उसे भगवान कहिए या अल्लाह, वह इंसान को अपने होने का अहसास बार-बार करवाता है और किसी न किसी शक्ल में वह इंसान को बतलाता रहता है कि सब कुछ तेरे हाथ में नहीं है।
हालांकि तूने बहुत कुछ पैदा कर लिया है जिससे मेरे वजूद के होने पर तूने शक की गुंजाइश पैदा कर दी है। फिर भी बहुत कुछ ऐसा है जो अब तक मेरे हाथ में है। अगर तूने बहुत धन-दौलत, इज्जत, शोहरत कमा ली है, तो मैंने तुझे औलाद नहीं दी कोई वारिस नहीं दिया। अगर उसका इस्तेमाल करने के लिए औलाद दे भी दो तो कोई न कोई लाइलाज बिमारी तेरे साथ ऐसी लगा ली कि तू इन सब चीजों के होने का लुप्त नहीं उठा सकेगा। कहने का मतलब कोई न कोई ऐसी कमी रखी जिसे तेरी धन-दौलत, इज्जत,, शोहरत मिल कर भी पूरा नहीं कर सकती अगर मैं नहीं चाहूं तो।
फूलवती को देखकर ऊपर वाले की इस अनकही बात की सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता था। वह जवान थी। बेहद खूबसूरत थी। मामूलो कपड़ों में भी उसका गदराया बदन किसी ताजा और तंदुरुस्त गुलाब के फूल सा खिला-खिला नजर आता। उसके पास से गुजरने वाले को या बैठने वाले को उसके बदन से हमेशा फूलों से उठती महक का अहसास होता था वह फूल बाजार में फूल बेचने का काम करती थी। अपनी बांस की बनी एक बड़ी सी टोकरी में वह रोज सुबह पचास रुपये के गुलाब भर कर बेचा करती थी। दिन भर में आराम से गुजर करने लायक पैसे कमा लेती थी। उसकी खूबसूरती में एक दाग था वो अंधी थी। जब वह सोलह बरस की थी तब उसने सरदर्द मिटाने के लिए अपने घर में पड़ी एक तारीख खत्म हो चुकी गोली खा ली थी और उसकी वजह से धीमे-धीमे उसकी आँखों की रोशनी कम होने लगी थी।
उसके मां-बाप ने अपनी हैसियत के अनुसार सरकारी अस्पताल में उसका बहुत इलाज करवाया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। होता भी कैसे, डॉ. तो पहले ही उनसे कह चुके थे कि आपरेशन से ही इस बिमारी का इलाज मुमकिन है। मगर इसके लिए हजारों रुपयों की जरुरत थी। अब इतना पैसा इसके मां-बाप लाते कहाँ से। इसलिए उन्होंने दवाईयों से हो काम चलने दिया। इस उम्मीद से भगवान भली करेंगे मगर ऐसा हुआ नहीं। उसकी आँखों की रोशनी कम होते होते ढाई तीन महीनों में बिल्कुल ही खत्म हो गई। वह पूरी तरह अंधी हो गई। हालांकि इस हादसे को हुए नौ साल का अर्सा हो चुका था। मगर अपने अंधे होने का अहसास आज भी हर दिन हर घड़ी फूलवती को सालता रहता था। उसके साथ की सब सहेलियों की शादी हो चुकी थी और सब की सब दो-तीन बच्चों की मां बन चुकी थी। मगर इस अंधेपन की वजह से उसकी शादी अब तक नहीं हुई थी और न ही भविष्य में होने की कोई उम्मीद थी। फूलवती आज भी अपने ख्यालों की उधेड़बुन में लगी फूलों की दुकान सजाए बैठी थी कि अचानक कार के हार्न ने उसे चौंका दिया और उसने हड़बड़ा कर जैसे अपने आप से कहा-' अरे कार वाला सेठ आ गया?
