मां की गोद में
ननिहाल जाता मैं
कभी सोच ही नहीं पाया
उन दिनों
नानी को देखकर भी
कि मां की भी कोई मां हो सकती है
ज्यादा से ज्यादा
मैंने यही सोचा
कि मुझे ननिहाल दिखाने के लिए मां ले आती है यहां
और खुद भी आ जाती है
साथ-साथ
ननिहाल जाता मैं
कभी सोच ही नहीं पाया
उन दिनों
नानी को देखकर भी
कि मां की भी कोई मां हो सकती है
ज्यादा से ज्यादा
मैंने यही सोचा
कि मुझे ननिहाल दिखाने के लिए मां ले आती है यहां
और खुद भी आ जाती है
साथ-साथ
पर एक दिन
ननहिाल से आया संदेश
जब पड़ा धीरे से मां के कानों में,
एकबारगी सूनी-सी हो गई मां
फिर नैनों में भर आया नीर
और वैसे ही रोई मां
जैसे मैं रोया करता था
मां से जरा दूर होते ही।
उस दिन भी मां के पास खड़ा मैं भी रोया
मेरी मां जो रोई थी
उस दिन से मां के क्षण-क्षण में चस्पा वह उदासी
और गहरा जाती है
ननिहाल और नानी का जिक्र छेड़ते ही।
मां की पथराई आंखें जैसे कह रही हों
बेटा
नानी बिना कैसा ननिहाल
नानी बिना कैसा ननिहाल...
और मेरे आंसू
जैसे मां की आंखें पोंछते हुए
सोच सकते हैं आज कि
मां की भी कोई मां थी
एकदम वैसी ही जैसी अद्भुत है मेरी मां
SARAL VICHAR
0 टिप्पणियाँ