तैयारी की है या नहीं, तैयारी कर रहे हो या नहीं?
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों! आप सबको मेरा हार्दिक प्रणाम! सब संतों और सत्पुरुषों की यह शिक्षा है कि तुम दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार करो, जैसा तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ करें। हमारा फर्ज है कि हम अपने आप को दूसरों की जगह पर रखकर विचार करें कि अगर यह मेरी जगह पर होता, तो मैं उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद करता । वैसा ही व्यवहार हमें उसके साथ करना चाहिए, तो फिर हम कभी भी किसी के दिल को ठेस. नहीं पहुंचाएंगे । कितना सुंदर विचार है यह । इस शिक्षा को सुनहरा उसूल कहते हैं। सब शास्त्र यही कहते हैं कि तुम दूसरों से अलग नहीं हो । हम सब एक है।
हमें एक कदम और आगे जाना होगा । वह है प्रभू को हरपल याद करें। मन में प्रभू का ध्यान करें और दूसरों की सेवा करें।
एक दिन तो हमें इस संसार से जाना ही है। मौत आए, उससे पहले हमें अपना जीवन नया बनाना चाहिए।
इस सृष्टि का नियम है कि जो आया है, वह जाएगा जरुर । जिसकी शुरुआत हुई है, उसका अंत होना ही है।
प्राचीन पुस्तकों में ऐसा बताया गया है कि योगी, महायोगी अपने योग-साधना से हजारों वर्ष जीवित रहते थे। किंतु वे भी अपने शरीर को त्यागकर इस संसार से चल बसे । एक-एक को चलना ही होगा । इस संसार का यही दस्तूर है।
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों! इन्सान क्या है? इस सवाल के अलग-अलग जवाब दिए गए है। एक जवाब यह है कि इन्सान यात्री है। इन्सान जो पृथ्वी पर आया है, उसे एक दिन अवश्य वापस लौट जाना है। जिस यात्रा पर हमें वापस जाना है, उस यात्रा के लिए क्या हमने तैयारी की है?
यह शरीर एक मकान है। एक दिन इस शरीर रुपी मकान को खाली करके आगे की यात्रा पर चलना होगा।
एक राजा था। वह अपनी दरबार में बैठा था। दूर देश से उसके पास एक आदमी आया । उसने आकर राजा को एक पंखा दिया । राजा ने पंखे को खोला, उस पर की हुई पेंटिंग को देखा । राजा को वह पंखा बहुत पसंद आया। थोड़ी देर तक राजा ने उस पंखे का इस्तेमाल किया। फिर वह पंखा दरबार के एक मसखरे को देते हुए कहा- तुम यह पंखा अपने पास रखो । जब कभी भी तुम्हें अपने से अधिक मूर्ख व्यक्ति मिले, तो यह पंखा उसे दे देना
राजा के कहने का यह अर्थ था कि वह मसखरा सबसे अधिक मूर्ख था। कई साल बीत गए एक दिन राजा बीमार हो गया। उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। उस समय मसखरा आता है और राजा के अंतिम दर्शन करते हुए उन्हें प्रणाम करता है और उनका हाल-चाल पूछता है।
राजा कहता है- मेरा स्वास्थ्य काफी नाजुक है। वैद्य कहते हैं कि मेरा अंतिम समय अब निकट आ गया
है । अब तो मुझे बहुत लम्बी यात्रा पर जाना है। मसखरा कहता है कि- क्या आपको पहले से ही
मालूम था कि आपको लम्बी यात्रा पर जाना है?
राजा कहते हैं- हाँ। यह बात में जानता था। हर इंसान जानता है कि एक दिन उसे इस संसार से लौट जाना है।
आगे मसखरा कहता है- क्या आपने उस लंबी यात्रा के लिए कोई तैयारी की है या नहीं?
राजा ने कहा- नहीं, मैंने तो कोई तैयारी नहीं की।
मसखरा उस समय अपनी जेब से वह पंखा निकालता है जो कई साल पहले राजा ने मसखरे को दिया था।
मसखरा राजा से कहता है, 'राजन! क्या आपको याद है, आपने यह पंखा देते हुए मुझसे कहा था कि यह पंखा उसे देना जो तुमसे अधिक मूर्ख हो । मैं यह पंखा आपको दे रहा हूँ। क्योंकि आपको इस बात का अच्छी तरह ज्ञान
था कि आपको लंबी यात्रा पर जाना है। इसके बावजूद भी आपने कुछ तैयारी नहीं की है । राजन! इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है?
