स्टीव जॉब्स की कहानी उन्हीं की जुबानी
* स्टीव जॉब्स एप्पल कंपनी के को.
फाउंडर याने इस कंपनी को इन्होंने खड़ा किया। ये एक सफल बिजनेसमैन थे। आईए
इनके द्वारा कही हुई इन्हीं की कहानी को पढ़ते हैं । उन्होंने
किसी कॉलेज के समारोह में मुख्य अतिथी (चीफ गेस्ट) बनने पर यह बातें कही
थीं।
......शुक्रिया, आज मैं दुनिया के सबसे बेहतरीन कॉलेज के दीक्षांत
समारोह (डिग्री देनेवाले दिन) में शामिल होकर मुझे गर्व हो रहा है। मैं
आपको एक सच बताना चाहता हूं कि मैंने कभी किसी कॉलेज में ग्रेजुएशन नहीं
किया । मैंने जब कॉलेज में दाखिला लिया तो 6 महीने के अंदर ही मैंने पढ़ाई
छोड़ दी। पर मैं उसके 18 महीने तक वहां किसी तरह आता-जाता रहा। अब सवाल यह
उठता है कि मैंने कॉलेज क्यों छोड़ा?
यह बात मेरे जन्म लेने से पहले
की है। मुझे जन्म देनेवाली एक कुंवारी मां थी । वह मुझे किसी और को गोद
देना चाहती थीं । उनकी ख्वाहिश थी कि कोई पढ़े लिखे लोग हों जो मुझे गोद
लें। एक वकील दंपति ने मुझे गोद लेने का निर्णय किया । किंतु मेरे पैदा
होते ही उन्होंने अपना विचार बदल दिया । उन्होंने कहा कि वे किसी लड़की को
गोद लेना चाहते हैं। इसलिए तब आधी रात को किसी दूसरे दंपति को फोन किया गया
। उन्होंने मेरी मां से पहले कहा था कि वे मुझे गोद लेना चाहते हैं पर वे
ज्यादा पढ़े-लिखे न होने के कारण मेरी मां ने उन्हें मना कर दिया था।
उन्होंने वचन दिया कि वे मुझे खूब पढ़ाएंगे। मेरे होने वाले पिता हाई-स्कूल
भी पास नहीं थे। में उनके घर आ गया। मेरे माता-पिता दोनों काम करते थे और
मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाने भेजते थे ।
स्कूल खत्म होने पर मैंने मंहगा
कालेज चुन लिया। 6 महीने बाद ही मुझे लगने लगा कि मेरे माता-पिता बहुत
मेहनत से मुझे पढ़ा रहे हैं तो मैंने रेग्यूलर कांलेज न जाकर जो मेरे पसंद
की क्लासेस ज्वाईन करने लगा । उस समय पढ़ाई छोड़ना बहुत डरावना था । पर अब
पीछे मुड़कर देखता हूं तो लगता है कि यह मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा डिसीज़न
(निर्णय) था । पढ़ाई तो छोड़ दी पर मैं आगे क्या करुं यह मुझे समझ नहीं आ
रहा था । मेरे पास रहने के लिए कोई रुम नहीं था । में अपने दोस्तों के साथ
रहता । फर्श पर सोता । (वहां ठंड बहुत अधिक होती है ।) कोक की बोतलों को
बेचकर जो पैसे मिलते उन पैसों से खाना खाता था। हर रविवार को 7 मील दूर हरे
कृष्णा का मंदिर था वहां जाकर भरपेट खाना खाता । हफ्ते में 1 बार भरपेट
भोजन करता था।
मैं जहां जरुरी क्लास जाता था वहां कॉलीग्राफी
calligraphy सिखाई जाती थी। मैं रेग्यूलर कॉलेज में नहीं जाता था पर मैंने
ठान लिया कि कॉलीग्राफी की क्लास मैं जरुर करुंगा । इसे अच्छे से सीखूंगा ।
मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि जो विषय मुझ अभी अच्छा लग रहा है, जो मैं
सीख रहा हूं वह मुझे आगे जिंदगी में काम आएगा । लेकिन जब दस साल बाद हम
कम्प्यूटर बना रहे थे तब यही ज्ञान मुझे काम आया । मेरा स्वयं डिज़ाइन किया
हुआ दुनिया का पहला कम्प्यूटर बन गया । अगर मैंने कॉलेज से ड्रॉप-आऊट
नहीं किया होता तो
calligraphy का कोर्स भी नहीं किया होता । अभी जो पर्सनल कम्यूटर में जो fonts होते हैं वे नहीं होते ।
यह सच ही है
कि हम भविष्य में नहीं झांक सकते किंतु यही तो वे बिंदु (डाट्स) है जो
पूरी रेखा बनाते हैं। आपको यकिन करना होगा कि अभी जो आपके साथ हो रहा है वह
आगे चलकर आपके भविष्य से जुड़ जाएगा हमें अपने कर्म, अपने भाग्य में
विश्वास करना ही होगा।
* मेरी दूसरी कहानी यह है कि मैं जब 20 साल का
था तो एप्पल कंपनी शुरु की । 2 साल में ही यह दो लोगों से बढ़कर 4000 लोगों
की कंपनी हो गई । हमने बहुत मेहनत की थी। जब मैं 30 साल का था तो मुझे
कंपनी से निकाल दिया गया ।
आप अपनी ही बनाई कंपनी से कैसे निकाले जा
सकते हैं? जब कंपनी की तरक्की हो रही थी तो हमने एक ऐसे आदमी को रखा जो
टैलेंटेड था । हम दोनों में मतभेद होने लगे । बात board of director तक
पहुंची। उन लोगों ने उसका साथ दिया और जैसे सब कुछ खत्म हो गया । मुझे अगले
