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बुढ़ापा भी सुनहरा हो सकता है | Old Age Health & Lifestyle

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बदले समय के साथ कदमताल

वृद्धावस्था किसी भी और उम्र की तरह है । बदलाव का एक नाम । जैसे हर तब्दीली को अपनाया, वैसे ही इसे भी अपनाएं।

तमाम उम्र जो लोग समझौते करते रहते हैं, हालात के हिसाब से ढलते रहते हैं, वे एक अहम पड़ाव पर आकर ठिठक क्यों जाते हैं?

सीख-सीखकर बड़े होते हैं, युवावस्था में जोखिम उठाते हैं, पहल करते हैं, चांद छूने के जज्बे के साथ काम करते हैं, फिर सारी उर्जा को कहां रखकर भूल जाते हैं? रोग में इतना दम नहीं कि मन को डिगा सके। हां, मन के हार जाने के बाद चौतरफा हार तय है।

तो ये माने कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, मन कमजोर होता जाता है। अगर हां, तो क्यों? जिसके सारे सूत्र अपने हाथ अपने हाथ में हों, उसकी गति शून्य और दिशा अबूझ कैसे होने दे सकते हैं? बुढ़ापा सिर्फ एक अवस्था है। जिस तरह बचपन से बड़े होने तक हम बदलावों के साथ तालमेल बिठाते है, बस कुछ वैसे ही बदलाव लाता है बुढ़ापा । फिर उसके सामने भला घुटने क्यों टेक दें! क्या सिर्फ इसलिए कि जिस नौकरी को तकरीबन ३५ साल से कर रहे थे, वो अब नहीं है या अब पति महीने की पहली तारीख को हाथ पर पैसे लाकर नहीं रखेंगे या ये कि इसी वजह से बच्चों या समाज की निगाह में आपकी वो जगह नहीं रहेगी, जो अब तक थी? यानी वेतन अहमियत की वजह है, तो ऐसी अहमियत का क्या ऐतबार । जहां तक निठल्ले हो जाने का डर है, तो खुद को व्यस्त रखने का, हर पल नया सीखने या करने का हुनर तो हर इंसान को आता है। आखिर साठ साल या उससे ज्यादा की जिंदगी का अनुभव तो है ही।

देखा जाए तो सारे मसले उम्मीदों से जुड़े हैं। जब आप दूसरों की निगाह से खुद की अहमियत को आंकेगे, तो खुश कभी नहीं हो पाएंगे। अपनी जगह दुनिया में हम खुद बनाते हैं। समाज में रुतबा, इज्जत हमारी मेहनत की देन है। तब किसी से नहीं पूछते कि बताओ हम कैसे हैं, क्या करें कि तुम खुश हो जाओ । तो अब क्यों?

दरअसल जिसे तय करने का हक मिल जाता है, वो मालिक बन बैठता है। आज अगर तीन सूत्र आपने थामें रखे हैं, तो आप किसी और की नजर के मोहताज नहीं रहेंगे । वे तीन सूत्र हैं, जो युवावस्था से आपके हाथ में हैं- अर्थ, सेहत और स्वाभिमान ।

उम्र का कोई पड़ाव आपसे ये तीन सूत्र खुद तो नहीं ही छीन सकता है । सो पूरे मन की ताकत से बनाए रखिए अपनी निगाह में अपनी अहमियत और अपने लिए जीने का जज्बा ।

प्यास लगने का अहसास कम हो जाना

यह सच है कि एक उम्र के बाद ऐसा लगता है कि एक उम्र के बाद ऐसा लगता है कि पानी पीने का मन ही नहीं है। जबकि सच तो यह है कि पानी की जरुरत इस समय बहुत बढ़ जाती है। कब्ज होने की आशंकाएं या गुर्दो पर जोर पड़ने का डर बढ़ जाता है । जरुरी है- अगर आपको डॉक्टर ने किसी किस्म की मनाही नहीं की है तो हर दो घंटे के बाद तीन चौथाई गिलास पानी पीएं। 

 

