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दादा जशन वासवानी | DADA JASHAN VASWANI | DADA J. P. VASWANI | SARAL VICHAR

 दादा जशन वासवानीजी

Dada Vaswani - www.saralvichar.in

तैयारी की है या नहीं, तैयारी कर रहे हो या नहीं?
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों! आप सबको मेरा हार्दिक प्रणाम! सब संतों और सत्पुरुषों की यह शिक्षा है कि तुम दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार करो, जैसा तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ करें। हमारा फर्ज है कि हम अपने आप को दूसरों की जगह पर रखकर विचार करें कि अगर यह मेरी जगह पर होता, तो मैं उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद करता । वैसा ही व्यवहार हमें उसके साथ करना चाहिए, तो फिर हम कभी भी किसी के दिल को ठेस. नहीं पहुंचाएंगे । कितना सुंदर विचार है यह । इस शिक्षा को सुनहरा उसूल कहते हैं। सब शास्त्र यही कहते हैं कि तुम दूसरों से अलग नहीं हो । हम सब एक है।

हमें एक कदम और आगे जाना होगा । वह है प्रभू को हरपल याद करें। मन में प्रभू का ध्यान करें और दूसरों की सेवा करें।

एक दिन तो हमें इस संसार से जाना ही है। मौत आए, उससे पहले हमें अपना जीवन नया बनाना चाहिए।
इस सृष्टि का नियम है कि जो आया है, वह जाएगा जरुर । जिसकी शुरुआत हुई है, उसका अंत होना ही है।
प्राचीन पुस्तकों में ऐसा बताया गया है कि योगी, महायोगी अपने योग-साधना से हजारों वर्ष जीवित रहते थे। किंतु वे भी अपने शरीर को त्यागकर इस संसार से चल बसे । एक-एक को चलना ही होगा । इस संसार का यही दस्तूर है।

मेरे प्यारे भाईयों और बहनों! इन्सान क्या है? इस सवाल के अलग-अलग जवाब दिए गए है। एक जवाब यह है कि इन्सान यात्री है। इन्सान जो पृथ्वी पर आया है, उसे एक दिन अवश्य वापस लौट जाना है। जिस यात्रा पर हमें वापस जाना है, उस यात्रा के लिए क्या हमने तैयारी की है?

यह शरीर एक मकान है। एक दिन इस शरीर रुपी मकान को खाली करके आगे की यात्रा पर चलना होगा।

एक राजा था। वह अपनी दरबार में बैठा था। दूर देश से उसके पास एक आदमी आया । उसने आकर राजा को एक पंखा दिया । राजा ने पंखे को खोला, उस पर की हुई पेंटिंग को देखा । राजा को वह पंखा बहुत पसंद आया। थोड़ी देर तक राजा ने उस पंखे का इस्तेमाल किया। फिर वह पंखा दरबार के एक मसखरे को देते हुए कहा- तुम यह पंखा अपने पास रखो । जब कभी भी तुम्हें अपने से अधिक मूर्ख व्यक्ति मिले, तो यह पंखा उसे दे देना
राजा के कहने का यह अर्थ था कि वह मसखरा सबसे अधिक मूर्ख था। कई साल बीत गए एक दिन राजा बीमार हो गया। उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। उस समय मसखरा आता है और राजा के अंतिम दर्शन करते हुए उन्हें प्रणाम करता है और उनका हाल-चाल पूछता है।
राजा कहता है- मेरा स्वास्थ्य काफी नाजुक है। वैद्य कहते हैं कि मेरा अंतिम समय अब निकट आ गया
है । अब तो मुझे बहुत लम्बी यात्रा पर जाना है। मसखरा कहता है कि- क्या आपको पहले से ही
मालूम था कि आपको लम्बी यात्रा पर जाना है?
राजा कहते हैं- हाँ। यह बात में जानता था। हर इंसान जानता है कि एक दिन उसे इस संसार से लौट जाना है।

आगे मसखरा कहता है- क्या आपने उस लंबी यात्रा के लिए कोई तैयारी की है या नहीं?

राजा ने कहा- नहीं, मैंने तो कोई तैयारी नहीं की।

मसखरा उस समय अपनी जेब से वह पंखा निकालता है जो कई साल पहले राजा ने मसखरे को दिया था।

मसखरा राजा से कहता है, 'राजन! क्या आपको याद है, आपने यह पंखा देते हुए मुझसे कहा था कि यह पंखा उसे देना जो तुमसे अधिक मूर्ख हो । मैं यह पंखा आपको दे रहा हूँ। क्योंकि आपको इस बात का अच्छी तरह ज्ञान
 था कि आपको लंबी यात्रा पर जाना है। इसके बावजूद भी आपने कुछ तैयारी नहीं की है । राजन! इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है?