मेरे प्रियजनों! हमारी हालत भी ऐसी ही है। आप स्वयं से प्रश्न कीजिए कि हमने कुछ तैयारी की है या नहीं? हम रोज यह सुनते हैं कि आज यह परलोक सिधार गया, आज वो परलोक सिधार गया, लेकिन हम कभी भी इस बात पर विचार नहीं करते, कि एक दिन हमें भी इस संसार से जाना है । हमें भी यह संसार छोड़कर आगे की यात्रा पर जाना है। हम समझते हैं कि हमें सदा के लिए इस संसार में रहना है।
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों, एक-एक को यह संसार छोड़कर आगे चलना है। ऐसा हमें बताया जाता है कि पुरुष, महिलाएं और बच्चे लगभग छः लाख हर रोज इस संसार से विदा लेते हैं । एक दिन हमारी बारी भी अवश्य आएगी। फिर हमने कुछ तैयारी की है या नहीं?
एक आदमी तैयार होकर ऑफिस जाने वाला था। जाने से पहले अपनी पत्नी से कहता है- मुझे एक प्याला चाय का दो। पत्नी रसोई घर में चाय बनाने जाती है। पति कुर्सी पर बैठकर चाय का इंतजार करता है। जैसे ही पत्नी चाय बनाकर लाती है, तो क्या देखती है कि उसके पति की गर्दन एक तरफ लुढ़क गई है। उसके पति परलोक सिधार गए हैं।
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों! हमारा शरीर एक मटके की तरह है। जिसमें लाखों, करोड़ों श्वास पड़े हुए हैं। एक-एक श्वास मटके से निकलता जा रहा है। जो श्वास मैंने अंदर लिया है, उसे बाहर जरुर निकालूंगा। लेकिन दूसरा श्वास ले पाऊंगा या नहीं, इस बात का कोई भरोसा नहीं है। गुरुदेव साधु वासवानीजी कहते थे- यह संसार एक ज्वालामुखी है। मारा समय फट रहा है। इसके लावा की ज्वाला कब किसको जला दे, इसका कोई भी भरोसा नहीं । इससे कोई नहीं बच सकता।
फिर हमने तैयारी की है या नहीं? हम कई काम करते हैं। अपने फर्ज का पालन करते हैं। घूमते हैं, फिरते हैं, खाते-पीते हैं, लेकिन हमने उस लंबी यात्रा के लिए कुछ तैयारी की है या नहीं?
फ्रांस के राजा का सलाहकार अपने राजा के संदेश को अलग-अलग देशों में ले जाता, काम खत्म करने के बाद वह उस शहर में घूमने निकलता और जो चीज भी उसे पुरानी और सुंदर (antiques) चीजें नजर आती वह उन्हें खरीद लेता । ऐसा करके उसने इतनी पुरानी अनमोल चीजें इकट्ठी कर लीं। उसका घर ही म्यूजियम जैसा बन गया था।
एक दिन वह बीमार पड़ गया। डॉक्टर ने कहा कि अब तुम आराम करो । बिस्तर से मत उठना । बिस्तर से उठोगे, तो कहीं ऐसा न हो तुम गिर जाओ ।
वह मन ही मन सोचता कि मैंने इतनी मेहनत से antiques संभालकर रखे हैं। मुझे विवेकरुपी लकड़ी से रोज पीटो। भोग से जीव तृप्त नहीं हो सकता । भोगी रोगी होता है। भोगी की भूख कभी शांत नहीं होती। त्याग में ही तृप्ति समाई हुई है। भोग से जीव तृप्त नहीं हो सकता । भोगी की भूख कभी शांत नहीं होती। उसके आंसू बह निकलते हैं। वह अपने आपसे कहता है कि मैं अपने साथ इनमें से एक भी चीज नहीं ले जा सकूँगा। अब इन चीजों का क्या फायदा?
