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सोना जैसी पत्नी का Sacrifice | Crime to Life Transformation Story


अपराध से ईमानदारी तक  - www.saralvichar.in

 

वह गहने चाहता था, लेकिन उसने कहीं ज्यादा कीमती सोना पा लिया। इस सोने की चमक ने उसकी किस्मत ही बदल दी।

गाड़ी आधा घंटा लेट थी। प्लेटफार्म पर कोई टी-स्टॉल नहीं था। इसलिए मैं चाय पीने के लिए रेल्वे कैंटीन में गया। कैंटीन लोगों के शोरगुल से भरी हुई थी। मैं कोने में पड़ी हुई एक चेयर पर बैठ गया। चाय पी ही रहा था कि एक आदमी को कैंटीन में प्रवेश करते देखकर जल्दी से चाय खत्म कर उसके पास गया। वह अब तक एक कुर्सी पर बैठ चुका था और वेटर को बुलाने के लिए इधर-उधर देख रहा था।

“तुम्हारा नाम ईश्वरदीन है न?” मेरा सवाल सुनकर वह आश्चर्य से मुझे देखने लगा।
“आप... आपको कैसे मालूम?” वह लगभग हकलाते हुए बोला।

मैंने अपना परिचय नहीं दिया। उसे झांसे में लेकर ही जानकारी प्राप्त हो सकती थी। हम दोनों एक ही गाँव के रहने वाले थे, परंतु समय का लंबा अंतराल बीत चुका था। चार साल पहले वह गाँव की एक लड़की को भगा कर ले गया था। कोई नहीं जान पाया कि वह कहाँ गया।

पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने प्रतियोगी परीक्षा में बैठकर कठिन परिश्रम के बाद प्रशासनिक अधिकारी बन गया। अफसर बनने के बाद मुझमें रौब आ गया था, इसलिए ईश्वरदीन मुझे पहचान नहीं पाया।

बदमाश किस्म का आदमी था। गाँव में छोटी-मोटी चोरी करता और कभी-कभी मारपीट भी। किसी को उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं होती थी। लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि वह गाँव की भोली लड़की को शहर में भगा ले जाएगा। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कर दी गई थी, लेकिन लड़की के माता-पिता गरीब थे, मामला तूल नहीं पकड़ पाया।

आज वही ईश्वरदीन मेरे सामने बैठा था। उसकी आँखों में भय की छाया थी। शायद उसने लड़की को बेच दिया था। तभी ख्याल आया कि पुलिस का डर दिखाकर उससे जानकारी ली जा सकती है।

“अगर वह तुम्हारी पत्नी है, तो मुझे उसके पास ले चलो,” मैंने गुर्राते हुए कहा।
“चलिए हुजूर, आप उसी से पूछ लीजिएगा कि वह मेरी पत्नी है या नहीं?” उसने कहा।

ईश्वरदीन ने मुझे एक घनी बस्ती में ले जाकर गली के एक मकान की तीसरी मंजिल पर पहुँचाया। कुछ पल बाद एक औरत ने दरवाजा खोला—वही लड़की थी, जिसे ईश्वरदीन ने गाँव से भगा कर लाया था।

“यह है मेरी बीवी सोना। क्या बात है जी?” ईश्वरदीन ने कहा।
“हम तो कानूनी तौर पर शादीशुदा हैं। हमने कोई अपराध नहीं किया,” सोना ने कहा।

मैं आश्चर्यचकित था। सोना ने उसे अपराध की दुनिया से दूर रहने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने चोरी न करने की कसम खाई और ईमानदारी से जीवन बिताना शुरू किया। सोना के जेवर बेचकर उन्होंने एक सब्जी की दुकान खरीदी और धीरे-धीरे पैसा जोड़कर फ्लैट लिया। सोना सचमुच सोना थी—उसकी छाया में ईश्वरदीन ने नया जीवन पाया।

मैं बहुत खुश हुआ। अपराधी सुधर गया था। किसी ने ठीक कहा है कि औरत चाहे तो आदमी को महान बना दे या पतन की गर्त में गिरा दे।

ईश्वरदीन फिर से मेरा चेहरा देखकर चौंक गया। सोना ने मुझे गाँव के हाल-चाल पूछने शुरू किए। मैंने कहा, “अगली बार गाँव जाते समय पहले मैं तुम्हारे पास आऊँगा, फिर हम सब साथ में गाँव चलेंगे।”
सोना का चेहरा खिल उठा। दोनों के सुखी जीवन को देखकर मैं भी मुस्करा रहा था।

- राजेश भ्रमर

SARAL VICHAR 

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