आज घर में बहुत तनाव होता है। घर में पैसे की कमी नहीं है, तो
बच्चों पर कोई रोक-टोक भी नहीं है। किंतु जो माहौल आजकल चल रहा है उसमें
बच्चे खुद को रोक नहीं पाते। हम सोचते हैं कि हमने तो बिना पैसों के जिंदगी
गुजारी, किंतु हमारे बच्चों को कोई परेशानी नहीं होगी। हम पैसों को कमाने
के लिए खुद को काम में झोंक देते हैं और उन्हीं बच्चों को टाईम नहीं दे
पाते। फिर बच्चे हाथ से निकल जाते हैं बाद में बच्चों को रोकने की कोशिश
करते हैं। फिर बच्चे हमारी बात समझ नहीं पाते।
एक छोटी सी कहानी
सुनी थी बचपन में । बीरबल रूठकर चले गए थे। अकबर ने उन्हें ढूंढने के लिए
एक युक्ति की। उन्होंने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। कई नगरों के लोगों
ने भाग लिया । अकबर ने एक-एक बकरी दी थी कि ये बकरी का वजन जितना आज है
उतना ही एक महीने के बाद भी रहे। एक महीने बाद किसी की बकरी बहुत मोटी हो
गई थी तो किसी की कमजोर। एक ही आदमी की बकरी का वजन ठीक था तो अकबर समझ गए
कि बीरबल का ही ये काम है। उस व्यक्ति से पूछने पर पता चला कि बीरबल ने ही
उसे सलाह दी थी ।
उन सबसे पूछा गया और बीरबल से भी पूछा कि तुमने यह
सब कैसे किया? क्योंकि बकरी को खाना दोगे तो वह सारा दिन खाती रहेगी। नहीं
दोगे तो कमजोर होगी। बीरबल ने कहा कि मैं बकरी को सारा दिन खूब खिलाता था
फिर शाम को शेर के आगे बांध देता था।
आजकल के बच्चों को हम आजादी तो
खूब देते हैं पर उन्हें समझ नहीं देते, डर में नहीं रखते। जैसे पतंग को
उड़ाते हैं, उसे पूरी छूट देते हैं, पर डोर हमारे हाथ में ही होती है। हमें
उन्हें छूट तो देनी चाहिए किंतु हमारा बच्चा कहां जाता है, ये हमें पता
होना चाहिए। आपके पूछने पर वह झूठ भी बोल देगा, कि मैं फलां जगह गया था।
हां, उसकी जासूसी नहीं शुरु करनी है। माएं घड़ी-घड़ी फोन करती हैं कि बेटा
तुम अभी कहां पर हो? तो क्या आपका बेटा सच ही बता रहा है? घड़ी-घड़ी फोन
करने पर तो बच्चा चिढ़ जाएगा। क्योंकि साथ वाले बच्चे उसे चिड़ा रहे होते
हैं कि तुम्हारी मां तो घड़ी-घड़ी फोन करती है। इसी चिढ़ मे वह और ज्यादा
झूठ बोलना, और ज्यादा बुरी आदतें करता है ।
मैं एक सलाह देना
चाहूंगा- बच्चों को शुरु में ही, बचपन में ही कहें कि तुम जो भी करो, जहां
भी जाओ मुझे बताओ, अगर तुमसे कोई गलती भी हो जाए तो हमें बताओ। हम तुम्हें
कुछ नहीं करेंगे। (कभी कभी बच्चा ऐसी बात भी बताएगा जो आपको बिल्कुल भी
अच्छी नहीं लगेगी, फिर भी बच्चे से गलती होने पर भी आपको उसे डांटना नहीं
है। याद रखिए क्योंकि आपने ही उससे कहा है कि मैं मारुंगी या डांटूंगी नहीं
...तो धीरज रखिए।) बच्चे तो वैसे भी बचपन में सारी बातें मां-बाप को बताते
हैं। अगर वह सिगरेट भी पिएगा तो भी बताएगा। किंतु वह तब बताएगा जब उसे पता
होगा कि आप उसे डांटेंगे नहीं। अगर उसने एक बार बताया और आपने उससे बात
करना छोड़ दिया या उसे डांटा तो वह दुबारा आपको ऐसी कोई बात नहीं बताएगा
जिससे उसे लगे कि आप नाराज होओगे।