पिछले कई महीनों से वह कार वाला सेट हर सुबह फूलवती की दुकान पर आता उसे पांच रुपये का एक नोट देता था और बदले में गुलाब के फूल की बस डाली उससे लेता था। फूलवती को खुद बड़ा ताजुब था कि सिर्फ एक ही गुलाब क्यों लेता है जबकि पांच रुपये में कम से कम पांच गुलाब आते हैं। शायद अपने सूट कोट पर लगाता होगा। शायद अपनी बीवी के जुड़े के लिए ले जाता होगा। या हो सकता है कि अपनी प्रेमिका को खुश करने के लिए ले जाता होगा यह सब सोच कर उसने कभी कार वाले से नहीं पूछा था कि एक ही गुलाब क्यों लेता है। व उसका करता क्या है? और उसे पूछ कर करना भी क्या था उसके लिए तो फायदे की ही बात थी कि वह एक गुलाब के पांच रुपये देता था।
एक बात और उसके दिमाग में घर कर रही थी कि क्यों नहीं वह इस अमीर और बड़े आदमी से अपनी अंधी आंखों के आपरेशन के लिए दस हजार रुपये मांग ले।
वह इतना बड़ा आदमी है। उसके लिए दस हजार रुपये किसी को देना मामूली बात होगी। हो सकता है इंसानियत के नाते वह दस हजार उसे दान ही कर दे। अगर वह दान नहीं भी करे तो रोज उसे गुलाब देकर कर्ज चुका देगी। अगर इस बात पर भी तैयार नहीं होगा तो आंखें मिल जाने के बाद दुगुनी कमाई करके हर रोज अपनी कमाई का आधा हिस्सा उसे देकर कुछ ही सालों में उसका कर्ज चुका देगी। रोज ये बातें उस कार वाले सेठ की हार्न की आवाज के साथ उसके जहन में तैयार होती। मगर हकीकत में ये सब कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी या फिर उसकी खुद्दारी उसे ऐसा करने से रोक लेती।
रोज की तरह उसके मन में आज भी यह बात पैदा हुई और जैसे ही सेठ के करीब आते कदमों की आहट उसने सुनी तो उसकी नाजुक ऊंगलियों ने आदतन टोकरी में रखे गुलाबों को टटोलना शुरु कर दिया। जब से वह अंधी हुई थी तब से उसने अपनी आंखों का काम ऊंगलियों से लेना शुरु कर दिया। वह अपनी ऊंगलियों से छूकर ताजा, मुरझाए, हल्के, भरे, गुलाबों को पहचानने लगी थी। आज भी उसकी ऊंगलियों ने सेठ के लिए एक भरा-भरा ताजा गुलाब उठा लिया और सेठ की तरफ बड़ा दिया। सेठ ने भी गुलाब पकड़े हाथों से उसे पांच का नोट थमा दिया। गुलाब लेने और देने के इस लेन- देन में अक्सर सेठ की ऊंगलियां उसकी उंगलियों से छू जाती थी। शुरु शुरु में उसे यह बात अच्छी नहीं लगती थी। मगर अब पहले जितनी बुरी भी नहीं लगती। क्योंकि धीरे-धीरे उसे यह अहसास हो गया था कि यह कोई बुरा आदमी नहीं है। वह तो अनजाने में उसे छू लेता है। कई बार उसे इसी बात का ताज्जुब होता था कि शुरु शुरु में नया नया जब सेठ फूल लेने आता था तब उसने उसकी आवाज सुनी थी। उसके बाद सेठ के कार के हार्न की आवाज उसके फूल लेने आने की पहचान बन गया था और अब कई महीनों से उनके बीच बेआवाज लेन देन खामोशी के साथ चल रहा था।
जैसे ही सेठ के लौटने की आवाज सुनी, फूलवती के मुंह से अचानक निकल गया, 'सेठजी। एक मिनट जरा रुकिये। मुझे आपसे कुछ बात करनी है।'