कुछ महीनों तक समझ ही नहीं आया कि यह क्या हो गया।
मुझे महसूस हुआ
कि यह सब कबूल करके अपनी आने वाली पीढ़ी को भी नीचा दिखाया है । फिर भी
मैंने बोर्ड के डायरेक्टरों डेविड और बॉब नॉयसे से माफी मांगी। इन बातों के
होने पर भी मेरे काम करने के जुनून में कोई कमी नहीं आई थी।
आज मैं
सोचता हूं कि अगर मुझे उस समय निकाला नहीं गया होता तो आज में जिस मुकाम
पर हूं, वहां नहीं होता । मैं अब भी अपने काम से प्यार करता हूं ।
सक्सेसफुल होने का बोझ अब बिगनर (beginner) होने के हल्केपन में बदल चुका
था । मैं अब खुद को हल्का महसूस कर रहा था । इन सबकी वजह से मैं और ज्यादा
क्रिएटिव हो गया। अगले 5 सालों में मैंने एक और कंपनी नेकस्ट (NeXT)
शुरु की। फिर दूसरी कंपनी पिक्सार शुरु की, बाद में नेक्स्ट कंपनी को एप्पल
कंपनी ने खरीद लिया मैं एप्पल में वापिस चला गया । ।
आज मैं कह
सकता हूं कि मुझे एप्पल से निकाला नहीं होता तो मेरे साथ यह सब नहीं होता ।
यह एक कड़वी दवा थी। जो मेरे लिए उस वक्त जरुरी थी। मैं यकीन के साथ कह
सकता हूं कि मैं इसलिए आगे बढ़ता गया क्योंकि में अपने काम से प्यार करता
था।
आप असल में क्या पसंद करते हैं यह आपको ढूंढना होगा । उस काम को
कीजिए जिसे आप enjoy करते हैं। फिर कभी उस काम को करना नहीं पड़ेगा । वह
तो आपका मनोरंजन ही होगा । यदि आपको वह काम अभी तक मिला नहीं है तो रुकिए
मत, ढूंढते रहिए।
* तीसरी कहानी मौत के बारे में है । जब मैं 17 साल
का था तो एक कहावत सुनी थी कि आप हर रोज ऐसे जीएं जैसे कि यह आपकी जिंदगी
का आखरी दिन है। बस उसी वाक्य ने मेरे दिमाग में यह बात बिठा दी। पिछले 33 साल से मैं रोज सुबह उठकर आईने में देखता हूं और खुद से पूछता हूं- ‘अगर ये
मेरी जिंदगी का आखरी दिन होता तो क्या मैं वो करता जो मैं करने वाला हूं ।
अगर जवाब 'नहीं मिलता है तो मुझे लगता है कि कुछ बदलने की जरुरत है। मैं
इस बात को हमेशा याद रखता हूं कि मैं बहुत जल्द मर जाऊंगा । मुझे अपनी
जिंदगी में बड़े फैसले लेने में यह बात हमेशा मदद करती है। फिर सारा डर
खत्म हो जाता है। इस बात को याद रखना कि एक दिन मरना है... किसी चीज को
खोने के डर को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है... आप पहले ही नंगे हैं।
इससे आप अपने दिल की बात जरुर सुनेंगे ।
करीब एक साल पहले मुझे पता चला
कि मुझे कैंसर है। स्कैन में पता चला कि मेरे pancreas में tumor है। मुझे
तो पता भी नहीं था कि यह क्या होता है। डॉक्टर ने यकीन के साथ बताया कि
मैं 3 से 6 महीने का मेहमान हूं। डॉ. ने कहा कि मैं घर जाऊं और अपनी चीजें
व्यवस्थित करें । इसका सीधा अर्थ यह था कि अब आप मरने की तैयारी कर लिजिए।
इसका मतलब यह कि आप अपने बच्चों से जो बातें अगले दस साल में करते वे कुछ
महीनों में कर लिजिए। चीजें ठीक कर लिजिए ताकि आपकी फैमिली को बाद में कम से कम परेशानी हो।
मैंने
पूरा दिन वहीं हॉस्पिटल में बिताया । वहां डॉक्टर ने सुई के जरिए कुछ
सेल्स निकाले और कहा कि यह दुर्लभ प्रकार का कैंसर है पर यह सर्जरी से ठीक
हो सकता है। आज में सौभाग्य से यहां पर आपके सामने बिल्कुल ठीक हूं।
मौत
के इतना करीब मैं पहले कभी नहीं पहुंचा था। यह सब देखने के बाद मैं और भी
विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि मौत एक जरुरी और कभी भी किसी के साथ भी हो
सकती है। पर मरना कोई नहीं चाहता । वे लोग भी जो लोग स्वर्ग जाना चाहते हैं
किंतु वे भी मरना नहीं चाहते । मौत वह मंजिल है जिसे हम दूसरों में बांटना
चाहते हैं । मौत ही तो जिंदगी का सबसे बड़ा -अविष्कार है। यह जिंदगी को
बदलती है। पुराने को हटाकर नए के लिए रास्ता खोलती है।
आपका समय
सीमित है। इसलिए इसे किसी और की जिंदगी जीकर व्यर्थ मत कीजिए। बेकार की सोच
में मत फंसिए। अपनी जिंदगी को दूसरों के हिसाब से मत चलाईए । औरों के
विचारों के शोर में अपनी अंदर की आवाज को मत डूबने दिजिए।
नोट- यह स्पीच
(आपबीती) 12 जून 2005 में स्टीव जॉब्स ने दी थी।
उनका देहांत -5 ऑक्टोबर 2011 में हुआ।
SARAL VICHAR
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