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भगवान बुद्ध के विचार | BHAGWAAN BUDDH KE VICHAR | THOUGHTS OF LORD BUDDH | (INNER SEARCH) SARAL VICHAR

 

भगवान बुद्ध के विचार (भीतर की खोज)

भगवान बुद्ध के विचार (भीतर की खोज) | Thoughts of Lord Buddha (Inner Search) - www.saralvichar.in
 
जिनके पास संपदा है
उन्हें ही पता चलता है संपदा व्यर्थ है।

जिनके पास शक्ति है
उन्हें पता चलता है कि शक्ति साथर्क नहीं ।

जिनके पास नहीं है
वे तो वासना के महल बनाते ही रहते हैं।

जिसे हम पा नहीं पाते
उसे मत समझना कि हमने छोड़ा है।

जीवन के जो परम गहरे सत्य हैं वे केवल उन्हें ही पता चलते हैं, जो पके हैं, जिन्होंने जिंदगी में जल्दबाजी नहीं की, अधैर्य न बरता,

जो समय से पहले भाग न खड़े हुए।

पलायन से कोई कभी परमात्मा तक नहीं पहुंचा । न पराजय से कभी कोई त्याग फलित हुआ है। जिन्होंने भोगा, उन्होंने ही त्याग किया है। जिसने भोगा ही - नहीं, वह त्याग न कर सकेगा । त्याग में भोग की वासना छिपी ही रहेगी। वह त्याग भी करेगा तो भोग के लिए करेगा, इसी आशा में करेगा कि परलोक में भोग मिलने को है। जहां वासना नहीं, वहां परलोक कैसा? जहां वासना नहीं वहां स्वर्ग कैसा? जहां वासना नहीं, वहां कल्पवृक्ष नहीं लगते । कल्पवृक्ष, वासनाओं का ही विस्तार है।

जो इस जिंदगी में जीत न पाया वह परलोक की जिंदगी में जीतने के सपने देखता है । आदमी दुःख में रहा है, इसलिए स्वर्ग की संभावना पैदा करता है। यहां के दुःख सहने योग्य हो जाते हैं, वहां के सुख की आशा में। आज की तकलीफ को आदमी झेल लेता है, कल के भरोसे में। रात का अंधेरा भी अंधेरा नहीं मालूम पड़ता क्योंकि ये याद रहता है कि कल सुबह होगी। आदमी चाह के सहारे चलता रहता है। सारी बात तुम पर निर्भर है। तुम्हारा मंदिर तुम्हारे परमात्मा तक पहुंचने का द्वार भी बन सकता है या ये भी हो सकता है कि वही दिवार बन जाए।

धर्म जागरण भी बन सकता है और गहन मूर्छा भी। धर्म न जहर है न अमृत । होशियार, जहर को भी पीता है तो औषधि हो जाती है। नासमझ अमृत भी पीए तो मृत्यु हो सकती है। रस्सी से कुएं से पानी भी खींच सकते हो और गले में फांसी भी लगा सकते हो ।

धर्म तो एक सत्य है। तुमने धर्म को अगर शास्त्र से पाया है तो खतरा है। क्योंकि शास्त्र तो मुर्दा है। शास्त्र  को पढ़कर, तुम जो अर्थ करोगे, वे तुम्हारे होंगे। माना तुम गीता पढ़ोगे, लेकिन गीता वह नहीं होगी जो अर्जुन को श्रीकृष्ण ने कही थी और वह भी नहीं होगी जो अर्जुन ने सुनी थी । जब तुम गीता पढ़ोगे तब तुम ही कृष्ण होगे और तुम ही अर्जुन होवोगे । कृष्ण ने कहा था और अर्जुन ने जो सुना था उसका अर्थ भी तुम ही करोगे। ये गीता तुम्हारी ही होगी। तुम जो सुन सकते हो, वही सुनोगे । वह कुरुक्षेत्र का युद्ध नहीं होगा । वह तो तुम्हारे भीतर का द्वंद होगा। शास्त्र से जिसने धर्म पाया, उसने बंधन पाया। जीवन तो गुरु से पाना है। जहां अभी उपदेश बहता हो । जीवित गुरु से जीवन पाने की कोशिश करना । शास्त्र तो असहाय हैं। शास्त्रों से खतरा है, ऐसा नहीं है।

खतरा तुममें है। जीवित व्यक्ति ही तुम्हें खींचकर निकाल पाएगा। तुम अगर शास्त्रों की व्याख्या गलत करोगे तो शास्त्र यह न कह पाएगा कि यह गलत है। शास्त्र के पास कोई आत्मा नहीं । हम मरे हुए को पूजते हैं और जीते हुए को पहचानते ही नहीं।

जब बुद्ध पृथ्वी पर चलते थे तो कोई चिंता नहीं करता था जब मर जाते हैं तो हजारों साल तक पूजा चलती है। ये पूजा व्यर्थ है। जीवित बुद्ध के चरणों में झुकाया गया जरा सा सिर.... तो क्रांति घटित हो जाती। ये हजारों साल की पूजा और विधान सब व्यर्थ चले जा रहे हैं पत्थर की मूर्ति के आगे झुकना कितना आसान है क्योंकि यहां कोई है ही नहीं। जिसके सामने तुम झुक रहे हो, वह तुम्हारी ही मूर्ति है। जैसे तुम स्वयं दर्पण के सामने स्वयं के आगे झुक रहे हो।

संत शैलेन्द्र (ओशो)
 
 
SARAL VICHAR 

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