सेठ के पलटने की आवाज के साथ उसने हड़बड़ा कर कहा, सेठजी मुझे अपनी आंखों के आपरेशन के लिए दस हजार रुपये चाहिए। यह रकम मैं आपको जिंदगी भर गुलाब देकर चुका दूंगी। वरना आँखें मिल जाने पर दुगनी कमाई करके आपको दो तीन साल में वापस कर दूंगी।' इतनी सी बात कहने में फूलवती की सांस धौंकनी की तरह चलने लगी। इससे आगे उससे कुछ कहा नहीं गया। वह चुप हो गई।
सेठ के जवाब का वक्त और फूलवती के इंतजार के बीच का वक्त हालांकि एक पल से ज्यादा नहीं था फिर भी न जाने क्यों फूलवती को एक सदी की तरह लगा। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ जब सेठ ने कहा कि ठीक है, कल सुबह यह रकम तुम्हें मिल जाएगी।
कार चली गई। रकम किस तरह चुकानी होगी इस बारे में सेठजी ने न कुछ पूछा न कुछ बताया फूलवती को लगा कि शायद सेठ ने उसका मन रखने के लिए झूठा वादा किया है या उसने बड़े सलीके से बात टाल दी है। बहुत मुमकिन है कि वह मुस्कराया होगा। अब वह तो अंधी है, उसकी मुस्कराहट देख नहीं सकती। वरना उसे पता चल जाता कि सेठ सच कह रहा है या झूठ ? सेठ की नीयत जो भी रही हो मगर उस रात का अंधेरा फूलवती की अंधी आंखों ने सुबह के उजाले के लिए जाग कर काट दिया वाकई अगले दिन वक्त पर आया सेठ और उसे दस हजार रुपये दिए अपना फूल लिया और रकम लौटाने के संबंध में कुछ भी कहे बिना चला गया। मगर जाते-जाते फूलवती को जिंदगी की नई शुरुवात का पैगाम दे गया ।
जब कार सेठ के बंगले पर पहुंची तो पुलिस कार ड्राईवर के इंतजार में बैठी थी। दस हजार रुपये चुराने के इल्जाम में उसे गिरफ्तार कर लिया गया। जो फूलवती के लिए 'सेठ' था। ड्राईवर कैलाश उर्फ सेठ ने अपना जुर्म कबूल कर लिया। ऐसा करते हुए उसको अफसोस भी नहीं था। क्या वह दस हजार रुपये चुकाकर अपनी 'फूलवती' की अंधी आंखों के लिए रोशनी नहीं खरीद सकता है? भले ही उसकी मोहब्बत एक तरफा थी तो क्या हुआ?
इधर अदालत ने कैलाश को चोरी के इल्जाम में छह महीने की सजा बा मशक्कत सुनाई। उधर अस्पताल में डॉक्टर ने फूलवती को छुट्टी दी। उसका आपरेशन कामयाब हुआ। अंधी फूलवती आंखों वाली हो गई। अब वह रोज फूलबाजार में चबूतरे पर बैठकर सेठ के कार के हार्न और उसके आने का इंतजार करने लगी। उसका हर पल हर घड़ी इसी उधेड़बुन में बीतने लगा कि वह सेठ कौन था ? रकम देने के बाद लौट कर क्यों नहीं आया। आखिर कहाँ चला गया।
जेल में अपनी सजा के दिन काटने वाला कैलाश हर वक्त यही सोचता कि जब उसकी सजा खत्म हो जाएगी तो वह अपनी फूलवती से मिलने जाएगा। अब तो वह आंखों वाली हो चुकी होगी। पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगी होगी। मैं उसे सब कुछ सच-सच बता दूंगा कि मैं एक मामूली कार ड्राईवर था जिसने उसकी आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए दस हजार रुपये की चोरी की थी। इस बात का उसके दिल पर कितना गहरा असर होगा? सोच-सोच कर वह सुनहरे ख्वाबों में खोने लगा।
मगर गुलाब मुरझाने लगा। फूलवती के इंतजार का गुलाब दिन-ब-दिन मुरझाने लगा। जब 'सेठ' के लौट आने की उम्मीद टूटने लगी तो अपने जमीर पर चढ़े 'सेठ' के कर्ज के बोझ को कम करने का उसने एक रास्ता निकाल लिया। उसने हर सुबह सबसे पहले आने वाले एक भीखमंगे को पांच रुपये भीख में देना शुरु कर दिया।
