हर व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार ही काम करता है। आपने कभी देखा है गधा डिप्रेशन में चला गया। कुत्ता कभी भौंकने में फेल हुआ। जैसे इंसानों में बुद्धु इंसान होता है वैसी कोई चिड़िया, बुद्धु चिड़िया कभी आपने देखी है? एक आदमी अपना घर बनाने में फेल हो जाता है पर कभी आपने यह देखा है कि चिड़िया मां बने और खुद घोंसला बनाने में वह फेल हो जाए ? क्या कभी दुःखी घोड़ा आपने देखा है? नहीं...
प्रकृति में खुशी है। वह खुशी क्यों है? क्योंकि गधा अपनी प्रकृति के मुताबिक काम करता है। चिड़िया भी अपनी प्रकृति के मुताबिक रहती है। चिड़िया कभी घोड़ा बनने की कोशिश नहीं करती और घोड़ा कभी गधा बनने की कोशिश नहीं करता।
किंतु हमारे जीवन के अंदर पूरी रेस उसी के ऊपर निर्भर है कि उसके जैसी (दूसरे के समान) गाड़ी कैसे आ जाए? उसके जैसा नॉलेज कैसे आ जाए? उसके जैसी डिग्री कैसे मिल जाए? दूसरे को देखने के चक्कर में स्वयं व्यक्ति को कैसा होना चाहिए यही वह भूल जाता है। यही तो सभी दुःखों की जड़ है।
रविन्द्रनाथ टैगोर को 7 भाई-बहन थे। याने उन्हें मिलाकर वे 8 भाई-बहन थे। रविन्द्रनाथ टैगोर के मंमी पापा की डायरी में लिखा था कि दूसरे बच्चे तो ठीक हैं किंतु हमें रविन्द्र से कोई अपेक्षा नहीं है। रविन्द्र नाथ टैगोर के मां-बाप उन्हें गणित में MASTER बनाना चाहते थे। किंतु वह बालक MATHS नहीं पढ़ सकता था । जब टीचर गणित पढ़ाती थी तो वह बच्चा (रविन्द्रनाथ टैगोर) टीचर की तस्वीर बनाता था या उन पर कविता लिखता था। उनकी टीचर ने भी कहा था कि यह बच्चा अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा। किंतु रविन्द्रनाथ ने अपनी प्रकृति को जाना । फिर अपनी प्रकृति के अनुसार ही उस प्रोफेशन में गए और अच्छे मुकाम तक पहुंच गए। वे ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे किंतु उनकी लिखी कविताएं आज भी हम पढ़ रहे हैं।
उपनिषद में बताया गया है कि रसों वै सहः अर्थात रस ही सबकुछ है। आप अभी इसलिए जिंदा हो क्योंकि जीवन में आपका रस है। जिस दिन वह रस हट जाता है आप डिप्रेशन में चले जाते हो । फिर सोचते हो कि कैसे इस जीवन को कम करें ।
आप यह सब पढ़ रहे हो क्योंकि आपको यह चीज जानने में उत्सुकता है। कोई भी चीज यदि अच्छी नहीं लगती तो हम वह नहीं कर पाते । यही एक बार म्युज़िक जीनियस मोज़ार से पूछा गया कि जीनियस लोगों की आत्मा किससे बनी हुई है तो उन्होंने जवाब दिया- Love-Love Love. जो जीनियस लोग होते हैं उनकी आत्मा प्यार से बनी होती है। वे वही काम करते हैं जिस काम में उनको मजा आता है। आप लोग भी आजमा सकते हैं । आप भी किसी काम को 1000 दिन करो तो आप उसमें जिनियस हो जाएंगे।
महाभारत में युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव हैं। ये 5 भाई थे। इनके सामने लड़ाई करने वाले 100 कौरव थे। अब सवाल यह आता है कि कभी भी भीम को उनकी मां ने न तो रोका, ना ही टोका और ना ही मारा कि तुम्हें धनुष चलाना क्यों नहीं आता? या कभी अर्जुन से यह नहीं कहा कि तुम गदा चलाना सीखो। हर एक की अपनी-अपनी स्पेशलिटी (कुशलता) थी। जो उनकी नेचुरल टैलेंट (अपनी प्रकृति) थी। उसी गुण को उनके गुरु ने बढ़ाया, डेवलप किया था । तभी तो इन पांच पांडवों ने 100 कौरवों को हरा दिया।
इतना बड़ा सच (मैसेज) हमें महाभारत से सीखने को मिलता है। यह सब तब होगा जब हम अपने बच्चे की प्रकृति को जानेंगे और पहचानेंगे।
आप अपनी और बच्चे की प्रकृति को जानो । खुद को पहचानो कि हम ऐसा क्या कर सकते हैं । अभी कुछ साल पहले एक हिंदी सिनेमा 3 इडियट आयी थी । उसमें जो नायक थे उन्होंने यही बताया था कि बच्चों की अपनी प्रकृति (नेचुरल टैलेंट) को बढ़ाओ वरना वह धक्का मारकर सक्सेस तो हो जाएगा पर फुनसुक वांगड़ु नही बनेगा हां साईलेंसर बन सकता है। आप सोच रहे होंगे कि ये कौन लोग हैं तो ये नाम उसी फिल्म के किरदारों के हैं।
बच्चे को जितना हो सके गले लगाया करो । उसे प्यार से सुलाओ और नींद से जगाओ । भले दुनिया सीधी से उल्टी हो जाए आप उसके सामने लड़ाई-झगड़ा नहीं किया करो ।
SARAL VICHAR
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