने अंदर शक्ति पैदा करो। कोई आपको चिढ़ाए, बहकाए, कोई जोश दिलाकर गिराना चाहता है तो कोई निंदा करके आपको गिराना चाहता है, कोई मुकदमें में आपको फंसाएगा तो कोई द्वेष रखेगा। कोई आपको संसार में फंसाना चाहता है। सबके ऊपर उठकर अपने आपको आगे बढ़ाते चले चलो । इतनी होश रखो। याद रखना कि जो भी आपके अंदर बुराईयों के संस्कार है वे दूसरी बुराईयों को जरुर खींचेंगे । जैसे कूड़े के ढेर को कूढ़ा खींचता है।

बिल्ली को कोई सफेद वस्त्र पहनाए, सिंहासन पर बैठाए, चंदन का टीका लगाए, फूलों की माला डाले । उससे कहे कि तुम अच्छी बिल्ली हो । वह भी सच में अच्छी बिल्ली बनकर बैठेगी जब तक कि सामने से कोई चूहिया न गुजरे । अगर चुहिया गुजरेगी तो माला-वाला फेंककर वह कूदेगी और चुहिया को पकड़ेगी।

आप भले हैं, नेक हैं, सिंहासन पर बैठे हैं। लेकिन वासना की चुहिया सामने से गुजरनी नहीं चाहिए। तब तक आप कुर्सी पर अच्छे से बैठे थे। चाहे वह लालच की चुहिया हो या राग-द्वेष की या क्रोध की चुहिया हो। अगर वह सामने से गुजर गई तो आप कुर्सी भूल जाएंगे । मौसम बहकाएगा, संगति बहकाएगी । क्योंकि आपके अंदर बीज पड़ा हुआ है। वह आपको खींचेगा। इसलिए तो लोग कहते हैं कि हमने तो कसम खाई थी पर क्या करें? ये हवाएं, ये फिजाएं, ये रंगीन मौसम  जिसने जाहिद का मन डुला रखा है। जैसे किसी बच्चे के सामने चॉकलेट हिलाओ। किसी की टॉफी, तारीफ  है तो किसी की टॉफी और कुछ है। इतनी अक्ल रखना कि कोई भी चाकलेट आपकी कमजोरी, आपक हिलाकर न जाए।

आपके अंदर विवेक की शक्ति है, अच्छे अन्न क प्रभाव है तो आपके कदम रुक जाएंगे । अगर तामसिकता है तो आप अपने को रोक नहीं पाओगे । इसलिए अन्न भी ठीक होना चाहिए, संगति भी अच्छी होनी चाहिए विचार भी अच्छे होने चाहिए । गलत सोचते रहोगे तो गलत रास्ते पर जाओगे। ध्यान रखना जो हो गया उसे वहीं पर खत्म करो । उससे बार-बार दुःखी नहीं होना । भगवान ने गीता में कहा है- कर्म पर तेरा अधिकार है, फल पर नहीं। कर्म कर, अपना कर्तव्य पालन कर। एक शब्द और कहा- कोई कितना भी दुराचारी हो, जो मुझे अनन्य भाव से भज रहा है, प्रायश्चित के माध्यम से अपने आपको धोकर अपने को निर्मल करके जबमेरे प्रति अपने आप को अर्पित करता है उसे साधू या सज्जन ही समझना चाहिए। क्योंकि परमात्मा किसी से बदला नहीं लेना चाहता वह तो बदला हुआ देखना चाहता है। स्वयं को बदलने के लिए तत्पर होईए, कोई भी कर्म न तो अच्छा है न बुरा । उसके पीछे आपकी भावनाएं कैसी हैं? डॉक्टर अगर डॉ. के भाव से शरीर छुए तो ठीक । अगर गलत भाव से छुए तो बात अलग है। कोई भी अच्छा-बुरा कर्म आपकी भावनाओं के हिसाब से होता है।

कर्म से नहीं, बंधन से बचो। |  AVOID BONDAGE, NOT KARMA - www.saralvichar.in

 एक बार जवान शुकदेव मुनि र्निवस्त्र कहीं जा रहे थे। उनके पीछे उनके पिता व्यास ऋषि भी जा रहे थे। एक स्थान पर कुछ महिलाएं स्नान कर रहीं थीं। शुकदेव मुनि उनके बीच से गए तो भी महिलाएं स्नान करती रहीं । उनके पिता पीछे से आए तो महिलाएं स्वयं को छिपाने लगीं और नजरें नीची कर लीं । व्यास ऋषि ने कहा मुझमें कोई दोष है जो तुम लोगों ने ऐसा व्यवहार किया? महिलाओं ने कहा- वह जो गुजरा, वह एक बच्चे से भी ज्यादा बच्चा था । तुम जो यहां से गुजरे तो तुम्हारी आंख कुछ और कहती है ।

एक बार नदी में बहती हुई महिला को एक साधू ने बचाया । अपनी पीठ पर लादकर ले गया। उसे ठीक किया और आगे बढ़ गया । दूसरे साधू ने कहा- तुमने महिला को छुआ, यह कोई अच्छी बात नहीं। साधू मुस्कराकर बोला- मैंने तो उसको वहीं का वहीं छोड़ दिया, लगता है मन पर तुम अभी भी लादे घूम रहे हो । मुझे तो यह दिखाई नहीं दिया कि वह स्त्री थी या पुरुष । मुझे तो यही दिखा कि एक जीव था। मरने की स्थिति में था। एक भाई ने भाई को बचाया या बहन को बचाया।

आप भले यज्ञ कर रहे हैं कि पड़ोसी का सत्यानाश हो जाए तो यज्ञ भी आपको बुरा फल देगा । सारे संसार का भला हो ऐसा मन में हो तो थोड़ी आहुती भी भले न देना, मन में सद्भावना रखना तो भी आपका यज्ञ पूरा हो जाएगा क्योंकि आपकी भावना पवित्र थी। किंतु यह संसार बड़ा ही विचित्र है। आप भले कुछ भी न कर रहे हों तो भी यह कुछ न कुछ तो अवश्य कहेगा। मूर्खों की दुनिया है। वे आपको नहीं समझेंगे । आप अपना काम अच्छी भावना से करते चले जाओ।

कहते हैं इसामसीह ने दस कोढ़ियों को ठीक किया । नौ लोग बिना धन्यवाद किए ही चले गए । एक आदमी ही वहां खड़ा रहा और कहा कि आपने मुझपर कृपा की। आप कोढ़ से बचाओ, दुःख से बचाओ, कुएं में गिरने से बचाओ । जरुरी नहीं कि हर कोई आपको धन्यवाद करे । संसार तो संसार की तरह चलेगा । आप अपनी तरह चलना । बुरा, बुराई नहीं छोड़ता तो भला, भलाई क्यों छोड़ दे।

 

 

SARAL VICHAR

 

 

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