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बच्चों के स्वभाव को कैसे समझें | BACHON KE SWABHAW KO KAISE SAMJHEN | HOW TO UNDERSTAND THE NATURE OF CHILDREN | SARAL VICHAR

बच्चों के स्वभाव को कैसे समझें  | BACHON KE SWABHAW KO KAISE SAMJHEN | HOW TO UNDERSTAND THE NATURE OF CHILDREN  - www.saralvichar.in

आपके प्रश्न और जो आपको ठीक लगें, वे उत्तर। 

प्रश्न- बच्चों की जिद और शरारतों को कैसे कंट्रोल करें? क्यों बड़ों के समझाने का असर नहीं होता? 

उत्तर- बच्चे तो बच्चे हैं। वे जिद भी करेंगे । आप उनकी जिद को कंट्रोल कर सकते हैं । यह भी देखिए कि वह जिद आपकी हद तक हो। दूसरों को इसका नुकसान भी न हो। बच्चे अपने मां-बाप से जिद करते हैं । आप  उनकी जिद को दूसरी तरफ भी मोड़ सकते हैं ताकि वे कुछ नया करें, अलग करें। आप बच्चों को बच्चा समझकर बात मत करिए। वे आपसे ज्यादा होशियार होते हैं।

अगर बच्चा कोई गलत काम करता है तो मां बाप उसकी तारीफ करते हैं ।
हम देखते भी हैं कि हम बच्चे को तो मना करेंगे कि ऐसा नहीं करते, किंतु बाद में उसकी तारीफ करते हैं कि मेरा बच्चा तो किसी की भी नहीं मानता, अपने दादा को भी गाली दे देता है। वह बातें बच्चा सुनता है और फिर वही बात करता है।

अगर बच्चे ने कोई शरारत की है तो उसे उसी वक्त डांटिए, बड़ा है तो समझाईए । शरारत भले ही छोटी हो किंतु आपने यदि उसकी मौसी, नानी के सामने कहा कि बड़ा जिद्दी हो गया है  यह बातें सुनकर बच्चे को और आयडिया आता है। उसकी जिद और बढ़ जाती है।

फिर कोई दूसरा व्यक्ति आया और आपने यह कहा कि यह इतना जिद्दी हो गया है कि इसकी तो जिद पूरी करनी ही पड़ती है। वह बच्चा फिर वह बातें सुनता है। आप ऐसी बातें करके उसे और ज्यादा बढ़ावा दे रहे होते हैं। आप उसे बढ़ावा मत दिजिए।

मान लिजिए किसी चीज के लिए आपका बच्चा जिद कर रहा है तो उसे कहिए बेटा और चिल्लाओ। वह सोचेगा कि इनको तो फर्क ही नहीं पड़ रहा है तो वह चुप हो जाएगा। उसे कहो जोर से चिल्लाओ बेटा! दूर तक आवाज जानी चाहिए।


आपने जिद पूरी की फिर बाद में आप ही कहते हो कि इसकी जिद पूरी करनी पड़ती है वरना यह इतना रोता है कि रो-रोकर इसका दम निकल जाता है। वह बातें बच्चा सुनता है।

मां-बाप बच्चों की जिद को किसी के सामने रिपीट मत करो । 

हम बच्चों की बुराईयों को शान से दूसरों को कहते हैं ।

एक ऐसा ही किस्सा है। एक आदमी जुआ खेलता था। उसकी बीवी ने उससे तलाक लेना चाहा । कुछ बड़े लोग इकट्ठे हुए। उस आदमी ने कहा कि मैं जुआ नहीं छोड़ सकता । लोग कहने लगे- हां भाई, यह आदमी है। आदमी को तो ऐसा ही होना चाहिए, अपनी बात का पक्का है। लोग उसकी तारीफ करने लगे ।

ठीक इसी तरह, ऐसे ही बोलने से बच्चों की जिद बढ़ती जाती है।

मां को चाहिए कि बच्चा जब जिद शुरु करे तो उसे नोट किजिए कि वह कब जिद करता है, क्यों जिद करता है। क्या वह भूखा तो नहीं है? क्या वह रात को जिद करता है या दिन में अधिकतर जिद करता है? यह आपको ध्यान रखना होगा । अगर वह उस समय खाली दिमाग होता है या शरारत करता है तो आप उसे किसी भी काम में व्यस्त रखिए । १-२ साल का बच्चा भी व्यस्त रह सकता है। जैसे- उसे पानी भरने के लिए कहो, पेड़ों में पानी देने के लिए कहो । पहले-पहले वह भले पानी गिराएगा तो कोई बात नहीं। बच्चों को छोटा गिलास दिजिए। आप उसकी एनर्जी को इस्मेताल करो।

अगर आपको लगता है कि बच्चा दिवारों पर लकीरें कर रहा है, लिख रहा है तो उसे बड़ी शीट या बड़े-बड़े पेपर लाकर दो। बोर्ड लाकर लगा दिजिए या कोई निशाना मार रहा है तो उसे एक ही जगह पर ही ऐसी कोई चीज लगाकर दीजिए कि वह वहां पर निशाना लगाए। अगर वह चिल्लाता है तो भगवान का नाम या पहाड़े, स्पेलिंग बोलने को कहिए। उसकी एनर्जी को वहां पर लगाईए।

हम बच्चे को हमेशा कहते हैं कि यह मत करो, वह मत करो। वह इससे परेशान हो जाता है कि मैं आखिर क्या करुं? २-४ साल के बच्चे की एनर्जी को आप दूसरी दिशा में लगा सकते हैं, इसमें कोई बड़ी बात भी नहीं है। आप जिस चीज को करने से मना करते हो, वह बच्चा आपके सामने नहीं करेगा तो आपके पीठ पीछे करेगा।

बच्चे को 'यह मत करो' कि जगह 'यह करो , कहा करो।

वहां मत जाओ' ऐसा न कहकर 'यहां जाओ या वहां निशाना मारो' कहा करो । वह पानी में खेल रहा हो तो उसे कहो कि हम आपको नहलाएंगे उस समय आप पानी से खेलना । उसे फिर नहलाते वक्त पानी दिजिए, थोड़ी देर उसे खेलने दिजिए। उसे अपना शौक खत्म करने दिजिए। फिर नहलाईए। उसे हर चीज के लिए रोकना सही नहीं है। उसे सिर्फ सही तरह से समझाना है। आपके नहीं कहने पर वह आपके सामने न करकर आपके जाने के बाद वही बातें करता है जो आपने सोची भी नहीं होंगी।

जिद्दी-जिद्दी बोलने से बच्चा उस बात को पकड़ लेता है। अगर आप किसी से कहते हैं कि मेरा बच्चा पढ़ने में होशियार है तो वह उसी समय किताब लेकर आ जाता है और पढ़ने बैठ जाता है।

-एडवोकेट फैज़ सैय्यद

 

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