इंसान मकड़ी
की तरह मायाजाल में फंस जाता है। आपने मकड़ी देखी होगी। पुराने खंडहर होते
हैं, वहां पुरानी जगहों में जाल बुना देखा होगा जो मकड़ी बुनती है। मकड़ी
ऐसे सोचती है कि मैं ऐसा जाल बुनूं जिससे मुझे कोई मार न सके । मेरा दुश्मन
मुझ तक पहुंच न सके। वह अपने इर्द-गिर्द सौ घेरे बनाती है और उसके बीच में
जाकर रहती है। सोचती है कि मुझे मारने वाला सौ घरे तोड़कर कैसे आएगा ।
मेरी मौत को भी मेरे पास आने में दिक्कत होगी । जब वो दस घेरे बनाती है तो
उसकी थकावट शुरु हो जाती है। फिर पचास घेरे बनाते-बनाते वह काफी थक जाती
है। मगर वह ताना-बाना बुनती रहती है और जब तक सौ घेरा पूरा होता है, वह
इतना थक जाती है कि खुद अपने बनाए जाल में फंसकर रह जाती है और दम तोड़
देती है।
इसी का दूसरा नाम मायाजाल है। इंसान भी कुछ ऐसा ही करता है
कि मैं यह कर लूं, वह कर लू। वह अपने ऊपर मायाजाल का शिकंजा कस लेता है।
आखरी उम्र तक उसको बुनता ही रहता है। एक दिन ऐसा आता है जो जाल उसने अपनी
रक्षा के लिए कोठियां, व्यापार, रिश्वत, नोकरी, कारखाने बनाए थे वह सब उसे
घेर लेते हैं और इंसान दम तोड़ देता है। इंसान का मायाजाल और मकड़ी का जाल
दोनों एक जैसे हैं।
मकड़ी और इंसान दोनों ही अपने आसपास सुरक्षा के लिए जाल बुनते हैं। मकड़ी अपने जाल में फंसकर मर जाती है, ठीक उसी तरह इंसान भी अपने मायाजाल में फंसकर दुखी हो जाता है।
नीतिकार का मानना है कि अगर इंसान सुखी रहना चाहता है
तो मकड़ी के जाल को जरुर देखें । इससे थोड़ी-बहुत समझ आ जाएगी।
जिस
तरह मकड़ी सोचती है कि मुझे मारने से पहले सौ तानों से गुजरना होगा । यही
इंसान सोचता है कि मेरी रक्षा मकान करेगा । जो पैसा इकट्ठा किया है वह
रक्षा करेगा । मगर मकड़ी के जाले को जिस तरह चौकीदार डण्डा मारकर झटके में
सफाई कर देगा । ठीक उसी तरह परमात्मा की लाठी का जब वार होता है तो मायाजाल
क्या कर सकेगा? कुछ भी नहीं।
अगर इंसान को सुखी रहना है तो खुली
हवा में सांस लेनी चाहिए। ज्यादा मायाजाल में नहीं फंसना चाहिए। वे घेरे
मौत का कारण बनते हैं । कोई भी दुनिया की मकड़ी अपने बुने हुए जाल में से
वापिस बाहर नहीं आई। ऐसा नितिकार लिखता है कि अगर सुखी रहना है तो थोड़ा
सरकार माध्यम के कानून के अनुसार पैसा रखो । पैसा वह ठीक रहता है जो आपकी
रक्षा करे न कि वह पैसा जिसकी रक्षा आपको करनी पड़े। गलत तरीके से कमाया
पैसा अपने पास रखेंगे तो नींद भी उड़ जाएगी।
वरना बैंक में पड़ा हो तो आपकी नींद भी नहीं उड़ती है।
बैंक
में भी किसी तरह रख लेते हैं कि मेरी असली कमाई का पैसा है। दो नम्बर का
पैसा नहीं है तो क्या आपके मन को पता नहीं होता कि यह पैसा किस तरह और कैसे
कमाया है?
मायाजाल को समझिए। इससे आपको संतोष मिलेगा । सोचते हैं
कि बच्चों के लिए कमा रहा हूं। वैसे भी खुद तो आप कभी उस पैसे का मजा नहीं
ले पाते सिर्फ पैसा जमा करने में लगे हुए हैं। बच्चे को सुख सुविधाएं
देकर जाते हैं तो वह आपकी मेहनत को नहीं समझता । वह तो जल्दी ही पैसा उड़
देगा ।
पूत कपूत तो क्यों धन संचय, पूत सपूत तो क्यों धन संचय ।
अर्थात
बेटे को अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार देंगे तो वह अपने आप धन कमा लेगा और
संस्कार नहीं देंगे तो आपका मेहनत से कमाया धन या आपने किसी भी तरह से
कमाया होगा (किसी से झूठ बोलकर, किसी से ठगी करके आपने कमाया होगा ) वह धन उड़ा देगा । एक
बात कहना चाहूंगा कि आप मेहनत से, इमानदारी से धन कमाएंगे तो आपके बच्चे भी
उस कमाई से जो अन्न खाएंगे तो आपके बच्चे भी सुधर जाएंगे। कहते हैं ना
'जैसा अन्न, वैसा मन ।' आपको कोशिश भी नहीं करनी पड़ेगी और आपके बच्चे
अच्छे ही बनेंगे।
संतोष और सुख दोनों सगे भाई ही तो हैं ।
-ओम प्रकाश अग्रवाल
SARAL VICHAR
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