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गुस्से को शांत कैसे करें | Smart Handling of Anger Situations


चौहान साहब और सरदार जी: समझदारी की जीत   - www.saralvichar.in


यह सच्चा किस्सा है, और मेरे बैच मेट का है, जिनका नाम बीएस. चौहान है। बात दिल्ली की है। हुआ यूं कि चौहान साहब की गाड़ी दूसरी गाड़ी से जरा सी रगड़ खा गई। हालांकि मामला तो थोड़ी सी खरोंच का ही था, लेकिन सरदार जी थे कि बस पीछे ही पड़ गए।  सरदारजी ने तैश में आकर चौहान साहब से बोला तुसी रम पीके गड्डी चलांदे हो। चौहान साहब परेशान । करें तो क्या करे। अफसर आदमी वैसे भी इस तरह की स्थितियों से परेशान हो जाता है। खैर।

तो चौहान साहब ने सरदार जी से कहा सरदारजी, आपने तो कमाल ही कर दिया। मैं स्कॉच पिन्दा हूं । मैं जिन भी पिन्दा हूं। आज पहली बार रम पी थी, और आपने इतनी दूर से पहचान लिया कि मैंने रम पी रखी है कमाल के आदमी हैं जी आप।

यह सुनकर सरदार जी बोले, जरा कम पिया कर। और अपना मोबाइल नम्बर देकर चलते बने चौहान साहब बच गए। मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि चौहान साहब चाय के सिवाय काफी और कोल्ड ड्रिंक्स तक नहीं लेते। हां, बहुत जिद करने पर कभी-कभी लस्सी का शौक जरूर फरमा लेते हैं, और वह भी केवल भरी गर्मी में।

थोड़ी देर के लिए सोचकर देखिए कि यदि चौहान साहब की जगह आप होते, तो आप क्या करते। मुझे लगता है कि इस बारे में विचार करना एक रोचक और रोमांचक एक्टिविटी हो सकती है। आप में से कुछ, जिसमें मैं खुद भी शामिल सरदार जी को गलत सिद्ध करने में लग जाते। कुछ स्वयं की गलती मानकर माफी मांग लेते। कुछ लोग एक ऐसी बहस खड़ी कर देते कि सुनने वालों की समझ में ही नहीं आ पाता कि यहां हो क्या रह रहा है। कुछ लोग यदि हाथापाई तक पर उतर आएं, तो कोई बड़ी बात नहीं है। इसी तरह की कुछ कुछ और बातें हो सकती है।

लेकिन चौहान साहब ने क्या किया? इनमें से उन्होंने एक भी नहीं किया। उन्होंने एकदम से हटकर किया। पहली बात तो यह कि उन्होंने रम पीने के सरदार जी के आरोप को स्वीकार करके गाड़ी को लगने वाली खरोंच की जिम्मेदारी रम पर डाल दी और खुद को बचा लिया। बजाय इसके कि वे रम पीने के गलत आरोप को झुठलाने की बहस में उलझते| उन्होंने उस आरोप को स्वीकार कर लेने की समझदारी दिखाई। साथ ही उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से सरदार जी की इस काबिलियत की तारीफ भी कर दी कि उन्हें किसी चीज की कितनी अद्भुत पहचान है।

किसी को गुस्सा आ रहा हो, आप बिना गुस्सा हुआ सामने वाले के ईगो को थोड़ा सा सहला दीजिए, उसका गुस्सा शांत हो जाएगा। बड़े लोगों को उनके बड़प्पन की याद दिला दीजिए, उनका क्रोध शांत हो जाएगा। बराबर वालों से थोड़े संतुलन के साथ बात कर लीजिए, वे अपने क्रोध से मुक्त हो जाएंगे। और छोटों के गुस्से पर स्नेह के थोड़े से छीटें छिड़क दीजिए, उनकी आग ठण्डी पड़ जाएगी।

लेकिन हम सभी से होता है ठीक उसके उलट। हमारा अपना ईगो हमें ऐसा नहीं करने देता, और हम आग में घी डालकर आग को बुझाने की नाकाम कोशिश में लगे रहते हैं। क्या ऐसा नहीं है?

डॉ.विजय अग्रवाल,

लेखक समय एवं जीवन प्रबंधन के विशेषज्ञ

 

SARAL VICHAR

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