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वैराग्य से दुखों की निवृत्ति VAIRAGYA SE DUKHON KI NIWARTI | RETIREMENT OF SUFFERING FROM DISINTEREST (SOCRATE) | SARAL VICHAR

”वैराग्य से दुखों की निवृत्ति होती है।” 


वैराग्य से दुखों की निवृत्ति  (सुकरात) | RETIREMENT OF SUFFERING FROM DISINTEREST (Socrates) - www.saralvichar.in

 

 तत्वदर्शी सुकरात का कथन है कि-”संसार में जितने दुख हैं उनमें तीन चौथाई काल्पनिक हैं।” मनुष्य अपनी कल्पना शक्ति के सहारे उन्हें अपने लिए गढ़कर तैयार करता है और उन्हीं से डर-डर कर खुद दुखी होता रहता है। यदि वह चाहे तो अपनी कल्पना शक्ति को परिमार्जित करके अपने दृष्टि कोण को शुद्ध करके इन काल्पनिक दुखों के जंजाल से आसानी से छुटकारा पा सकता है। आध्यात्म शास्त्र में इसी बात को सूत्र रूप में इस प्रकार कह दिया है कि-”वैराग्य से दुखों की निवृत्ति होती है।”


हम मनचाहे भोग नहीं भोग सकते।

धन की, संतान की, अधिक जीवन की, भोग की, एवं मनमानी परिस्थिति प्राप्त होने की तृष्णा किसी भी प्रकार पूरी नहीं हो सकती

 एक इच्छा पूरी होने पर दूसरी नई दस इच्छाएं उठ खड़ी होती हैं।

 उनका कोई अन्त नहीं, कोई सीमा नहीं।

 इस अतृप्ति से बचने का सीधा साधा उपाय अपनी इच्छाओं एवं भावनाओं को नियंत्रित करना है।

 इस नियंत्रण द्वारा, वैराग्य द्वारा ही दुखों से छुटकारा मिलता है। 

दुखों से छुटकारे का वैराग्य ही एक मात्र उपाय है।

 

SARAL VICHAR

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