कैलाश ड्राईवर की सजा खत्म होने में सिर्फ एक महीना बाकी रह गया था । वह बहुत खुश था। उसे बेसब्री से इंतजार था वापस बाहर की दुनिया में जाने का। फूलवती के साथ अपनी एक नई दुनिया बसाने का। मगर भगवान को कुछ और ही मंजूर था। वह एक चट्टान जिसे कैलाश बारूद से उड़ा रहा था उसके महफूज जगह पहुंचने से पहले ही ब्लास्ट हो गई। उसकी किरचियाँ हवा में उछलकर उसकी आंखों में चुभ गई। डॉ. ने उसकी आँखों के जख्म तो भर दिये मगर उसकी आंखों की रोशनी वापस न ला सके।
अंधा कैलाश जब कुछ दिनों बाद जब जेल से छूट कर बाहर आया तो उसे बाहर निकल आने का अहसास तब नहीं हुआ। होता भी कैसे, उसके लिए अब अंदर बाहर सब बराबर हो चुका था। बेघर, बेमंजिल, बेरोजगार अंधा कैलाश जब सड़क के किनारे घुटनों में अपना सिर झुकाए बैठा था तो उसे कुछ पास गिरने की आवाज सुनाई दी। उसने हाथ बढ़ाकर जमीन को टटोला तो उसका हाथ एकछोटे गोल सिक्के से टकराया। किसी ने उसे भिखमंगा समझ कर राह चलते सिक्का डाल दिया था। बस, उस दिन उस घड़ी से उसे रोजी का जरिया मिल गया था । वह भीखमंगा बन गया। शहर के रास्तों में यहाँ से वहाँ भटक-भटक कर वह लोगों से भीख मांगने लगा।
वह फूलवती के पास अब लौटकर नहीं जाना चाहता था। उसे पता चल गया था कि अब वह देखने लगी है। उसने जेल में रहते चुपचाप इस बात का पता लगा लिया था। वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि आंखों वाले और अंधों के बीच ऐसी एक गहरी खाई होती है जो कभी नहीं पटती। एक दिन सुबह अनजाने में भीख मांगते-मांगते उसके पांव फूल बाजार के रास्ते पर निकल पड़े, तो किसी ने उसे आवाज देकर रोका- अरे ओ अंधे बाबा, ये पैसे तो ले जाओ।'
कैलाश एक पल उस आवाज को सुनकर चौंका, फिर आवाज की तरफ उसके कदम अपने आप बढ़ने लगे। उसने अपना एक हाथ भीख लेने के लिए आगे बढ़ा दिया तो किसी के नर्मो नाजुक ऊंगलियों ने एक नोट उसके हाथों में धीरे से रख दिया। जैसे ही उसके हाथों को भीख देने वाले हाथों ने छुआ उसने झटके से अपना हाथ खींच लिया। यह स्पर्श तो फूलवती के हाथों का था। वह इस स्पर्श को कभी नहीं भुला सकता। इस स्पर्श से वह बहुत अच्छी तरह वाकिफ था। 'नहीं' उसके मुंह से अचानक निकला। उसके बदन में सिर से लेकर पांव तक दर्द की एक तेज लहर दौड़ गई। अपनी मुट्ठी में बंद नोट भींच कर वह सिमट गया। फिर जाने अचानक उसे क्या हुआ वह जोर से हंसने लगा। हंसते हंसते उसने अपना सिर उठाकर आसमान की तरफ देखा। फिर अचानक चुप हो गया। शायद उसकी अंधी आंखों ने आसमान के उस पार बैठे भगवान को देख लिया था।
-सईद क़ादरी
SARAL VICHAR
-----------------------------------------------
Topics of Interest
true love sacrifice story, ek tarfa pyar kahani, bhagwan ki leela, phoolwati story, emotional hindi story, inspiration kahani, car driver sacrifice, love and sacrifice, blind girl story hindi, heart touching kahani, sacrifice love hindi story, emotional kahani hindi english mix
0 टिप्पणियाँ