यह बात नहीं है कि आप उसके सिगरेट
पीने पर उससे कुछ नहीं कहो। उसे प्यार से समझाओ। पर बीज तो आपको बचपन से
बोना पड़ेगा। बच्चे को बचपन में ही कहिए ( बेटा या बेटी हो) उससे कहो कि
तुम्हारे साथ या तुम जो करो मुझे बताओ मैं तुम्हारी गलती होने पर भी कुछ
नहीं कहूंगा या कहूंगी। उसका विश्वास आपको जीतना होगा। अगर वह बचपन में यह
आकर कहे कि उसने पेन्सिल चुराई है तो उसी समय उसे डांटो या मारो नहीं,
बल्कि उसे समझाओ। हम उन्हें भगवान का डर देकर समझा सकते हैं कि चोरी करने
से भगवान पाप देता है या दूसरी सजा का नाम लेकर भी हम बच्चों को कह सकते
हैं। बच्चे तो बच्चे होते हैं, जरुर समझ जाएंगे। लेकिन उनपर आपको आंखमूंदकर
विश्वास भी नहीं करना है। पूरी नजर रखनी है पर घड़ी-घड़ी टोकना बिल्कुल
नहीं है। वरना उनका विकास रुक जाता है।
बचपन से ही उसका विश्वास आप पर जम जाएगा तो आपसे अच्छा दोस्त तो उसका और कोई नहीं होगा।
अगर
आपके बच्चे बड़े हो गए हैं और वे बुरी संगत में आदतों के शिकार हो गए हैं
तो भी कोई बात नहीं, जब जागो तभी सवेरा होता है। आप अभी उनसे प्यार से बात
किया कीजिए, अगर आप उसे सिगरेट, शराब पीता देखें तो भी चिल्लाना नहीं ।
क्योंकि आपके चिल्लाने से वो आदत नहीं छोड़ेंगे। आपको ही धीरज रखना होगा।
उससे प्यार से बात करना शुरु करें, उसके साथ बैठें, बातें करें। पिताओं को
लगता है कि हम तो इनके पिता है, हम क्यों इनसे अपने आप बात करें। ये मेरा
बेटा है, इसे ही मुझसे प्यार से बात करनी चाहिए या मुझसे डरना चाहिए।
पिता
का अभिमान याने अभी-अभी मान। बच्चे को पिता की बात माननी ही चाहिए । वह
जमाना गया जब पिता छड़ी से बच्चों को मारते थे। पिता के आने पर बच्चे खामोश
होकर दुबक जाया करते थे।
अगर आप चाहते हैं कि आपके बेटे को कोई
बुरी आदत न हो तो पहले आपको वह आदत छोड़नी पड़ेगी। हमें आदत होगी तो कभी
बच्चों से वह चीज भी लाने को कहेंगे तो उसको मौका मिलेगा और आपके कहने पर
भी वह उस बुरी आदत को नहीं छोड़ेगा, सोचेगा कि खुद तो शराब पीते हैं और
मुझे मना करते हैं।
आप भले अपनी सफाई दो कि मुझे कोई कहने वाला नहीं
था इसलिए मुझे आदत लग गई, पर इस उम्र में आपकी बात बच्चे को समझ नहीं
आएगी। वह तो जो देखेगा वही करेगा। (ये आदत आपकी दूसरों से झूठ बोलना या
बेईमानी करना भी हो सकती है।)
घर में किसी को आदत न हो फिर भी अगर
बच्चे को आदतें हो जाती हैं तो उसके साथ धीरे-धीरे बैठना शुरु करो । बैठकर
ही लेक्चर नहीं देना कि शराब बुरी चीज है, या सिगरेट बुरी चीज होती है। उसे
आपकी बात समझ नहीं आएगी। इसमें आपको ही धीरज रखना होगा । उसके साथ रोज समय
बिताना होगा। कभी कैरम या कभी दूसरे गेम या कभी पार्क का चक्कर । आपको टी.
वी. का मोह भी त्यागना होगा। जैसे उसे इस आदत को लगने में इतना समय लगा
उससे दुगना समय उस आदत से छूटने पर लगेगा । धीरे-धीरे वह जरुर समझ जाएगा ।
क्योंकि आजकल के बच्चे अधिक समझदार हैं ।
SARAL VICHAR
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