मेरे प्रियजनों! हमारी हालत भी ऐसी ही है। आप स्वयं से प्रश्न कीजिए कि हमने कुछ तैयारी की है या नहीं? हम रोज यह सुनते हैं कि आज यह परलोक सिधार गया, आज वो परलोक सिधार गया, लेकिन हम कभी भी इस बात पर विचार नहीं करते, कि एक दिन हमें भी इस संसार से जाना है । हमें भी यह संसार छोड़कर आगे की यात्रा पर जाना है। हम समझते हैं कि हमें सदा के लिए इस संसार में रहना है।

मेरे प्यारे भाईयों और बहनों, एक-एक को यह संसार छोड़कर आगे चलना है। ऐसा हमें बताया जाता है कि पुरुष, महिलाएं और बच्चे लगभग छः लाख हर रोज इस संसार से विदा लेते हैं । एक दिन हमारी बारी भी अवश्य आएगी। फिर हमने कुछ तैयारी की है या नहीं?

एक आदमी तैयार होकर ऑफिस जाने वाला था। जाने से पहले अपनी पत्नी से कहता है- मुझे एक प्याला चाय का दो। पत्नी रसोई घर में चाय बनाने जाती है। पति कुर्सी पर बैठकर चाय का इंतजार करता है। जैसे ही पत्नी चाय बनाकर लाती है, तो क्या देखती है कि उसके पति की गर्दन एक तरफ लुढ़क गई है। उसके पति परलोक सिधार गए हैं।

मेरे प्यारे भाईयों और बहनों! हमारा शरीर एक मटके की तरह है। जिसमें लाखों, करोड़ों श्वास पड़े हुए हैं। एक-एक श्वास मटके से निकलता जा रहा है। जो श्वास मैंने अंदर लिया है, उसे बाहर जरुर निकालूंगा। लेकिन दूसरा श्वास ले पाऊंगा या नहीं, इस बात का कोई भरोसा नहीं है। गुरुदेव साधु वासवानीजी कहते थे- यह संसार एक ज्वालामुखी है। मारा समय फट रहा है। इसके लावा की ज्वाला कब किसको जला दे, इसका कोई भी भरोसा नहीं । इससे कोई नहीं बच सकता।

फिर हमने तैयारी की है या नहीं? हम कई काम करते हैं। अपने फर्ज का पालन करते हैं। घूमते हैं, फिरते हैं, खाते-पीते हैं, लेकिन हमने उस लंबी यात्रा के लिए कुछ तैयारी की है या नहीं?

फ्रांस के राजा का सलाहकार अपने राजा के संदेश को अलग-अलग देशों में ले जाता, काम खत्म करने के बाद वह उस शहर में घूमने निकलता और जो चीज भी उसे पुरानी और सुंदर (antiques) चीजें नजर आती वह उन्हें खरीद लेता । ऐसा करके उसने इतनी पुरानी अनमोल चीजें इकट्ठी कर लीं। उसका घर ही म्यूजियम जैसा बन गया था।

एक दिन वह बीमार पड़ गया। डॉक्टर ने कहा कि अब तुम आराम करो । बिस्तर से मत उठना । बिस्तर से उठोगे, तो कहीं ऐसा न हो तुम गिर जाओ ।

वह मन ही मन सोचता कि मैंने इतनी मेहनत से antiques संभालकर रखे हैं। मुझे विवेकरुपी लकड़ी से रोज पीटो। भोग से जीव तृप्त नहीं हो सकता । भोगी रोगी होता है। भोगी की भूख कभी शांत नहीं होती। त्याग में ही तृप्ति समाई हुई है। भोग से जीव तृप्त नहीं हो सकता । भोगी की भूख कभी शांत नहीं होती। उसके आंसू बह निकलते हैं। वह अपने आपसे कहता है कि मैं अपने साथ इनमें से एक भी चीज नहीं ले जा सकूँगा। अब इन चीजों का क्या फायदा?

मेरे प्रियजनों! हम अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकेंगे। हमने जो लाखों, करोड़ों रुपए कमाए हैं, सब कुछ यहीं छोड़ जाएंगे।

हम इस संसार में आए थे तो खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाएंगे। हमारे साथ सिर्फ प्रभू का नाम चलता है। प्रभू से प्रार्थना करो कि हे प्रभू... में जैसा भी हूं तेरा ही हूं। तुम मुझे कभी भी मत छोड़ना । मैं तुम्हारी शरण में हूं।

हर रोज थोड़ा समय बचाकर प्रभू से यह सरल प्रार्थना करें। प्रभू हमारे बहुत नजदीक है। हमारे हाथों पैरों और सांसों से भी अधिक नजदीक है।

अब सवाल यह उठता है कि हमें इस अंतिम यात्रा के लिए कौनसी तैयारी करनी चाहिए।

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पहली तैयारी- हमें प्रभू के किसी भी नाम का उच्चारण करना चाहिए। जो आपको अच्छा लगे और आपके हृदय को भाए।

