स्वामी अवधेशानंद जी महाराज
आलस्य से बड़ा कोई शत्रु नहीं
महानता की सीढ़ियां
चढ़नी हैं और वो हासिल करना है जिसके बाद और कुछ पाना शेष नहीं रहता। उस
गलियारे में जाने के लिए पहली योग्यता है अप्रमादता ( आलस्य त्यागना ) । अगर महानता की
सीढ़ियां चढ़ना हैं, जिस दिशा में सब कुछ पड़ा है। वहां जाने के लिए अच्छे बनना
चाहते हो तो पहली अवस्था है प्रमाद (आलस्य) रहित अवस्था ।
मैं तो बहुत
वर्षों से शत्रु को जानता हूँ। पहचानता हूं। वह आपका भी शत्रु है, और मेरा
स्वयं का भी। उस शत्रु से मैं परिचित हूं । कुछ लोग तो अपने दुश्मन को नहीं
जानते कि कौन दुश्मन है इसलिए बड़ी हानि रहती है जीवन में ।
जब से
मैंने कथा आरंभ की होगी, तब से कहता आया हूं कि एक ही शत्रु है जीवन में ।
जिसके कारण हम वंचित हैं बहुत बड़ी उपलब्धियों से । वह शत्रु कोई और नहीं,
वह है आलस्य । इससे बड़ा शत्रु कोई नहीं।
आप साधक है, परमार्थ के
पथिक हैं, प्रकाशमार्गिय हैं, अगर आप सचमुच के साधक है तो बस ध्यान रखना आप
आलस्य को चुनौती दें । आलस्य आपके पास फटकने न पाए। आलस्य आया तो
स्वाध्याय से वंचित रहोगे। चिंतन नहीं कर सकोगे । मनन या अध्ययन नहीं कर
सकोगे । सत्कर्म नहीं कर पाओगे । माला या ध्यान नहीं लगा पाओगे ।
अगर हम वंचित हैं कुछ अच्छाईयों से तो वह कारण है प्रमाद, आलस्य । दो
चीजें जिनके पास नहीं होती वे रुचियों के पास होती हैं। कौनसी है वे दो
चीजें ? दमन और निग्रह ।
कभी दमन (Suppress) किया है अपना, कभी डांटा-डपटा है स्वयं को।
कभी निग्रह (कठोरता पूर्वक स्वयं को दबोचना) नहीं किया है, शम-दम नहीं किया है।
इसका मतलब आप रुचियों के
पास हैं। टेस्ट के लिए जीवन जी रहे हैं। जो भी टेस्टी या अच्छी चीज लगेगी,
आप खुद को वहां पाएंगे।
निग्रह के लिए स्वयं को डांटना पड़ता है । जैसे छोटे बच्चे को डांटते हैं।
लालन, पालन, ताड़न । दो शब्द अच्छे लगते हैं। लालन-पालन । ताड़न अच्छा नहीं लगता । जैसे बच्चे का लालन-पालन करते हैं, ताड़न नहीं किया तो बच्चा बिगड़ जाता है। उसे हम बताते हैं कि ऐसे करो, वैसे करो । ऐसे ही स्वयं को भी, खुद को भी बताओ।
कभी मन को बताया करो कि ऐसे मत करो। कभी स्वयं को भी मर्यादा
में रखना पड़ता है। एक सीधी-सीधी बात है। जिनके पास धर्म नहीं, वह अंकुश
नहीं रख सकता । धर्म अंकुश है । जैसे हाथी को अंकुश से वश में करते हैं।
आपका
हाथी कब बैठेगा? जैसे हाथी के मस्तक पर महावत एड़ी से चोट करता है और उसे
निर्देश देता है। वैसे आपने कभी अपने हाथी मन को वश किया है? मन ऊंट की तरह
है तो आपने कभी नकेल डाली है मन में? घोड़े को जैसे लगाम लगाते हैं। क्या
आपने मन के घोड़े को लगाम लगाई है? अगर मन बच्चा बन जाए तो उसे कैसे ठीक
करना है? मन का दमन करना आपको आना चाहिए।
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