मेरे प्रियजनों! हम अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकेंगे। हमने जो लाखों, करोड़ों रुपए कमाए हैं, सब कुछ यहीं छोड़ जाएंगे।
हम इस संसार में आए थे तो खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाएंगे। हमारे साथ सिर्फ प्रभू का नाम चलता है। प्रभू से प्रार्थना करो कि हे प्रभू... में जैसा भी हूं तेरा ही हूं। तुम मुझे कभी भी मत छोड़ना । मैं तुम्हारी शरण में हूं।
हर रोज थोड़ा समय बचाकर प्रभू से यह सरल प्रार्थना करें। प्रभू हमारे बहुत नजदीक है। हमारे हाथों पैरों और सांसों से भी अधिक नजदीक है।
अब सवाल यह उठता है कि हमें इस अंतिम यात्रा के लिए कौनसी तैयारी करनी चाहिए..
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों! आप सबको मेरा हार्दिक प्रणाम! सब संतों और सत्पुरुषों की यह शिक्षा है कि तुम दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार करो, जैसा तुम चाहते हो कि दूसरे तुम्हारे साथ करें। हमारा फर्ज है कि हम अपने आप को दूसरों की जगह पर रखकर विचार करें कि अगर यह मेरी जगह पर होता, तो मैं उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद करता। वैसा ही व्यवहार हमें उसके साथ करना चाहिए। तो फिर हम कभी भी किसी के दिल को ठेस नहीं पहुंचाएंगे। कितना सुंदर विचार है यह। इस शिक्षा को सुनहरा उसूल कहते हैं। सब शास्त्र यही कहते हैं कि तुम दूसरों से अलग नहीं हो। हम सब एक हैं।
हमें एक कदम और आगे जाना होगा। वह है प्रभु स्मरण हरपल। मन में प्रभु का ध्यान करें और दूसरों की सेवा करें।
एक दिन तो हमें इस संसार से जाना ही है। मौत आए, उससे पहले हमें अपना जीवन नया बनाना चाहिए। इस संसार का नियम है कि जो आया है, वह जाएगा। जिसकी शुरुआत हुई है, उसका अंत होना ही है।
प्राचीन पुस्तकों में ऐसा बताया गया है कि योगी, महायोगी अपने योग-साधना से हजारों वर्ष जीवित रहते थे। किंतु वे भी अपने शरीर को त्यागकर इस संसार से चल बसे। एक-एक को चलना ही होगा। इस संसार का यही दस्तूर है।
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों! इन्सान क्या है? इस सवाल के अलग-अलग जवाब दिए गए हैं। एक जवाब यह है कि इन्सान यात्री है। इन्सान जो पृथ्वी पर आया है, उसे एक दिन अवश्य वापस लौट जाना है। जिस यात्रा पर हमें वापस जाना है, उस यात्रा के लिए क्या हमने तैयारी की है?
यह शरीर एक मकान है। एक दिन इस शरीर रूपी मकान को खाली करके आगे की यात्रा पर चलना होगा।
(राजा और मसखरे की कथा)
एक राजा था। वह अपनी दरबार में बैठा था। दूर देश से उसके पास एक आदमी आया। उसने आकर राजा को एक पंखा दिया। राजा ने उस पंखे पर की हुई पेंटिंग देखी। राजा को वह पंखा बहुत पसंद आया। थोड़ी देर तक राजा ने उस पंखे का इस्तेमाल किया। फिर वह पंखा दरबार के एक मसखरे को देते हुए कहा—“तुम यह पंखा अपने पास रखो। जब कभी भी तुम्हें अपने से अधिक मूर्ख व्यक्ति मिले, तो यह पंखा उसे दे देना।”
राजा के कहने का यह अर्थ था कि वह मसखरा सबसे अधिक मूर्ख था। कई साल बीत गए। एक दिन राजा बीमार हो गया। वैद्य कहते हैं कि अब उसका अंतिम समय निकट है।
मसखरा आता है और राजा से कहता है—“क्या आपने उस लंबी यात्रा के लिए कोई तैयारी की है या नहीं?”
राजा ने कहा—“नहीं, मैंने तो कोई तैयारी नहीं की।”
मसखरा अपनी जेब से वह पंखा निकालता है जो कई साल पहले राजा ने मसखरे को दिया था। मसखरा कहता है—“राजन! आपने यह पंखा देते हुए मुझसे कहा था कि यह पंखा उसे देना जो तुमसे अधिक मूर्ख हो। मैं यह पंखा आपको दे रहा हूँ। क्योंकि आपको इस बात का अच्छी तरह ज्ञान था कि आपको लंबी यात्रा पर जाना है। इसके बावजूद भी आपने कुछ तैयारी नहीं की। राजन! इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है?”
