क्या पुनर्जन्म होता है?
(जब मन बिल्कुल शांत हो, तभी इसे पढ़े वरना ये बातें आपके दिमाग मे नहीं जाएंगी। आप कहेंगे कि ये बिल्कुल निर्रथक बातें हैं। किंतु जीवन का यही सत्य है।)
प्राचीन समय में शूरसेन प्रदेश में राजा चित्रकेतू को कई रानियां थीं । लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। एक दिन अचानक अंगीरस ऋषि आए। राजा ने उनकी बहुत दिल से सेवा की। राजा ने ऋषि से कहा कि उनके पिंडदान के लिए कोई पुत्र नहीं है। उनका मोक्ष कैसे होगा?
पुरानी परंपरा से लोगों के मन में यह धारणा है कि पुत्र के बिना मोक्ष नहीं होता । किंतु यह सत्य नहीं है। भागवत कथा में कहा गया है राजा परिक्षित (जिसे ७ दिनों बाद सांप काटेगा ऐसा श्राप मिला था ।) जिन्होंने अपने प्रयत्नों और समर्पण से मुक्ति पाई । अपने पुत्रों की प्रार्थना या पिंडदान से मुक्ति नहीं पाई।
ऋषि अंगीरस ने भी राजा चित्रकेतू से यही कहा कि संतान का न होना या पुत्र का न होना अभाव नहीं है। किंतु राजा ने हठ किया तो ऋषि ने एक यज्ञ किया और उसका फल राजा की एक पत्नी को दिया । कुछ समय बाद उन्हें पुत्र हुआ।
राजा अब उसी रानी के पास वक्त बिताते तो दूसरी रानियों को उस पुत्र से ही ईर्ष्या होने लगी। उन्होंने राजा के पुत्र को विष देकर मार दिया । ऋषि अंगीरस और नारदजी आए। उन्होंने राजा से कहा कि अपने मन को शांत करो। ये सब रिश्ते क्षण-भंगुर हैं। किंतु राजा का मन शांत नहीं हुआ। नारदजी ने उनके पुत्र की आत्मा का आहवान किया। जीवात्मा प्रकट हुई । उसे नारदजी ने कहा- देखो तुम्हारे चले जाने के बाद यहां सब दुःखी हैं। तुम वापिस अपना शरीर धारण करो।
वह जीवात्मा बोली- मैं अपने कर्मों के अनुसार कई वर्षों से अनेक योनियों, देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे की योनियों में भटक रहा हूँ । ये दोनों किस जन्म से मेरे माता-पिता हैं, मुझे पता नहीं। वैसे मेरे हजारों माता-पिता हैं तो केवल इन दोनों को ही मैं अपना माता-पिता कैसे मानू? और सच्चाई यही है कि मेरे कोई माता-पिता नहीं। भिन्न-भिन्न जन्मों में सभी एक-दूसरे के रिश्ते नाते, भाई बंधु, मित्र शत्रु, उदासीन और द्वेषी होते रहते हैं। सोना-चांदी आदि खरीदने-बेचने लायक वस्तुएं भी एक व्यापारी से दूसरे व्यापारी के पास आती जाती हैं। वैसे ही जीव भी भिन्न-भिन्न योनियों में अलग-अलग शरीर बदलता रहता है। देवर्षि आप तो जानते ही हैं कि जीव नित्य और वास्तव में अहंकार रहित है। गर्भ में प्रवेश कर जब तक जिस शरीर में रहता है, तब तक ही वह उस शरीर को अपना समझता है। जो जीव नित्य, अविनाशी, स्वयं में प्रकाशमान है उसके लिए जन्म और मृत्यु कुछ नहीं होता। इसका न कोई प्रिय है न अप्रिय । न अपना न पराया।
इसलिए मैं इस शरीर में वापिस नहीं आ सकता । मुझे अब नयी योनि में जन्म लेकर ही संसार में आना होगा, यह कहकर जीवात्मा चली गई।
