एक अपराधी अपराध क्यों है? एक संत सेवा क्यों करता है?
एक अपराधी या एक संत या हम या कोई भी व्यक्ति इस दुनिया में जो कुछ करता है। उसका अंतिम उद्देश्य होता है- खुशी। हर कोई व्यक्ति हमेशा खुश रहना चाहता है। एक चोर चारी करता है, क्योंकि उसे लगता है कि उसे पैसे मिलेंगे जिससे उसे खुशी मिलेगी।
एक संत दूसरों की भलाई के लिए अपना पूरा जीवन लगा देता है, क्योंकि उसे लगता है कि इससे उसे खुशी मिलेगी।
एक संत और एक अपराधी दोनों खुश रहना चाहते हैं। लेकिन दोनों के रास्ते अलग-अलग क्यों?
क्या आप जानते हैं कि हमारे जीवन का सबसे बड़ा रहस्य क्या है?
हमारे जीवन का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि हम खुद को ही नहीं जानते हैं। हम अपने मूल स्वभाव को ही नहीं जानते या शायद जानते हुए भी अनजान है।
जिस तरह हमें पता है कि पानी का स्वभाव तरल होता है, उसी तरह मनुष्य के अंदर एक शांत शक्ति मौजूद है। जिसे हम अपनी अंतरात्मा कहते हैं। यह अंतरात्मा हर परिस्थिति में सही होता है। यह अंतरात्मा हमें हमेशा सही रास्ता दिखाती है। जब हम भी कुछ गलत कर रहे होते हैं, तो हमें कुछ बेचैनी महसूस होती है। तब हमें बड़ा अजीब-सा लगता है। जैसे कोई यह कह रहा है कि यह कार्य मत करो। यह हमारे अंदर मौजूद आंतरिक शक्ति ही होती है जो हमें बुरे कार्य करने से रोकती है।
कहा जाता है कि हर आदमी के अंदर ईश्वर का अंश होता है। यह ईश्वर का अंश हमारा अंतरात्मा ही होता है।
हमारा मूल स्वभाव क्या है
हमारी प्रकृति या स्वभाव तो शांत, शक्ति, प्रेम, निडर, व्यवहार और दूसरों की सहायता करना और अच्छाई है।
हर
मनुष्य के अंदर यह शांत और अद्भुत शक्ति मौजूद है। चाहे वह एक अपराधी हो
या संत या और कोई व्यक्ति । फिर संत क्यों सही मार्ग पर चलता है और अपराधी
क्यों गलत मार्ग पर चलता है?
क्योंकि संत को अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनाई
देती है। लेकिन अपराधी उस आवाज को सुनकर भी नहीं सुनता ।
दरअसल जब हम अंतरात्मा की आवाज को अनसुना कर देते हैं तो हमारा अपनी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर हो जाता है।
जब
हम दूसरी बार कुछ बुरा करने जा रहे होते हैं तो हमें अपनी अंतरात्मा की
आवाज फिर महसूस होती है। लेकिन इस बार आवाज इतनी मजबूत नहीं होती, क्योंकि
हमारा अपनी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर हो चुका होता है।
जैसे-जैसे
हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना करते जाते हैं वैसे-वैसे हमारा अपनी
अंतरात्मा से संपर्क कमजोर होता जाता है । एक दिन ऐसा आता है कि हमें अपनी
आवाज बिल्कुल सुनाई नहीं देती।
संपर्क टूटने से हम उदास रहने लगते
हैं और अपनी खुशियों को भौतिक वस्तुओं में ढूंढने लगते हैं । हम समस्याओं
को हल करने में असक्षम हो जाते हैं और तनाव हमारा हमसफर बन जाता है।
हम कहां जा रहे हैं?
आज हमारी जिंदगी एक मशीन की तरह हो गई है। जिसमें हम भागते रहते हैं। लेकिन हमें यह पता नहीं है कि हमें कहां जाना है !!! अगर हम खुद को पैसा इकट्ठा करने वाला रोबोट कहें तो कोई अतिशयोक्ति (स्पष्ट) नहीं होगी।
आज हमारे पास सब कुछ है। फिर भी ज्यादातर लोग खुश नहीं हैं।
ऐसा क्यों है?
इसका सीधा कारण उनकी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर होना है। हमें लगता है कि स्वभाव स्वाभाविक है। लेकिन क्या एक गुस्सेवाला व्यक्ति खुश रह सकता है? गुस्सा आने के बाद पूरा दिन या २-३ घंटे तो खराब हो ही जाते हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि हमारा स्वभाव शांत रहने का है। हम अंतरात्मा की आवाज को अनसुना करते हैं और मानसिक और भावनात्मक रुप से कमजोर होते जाते हैं ।
एक चोर को चोरी करके भले ही ऐसा लगता हो कि इससे खुशी मिलेगी। लेकिन वास्तव में वह चोरी करके अपनी समस्याओं को बढ़ाता है।
हम किसी दूसरे व्यक्ति की बुराई करते हैं तो सबसे अधिक स्वयं को नुकसान पहुंचते हैं क्योंकि यहां पर भी हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना करते हैं।
हमारा स्वभाव बिल्कुल
पवित्र है। क्रोध, लालच, ईर्ष्या का कोई स्थान नहीं है। अगर इन चीजों को अपने जीवन में जगह देते हैं तो दुखी होते हैं ।
गौतम बुद्ध ने अच्छी बात कही है- आपको
अपने गुस्सा के लिए सजा नहीं मिलती है, बल्कि आपको अपने गुस्सा से ही सजा मिलती है।
ज्यादातर लोग सोचते हैं के हम गुस्सा, लालच, ईर्ष्या करेंगे तो ईश्वर हमें सजा देंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल हम कुछ बुरा भी करते हैं तो हमारी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर हो जाता है और यही हमारी सजा है। यदि संपर्क होता है तो मजबूत होता है तो मनुष्य स्वयं खुश रहता है।
ओम
SARAL VICHARTopics of Interest
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