चबाने की क्षमता में कमी

इस समय खाने का दिल तो करता है, लेकिन भोज्य पदार्थ सख्त हो तो मन मसोसकर रह जाना पड़ता है। जो खाने का मन करे तो दरदरा पीसकर खाएं। शरीर का भोजन को अवशोषित कर पाना कम हो जाता है

एक साथ ढेर सारा भोजन करना अब नुकसान कर जाता है। इसलिए दिन में तीन बार कुछ खाने से बेहतर है कि थोड़ा-थोड़ा करके पांच बार खाएं । सुबह उठने के एक घंटे के भीतर ही सत्तू या दूध लें। फिर फल खाएं । दोपहर का खाना खाने के बाद शाम की चाय के साथ पोहे वाला मिश्रण ले। रात के भोजन के थोड़ी देर बाद अगर सुबह सत्तू लिया हो, तो अब दूध ले लें।
 

शारीरिक गतिविधियां कम होने से पाचनक्रिया पर असर पड़ता है

एक दौर ऐसा आता है कि रोज-रोज घर से निकलना जरुरी नहीं समझा जाता । लेकिन ऐसा करने से पाचन क्रिया पर असर पड़ता है। आदर्श स्थिति में सुबह-शाम की सैर की जानी चाहिए लेकिन ऐसा सबके लिए मुमकिन नहीं हो पाता । इसलिए हर दो घंटे के बाद घर के अंदर ही ५- ७ मिनट टहलें ।

 

ताजा खाने से गुरेज (परहेज) करना

जब रोज बाहर जाना होता है, तो आते-जाते ताजे फल या सब्जी ले आते हैं हम। लेकिन बूड़े हो जाने पर दो वक्त ब्रेड से ही काम चला लेते हैं। भोजन को काम चलाने के लिए इस्तेमाल करना सेहत पर बुरा असर डाल सकता है, ताजा वस्तुओं का सेवन हर आयु के लिए जरुरी है।

वृद्धावस्था में किसी पर निर्भर हो जाने का भय सबसे बड़ा होता है। स्वस्थ रहने से इस भय को दूर रखना आसान होता है सेहतमंद रहेंगे, तो आत्मनिर्भर भी रह पाएंगे।

सेहत चाहिए तो सही खाईए

  वृद्धावस्था में ही सबसे ज्यादा लापरवाहियां हो जाती हैं। एक तरफ पाचन क्षमता कम साथ देती है, दूसरा डॉ. किसी न किसी रोग की दुहाई देकर नमक शक्कर पर लगाम लगा देते हैं और भूख है कि तीन बार नहीं, बार-बार सताती है। बच्चों को पता चले तो लगता है कि सोचेंगे कि इस उम्र में ' भुख्खड़' हो गए हैं।

ऐसे में क्या किया जाए? बड़े आसान से उपाय हैं। पहले तो भरपूर पोषण की व्यवस्था कर लिजिए, ताकि किसी तरह की कमी के कारण कोई रोग न बढ़े। दूसरी बात तीन मिश्रण अपने कमरे में ही रख लिजिए...
 

मेवे मजेदार

कटे हुए अंजीर, किशमिश और काजू-बादाम के पाऊडर को अपने पास एक डिब्बे में रखें सुबह दूध में या यूं ही फांक लेने के लिए यह मिश्रण उम्दा है। मात्रा- एक बार में इस मिश्रण के दो छोटे चम्मच लिजिए। हिसाब से देखा जाए, तो चंद टुकड़े अंजीर, तीन -चार किशमिश और शेष काजू -बादाम का पाऊडर।

इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम, खनिज आपके शरीर को मिल जाएगा। इस मिश्रण को नियमित रुप से लेने से आपको हेल्थ सप्लीमेंट का खर्च तकरीबन खत्म हो जाएगा।

पोहे लाजवाब

एक डिब्बे में सूखे भूने पोहे रखें । इसमें कुटी भुनी मूंगफली भी मिला सकते हैं। स्वास्थ्य संबंधी समस्या न हो तो इसमें नमक भी डाल सकते हैं।

मात्रा- एकाध कटोरी दिन में या शाम को खाएं। पोषण का खजाना- - प्रोटीन, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, आयरन और मोनोसैचुरेटेड फैट्स ।