नारदजी ने कहा- हमारी वासना (इच्छा) ही हमारे दूसरे जन्म का कारण है। हमारा प्रत्येक कर्म और इच्छा हमारे मन और बुद्धि पर अपनी छाप (संस्कार) छोड़ती है। मन पर पड़े ये संस्कार ही वासनाएं कहलाती हैं। वासना (इच्छा) ही पुर्नजन्म का मूल (कारण) है। हमारी इच्छाएं ही हमें कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं। जब इच्छाएं पूरी नहीं होती तो जीव को दोबारा जन्म लेना पड़ता है।
हमारे भूतकाल (जो हो चुका) के कर्म ही हमारे आज की रचना करते हैं। हमारे आज के कर्म हमारे आने वाले कल का निर्माण करते है। हमारा आज, हमारे बीते हुए कल का परिणाम है। इसलिए हमारा भाग्य हमारे ही हाथ में है। शास्त्रों में इसी भाग्य को प्रारब्ध कहते हैं। जीवन में हम जो कुछ ऊंचा-नीचा (सुख दुख) देखते हैं, वह हमारा प्रारब्ध है। जो कुछ हमने पिछले जन्म में किया उसी के फल स्वरुप इस जन्म में हमें सुख-दुख मिलता है। हम उस स्थितियों का सामना किस प्रकार से करते हैं? यही सामना करना तो पुरुषार्थ है।
भगवत् गीता में कहा गया है कि जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा भी पुराने शरीर को त्यागकर नए शरीर को प्राप्त होता है।
(पुनर्जन्म अर्थात मरने के बाद फिर से नया जन्म होता है या नहीं, इस बारे में विज्ञान तो किसी एक नतीजे पर पहुंच ही नहीं पाया है, धर्म दर्शन भी एक मत नहीं है।
भारतीय मूल के सभी धर्म दर्शन पुनर्जन्म को मानते हैं, यहां तक कि आत्मा के अजर अमर अस्तित्व को ले कर मौन रहने वाले बौद्ध और जैन दर्शन भी पुनर्जन्म की संभावना को निश्चित मानते हैं। फिर से जन्म लेने की तकनीक पर भले ही मतभेद हों, पर दोबारा जन्म की बात को किसी न किसी रूप में सभी मान रहे हैं।
विज्ञान दूसरी तरह से मानता है कि शरीर या जीवन का अंत नहीं होता। उसका रूप बदलता रहता है क्योंकि पदार्थ और शक्ति का कभी नाश नहीं होता। विभिन्न तत्वों (पंचतत्वों) के संयोग से जो जीव बनते हैं, मृत्यु के समय वे नष्ट होते तो दिखाई देते हैं पर वास्तव में वे मिट नहीं जाते।
वैज्ञानिक डा. इयान स्टीवेंसन ने पहली बार वैज्ञानिक शोधों और प्रयोगों के दौरान पाया कि शरीर न रहने पर भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है, उपयुक्त अवसर आने पर वह अपने शरीर या पार्थिव रूप को फिर से रचता है |
उन्ही की टीम द्वारा किए प्रयोग और अऩुसंधानों को स्पिरिट साइंस एंड मेटाफिजिक्स में लिखा है कि पुनर्जन्म काल्पनिक नहीं हैं। उसकी संभावना निश्चित सी हैं।
किसी बालक को पिछले जन्म की याद आने और जांच करने पर उन विवरणों कए सही साबित होने की बात तो मामूली से प्रमाण हैं। इन विवरणों में कई गप्प और तुकबंदी जैसे भी साबित हो सकते हैं, पर जिन समाजों और संप्रदायों में पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं किया जाता उऩमें भी उस तरह की घटनाएं हुई हैं और परखने के बाद सही साबित हुई है। )
आवागमन को रोकने का यही उपाय है कि मन, बुद्धि को निरंतर आत्मज्ञान दो। धर्मपालन, नीतिपूर्ण विचारों का मनन, पठन, पाठन, मन- बुद्धि को शुद्ध करती हैं। जब तक इच्छाएं, वासनाएं होंगी तब तक पुनर्जन्म होता रहेगा।
SARAL VICHAR
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Topics of Interest
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