मेरे प्रियजनों! हमारी हालत भी ऐसी ही है। आप स्वयं से प्रश्न कीजिए कि हमने कुछ तैयारी की है या नहीं। हम रोज यह सुनते हैं कि आज यह परलोक सिधार गया, आज वह परलोक सिधार गया, लेकिन हम कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि एक दिन हमें भी इस संसार से जाना है। हमें भी यह संसार छोड़कर आगे की यात्रा पर जाना है।
(आदमी की आकस्मिक मृत्यु की कथा)
एक आदमी तैयार होकर ऑफिस जाने वाला था। जाने से पहले अपनी पत्नी से कहता है—“मुझे एक प्याला चाय का दो।” पत्नी रसोई घर में चाय बनाने जाती है। पति कुर्सी पर बैठकर चाय का इंतजार करता है। जैसे ही पत्नी चाय लाती है, वह देखती है कि उसके पति की गर्दन एक तरफ लुढ़क गई है। उसके पति परलोक सिधार गए हैं।
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों! हमारा शरीर एक मटके की तरह है। जिसमें लाखों, करोड़ों श्वास हैं। एक-एक श्वास मटके से निकलता जा रहा है। जो श्वास मैंने अंदर लिया, उसे बाहर जरूर निकालूंगा। लेकिन दूसरा श्वास ले पाऊंगा या नहीं, इसका कोई भरोसा नहीं।
फिर हमने तैयारी की है या नहीं? हम कई काम करते हैं। घूमते हैं, खाते-पीते हैं, लेकिन हमने उस लंबी यात्रा के लिए कुछ तैयारी की है या नहीं?
(फ्रांस के राजा और antiques कहानी)
फ्रांस के राजा का सलाहकार अपने राजा के संदेश को अलग-अलग देशों में ले जाता। काम खत्म करने के बाद वह उस शहर में घूमने निकलता और जो चीज भी उसे पुरानी और सुंदर (antiques) नजर आती, वह उन्हें खरीद लेता। ऐसा करके उसने इतनी पुरानी अनमोल चीजें इकट्ठी कर लीं। उसका घर ही म्यूजियम जैसा बन गया था।
एक दिन वह बीमार पड़ गया। डॉक्टर ने कहा—“अब तुम आराम करो। बिस्तर से मत उठो।”
वह सोचता है—“मैंने इतनी मेहनत से antiques संभालकर रखे हैं। मुझे विवेकरुपी लकड़ी से रोज पीटो। भोग से जीव तृप्त नहीं हो सकता। भोगी रोगी होता है। भोगी की भूख कभी शांत नहीं होती। अब इनमें से एक भी चीज मेरे साथ नहीं जाएगी।”
मेरे प्रियजनों! हम अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकेंगे। हमने जो लाखों, करोड़ों रुपए कमाए हैं, सब कुछ यहीं छोड़ जाएंगे।
हम इस संसार में आए थे तो खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाएंगे। हमारे साथ सिर्फ प्रभु का नाम चलता है। प्रभु से प्रार्थना करो—“हे प्रभू, जैसा भी हूं तेरा ही हूं। तुम मुझे कभी मत छोड़ना। मैं तुम्हारी शरण में हूं।”
हर रोज थोड़ा समय बचाकर प्रभु स्मरण करें। प्रभु हमारे बहुत नजदीक हैं।
तैयारी के उपाय:
-
प्रभु नाम उच्चारण – कोई भी नाम जो हृदय को भाए।
-
एकांत में समय – रोज 5–10 मिनट बैठकर प्रभु से नाता जोड़ें।
-
आलोचना न करें – किसी की निंदा करने से अपने गुण खोते हैं।
-
सेवा और मदद – जितनी सेवा कर सकते हो करें।
जैसे-जैसे हम प्रभु के साथ नाता जोड़ते हैं, उसका स्मरण करते हैं, हमें अहसास होता है कि जो कुछ भी होता है, वह प्रभु की आज्ञानुसार ही होता है।
SARAL VICHAR
-----------------------------------------------
Topics of Interest
“Life journey preparation, Mrityu se pehle ki tayari, Prabhu smaran tips, Spiritual kahani, Golden rule life, Antim yatra preparation, Insaan ki journey, Raja aur maskhara story, Antiques kahani, Bhakti aur seva, Death awareness”

0 टिप्पणियाँ