सत्तू स्वादिष्ट

एक कटोरी बेसन को भूनें या भुने चने का आटा लें। इसमें दो कटोरी आटा भूनकर डाल दें । आधा कटोरी भुने तिल मिला लें। इस मिश्रण में शक्कर का बूरा या मधुमेह के रोगी थोड़ा नमक और काली मिर्च पाऊडर डाल दें।

माप- इसके दो चम्मच का घोल पानी में ले सकते हैं सत्तू की तरह।

पोषण का खजाना- यह मिश्रण प्रोटीन का बेहतरीन स्त्रोत होगा। इसमें विटामिन और फायबर और आयरन भी भरपूर मिलेगा।

आसान बनेगी जिंदगी

फर्नीचर अपने रुम में कम से कम रखें तो काम करने और चलने-फिरने में आसानी होगी। पलंग के गद्दे ऊंचे कर देने से उठने-बैठने में तकलीफ नहीं होगी । पलंग के पास एक स्टूल रख लें ताकि छोटा-मोटा सामान रखा जा सके । ड्राईंग रुम में टेलिविजन से नियत दूरी पर एक दिवान रखें या आराम कुर्सी भी रखी जा सकती है।
आपको गहरे बर्तन में भोजन करना चाहिए ताकि भोजन बाहर न गिरे । चम्मच भी गहरा और कम चौड़ा व मोटे हैंडल वाला होना चाहिए।

बुजुर्ग लोगों को सूती और ढीले-ढाले कपड़े पहनने चाहिए । कपड़े के ही जूते होने चाहिए।

अगर पैसे की कमी नहीं है तो नीचे लिखी सुविधाएं अपने बाथरुम में भी कर लें। बाथरुम में खुरदुरे टाईल्स न हों तो रबर की शीट बिछवा सकते हैं । बाथरुम में भरपूर रोशनी होनी चाहिए व वॉशबेसिन भी थोड़ा ऊंचाई पर ठीक रहेगा तो झुकने की दिक्कत भी नहीं होगी।

गर्म पानी की उपलब्धता के लिए सोलर गीजर लगवा सकते हैं। शरीर की सफाई के लिए लंबे हैंडिल वाला ब्रश रखें।

सेहत सुधारे वर्जिश

शारीरिक क्षमता कम होना स्वाभाविक है। ऐसे में लोग आरामतलब हो जाते हैं। ५० के पार भी नियमित व्यायाम जरुरी है । टहलना या कुर्सी पर बैठे बैठे या लेटकर टांगों, हाथों, गर्दन का व्यायाम करना चाहिए। प्राणायाम भी जरुर करें ।

गेम खेलें, अन्य भाषा सीखें, विभिन्न विषय की पुस्तकें पढ़ें, दाएं हाथ का प्रयोग करते हैं तो बाएं हाथ का प्रयोग करें तो दिमाग की जड़ता टूटेगी।

क्या आपको पता है?

 ६५ साल थी कर्नल सैंडर्स की उम्र । जब उन्होंने १९३० में वृद्धावस्था फंड से मिले पैसों से केंटुकी फ्राईड चिकन (केएफसी) की स्थापना की।

७५ वर्ष थी अन्ना मेरी रॉबर्ट्सन मोजेस की उम्र । जब बहन के कहने पर उन्होंने चित्रकारी शुरु की । १९६१ में १०१ वर्ष की आयु में निधन तक उन्होंने खूब चित्र बनाए। उन्हें 'ग्रैंडमा मोजेस' कहा जाता है ।

५५ साल थी मार्क ट्वेन की उम्र। जब उन्होंने साईकिल चलाना सीखा । और हां, तब उन्हें साईकिल चलाने की कोई जरुरत नहीं थी।

फौजा सिंह ने ८१ साल की उम्र में दौड़ना शुरु किया। २००३ में ८९ की उम्र में उन्होंने मैराथन में भाग लिया व २०१३ में हांगकांग मैराथन में दस किलोमीटर की दौड़ सफलतापूर्वक पूरी की।

 

 SARAL VICHAR 

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