एक डॉक्टर था। उसने कहा- मुझे तो सर खुजाने को भी वक्त नहीं मिलता, मैं प्रभू का नाम कैसे उच्चारुं? उस डॉक्टर से कहा गया कि- जब तुम दवाखाने जाते हो तो कार में जाते हो । कार चलाते वक्त तुम्हारा मन इधर-उधर भटकता होगा । उस समय तुम प्रभू का नाम उच्चारो । इस तरह तुम्हारा मन भी नहीं भटकेगा ।

हर इंसान को कुछ न कुछ समय अवश्य मिलता है जब वह प्रभू का नाम ले सकता है। सुबह उठते ही एकांत में बैठ सकते हैं। सफर करते वक्त भी नाम ले सकते हैं। श्वांस लो तो ॐ और श्वांस छोड़े तो राम कहो । शुरु-शुरु में हमारा मन भटकेगा। मन को जन्म-जन्म से भटकने की आदत पड़ गई है। मन अपनी आदत नहीं छोड़ता तो हम अपनी आदत क्यों छोड़ें?

दूसरी तैयारी-
हर रोज पांच मिनट, दस मिनट एकांत में बैठने का प्रयास करें । धीरे-धीरे समय को बढ़ातें जाएं । एकांत में बैठकर प्रभू से कोई न कोई नाता जोड़ें। हमारे प्रभू माता-पिता, भाई, मित्र, महबूब बनने के लिए तैयार है। यह नाता अंतकाल में बहुत काम आता है।

जैसे-जैसे हम प्रभू के साथ नाता जोड़ते हैं, उसका स्मरण करते हैं तो हमें अहसास होने लगता है कि जो कुछ भी होता है वह प्रभू की आज्ञानुसार ही होता है।

जिंदगी में हमें कितने कड़वे अनुभव होते हैं, लेकिन हमें दिल में यह विश्वास रखना चाहिए । फिर वह चाहे कड़वा हो या मीठा अनुभव ।

तीसरी तैयारी- किसी की आलोचना-निंदा न करें। याद रखो जब भी आप किसी की निंदा करते हैं तो उसके अवगुण अपने ऊपर लेते हैं और अपने गुण उसे देते हैं।

एक सूफी कवि थे उनका नाम सादी था। उन्होंने कहा कि मैं कभी किसी की आलोचना नहीं करूंगा। अगर किसी की आलोचना करनी ही पड़े तो मैं अपनी मां की आलोचना करुंगा। क्योंकि घर का खजाना घर में ही रहेगा।

प्रियजनों आप यह बात गांठ बांध लें कि आप अगर किसी की आलोचना कर रहे हैं तो आप अपनी आत्मिक संपत्ति उसे दान कर रहे हैं। आपका खजाना खाली हो रहा है और वह व्यक्ति मालामाल हो रहा है।

चौथी तैयारी- तुम जितनी सेवा कर सको, जितनों की मदद कर सको, करते रहो । जो दिन बिना किसी की सेवा के बीता वह दिन मानो व्यर्थ गया । जिस दिन आपने किसी की मदद नहीं की, किसी भाई या बहन, पशु-पक्षी की मदद नहीं की, समझो तुम्हारा दिन व्यर्थ गया। एक दिन एक आदमी गुरुदेव साधु वासवानीजी के पास आया और कहा- आज का दिन मेरे लिए बहुत भाग्यशाली साबित हुआ है। क्योंकि आज के दिन मैंने तीन लाख रुपए कमाए हैं । उन दिनों के तीन लाख रुपए शायद आज के तीन करोड़ के बराबर हैं।

गुरुदेवजी ने कहा-
क्या आज तुमने किसी प्यासे को पानी पिलाया? किसी भूखे को टुकड़ा दिया? किसी नंगे को वस्त्र दिए? क्या, तुमने किसी दुःखी को धीरज दिया?

उस आदमी ने उत्तर दिया- ऐसा मैंने कुछ नहीं किया।

साधु वासवानीजी ने जवाब दिया- फिर तुम ने आज का दिन व्यर्थ ही गंवा दिया।

मेरे प्रियजनों, हमने इस तरह कई दिन व्यर्थ गंवा दिए हैं। बाकी बचे हुए इस जीवन के दिन व्यर्थ न गंवाएं और उस अंतिम यात्रा के लिए रोज-रोज तैयारी करें। प्रभू के नाम का स्मरण करें । कुछ समय एकांत में बैठकर ध्यान करें। प्रभू की हर करनी को स्वीकार करें। किसी की आलोचना न करें, दूसरों की सेवा करे और अपना जीवन सफल करें। सफल करें।

ॐ शांति! शांति! शांति!

 

SARAL VICHAR

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