प्रिय अभिभावक
कृपया ध्यान दें...
परवरिश का मतलब सुविधाएं देना भर नहीं है। यह जानना भी जरुरी है कि सुविधाओं के कैसे-कैसे असर हो सकते हैं।
अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ आपको यही बता रहे हैं।
बच्चों
का पालन-पोषण बड़ी जिम्मेदारी का काम है। मां-बाप का हर निर्णय बच्चों के
वर्तमान ही नहीं, भविष्य पर भी असर डालता है। जाहिर है, हर अभिभावक अपने
बच्चों के लिए अच्छा ही सोचता होगा। लेकिन कई बार अच्छा सोचने और करने के
बावजूद नतीजे अच्छे नहीं होते या बुरे भी हो सकते हैं। ऐसा हालांकि अनजाने
में होता है, लेकिन बच्चों की बेहतरी के लिए माता-पिता को ऐसी बातें भी
जाननी चाहिएं।
1. बच्चा खाने में नखरे करता है, लेकिन टीवी देखते देखते
सब चुपचाप खा लेता है। अच्छा ही है न ।
नहीं, यह गलत है। ठूंस लेने और
भोजन करने में अंतर है। बच्चे का ध्यान टीवी पर रहेगा तो खाने पर नहीं
रहेगा । इसके चलते संभव है कि वह बिना चबाए, बस निगलता जाए या जरुरत से
ज्यादा खा जाए। उसे स्वाद का अहसास भी नहीं होगा। जब मां या कोई अन्य बच्चे
के साथ बैठती है, भले उसे हाथों से न खिलाती हो। उससे बीच-बीच में बातें
करती है तो बच्चे का उसके साथ जुड़ाव बनता है। वह खाने में रुचि लेता है।
'मां के खाने का स्वाद' टीवी देखते हुए यादगार नहीं बन सकता।
डॉ प्रियंका वर्मा, मनोविशेषज्ञ
2. प्लास्टिक की चीजें खूबसूरत और सुविधाजनक होती हैं । एल्यूमिनियम फॉइल में खाना गर्म व ताजा रहता है।
•
प्लास्टीक में गर्म चीजें न रखें । पानी की बोतल गाड़ी में पड़े-पड़े गर्म
हो जाती है, उसका इस्तेमाल न करें। अन्यथा प्लास्टिक कैंसर भी दे सकता
हैं। यह भी ख्याल रखें कि प्लास्टिक बीपीए फ्री हो । एल्यूमिनियम फाइल का
प्रयोग कभी-कभार ही करें, रोज-रोज नहीं । गर्म चीज तो इसमें कतई नहीं
लपेटनी चाहिएं। फॉइल से होकर ल्यूमिनियम के महीन कण खाने में मिलते रहते
हैं । गर्म होने पर यह मात्रा ज्यादा हो जाती है। एल्यूमिनियम की अधिकता
किडनी खराब कर सकती है और ज़िक और लौह तत्व की कमी पैदा कर सकती है।
डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, बालरोगतज्ञ
3. जमाना तकनीक का है। बच्चा जितनी जल्दी मोबाईल, टैबलेट, कम्प्यूटर चलाना सीख जाए, उतना ही अच्छा है।
बिल्कुल
गलत । विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकन साइकियाट्रिस्ट सोसायटी की यह साफ
चेतावनी है कि पांच साल से कम के बच्चों को मोबाईल, टैबलेट, लैपटॉप समेत
कोई गैजेट्स नहीं देना चाहिए। इनके बहुत सारे दुषपरिणाम हैं। बच्चें में
हिंसक प्रवृति, हाईपर, एक्टविटी, ध्यान में कमी जैसी दिक्कतें पनप सकती
हैं। ये गैजेट्स कल्पना की गुंजाईश ही नहीं छोड़ते। इससे बच्चे में
कल्पनाशीलता, रचनात्मकता क्षमता और दिमागी संजाल का विकास नहीं हो पाता ।
उसमें सामाजिक गुण भी विकसित नहीं होते। रही बात गैजेट्स सीखने की, तो वह
बड़ा होकर भी सीख सकता है, जैसे आपने सीखा था।
डॉ. रूमा भट्टाचार्य, मनोचिकित्सक
इस
मामले में इस्तेमाल की अवधि और अभिभावक का मार्गदर्शन बहुत महत्वपूर्ण
होता है। इन गैजेट्स के ज्यादा प्रयोग से आंख में दर्द, पानी निकलना,
आंखें लाल होना, सूखापन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए दिनभर में आधा-
एक घंटे से अधिक अनुमति न दें और यह भी नजर रखें कि बच्चा इन पर क्या कर
रहा है।
डॉ. देवी, नेत्र रोग विशेषज्ञ
4. बच्चे को हरदम साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए। धूल-मिट्टी में खेलने से कई बिमारियां हो सकती हैं।
हां,
लेकिन साफ-सफाई का यह मतलब नहीं कि उसे जमीन पर खेलने ही न दिया जाए । ठीक
है कि वह कीचड़ में न लोटे और गंदगी से दूर रहे, लेकिन उसे पार्क, मैदान,
आंगन जैसी जगहों पर निश्चिंत होकर खेलने दिजिए। एक सिद्धांत कहता है ज़रुरत
से अधिक साफ-सफाई रखने से बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता का समुचित विकास
नहीं हो पाता। बहरहाल, जिन बच्चों को धूल व अन्य चीजों से एलर्जी हो,
अस्थमा की शिकायत हो, उनके लिए अनिवार्य रुप से विशेष ध्यान रखा जाना
चाहिए।
डॉ. गिरीश चंद्र, बालरोग विशेषज्ञ
SARAL VICHAR
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