Ticker

7/recent/ticker-posts

खुश न रखनेवाले कारण | KHUSH NA RAKHNE WALE KARAN | REASONS NOT TO BE HAPPY | SARAL VICHAR

स्वामी अवधेशानंदजी महाराज

खुश न रखनेवाले कारण

Cause of Unhappiness 

खुश न रखनेवाले कारण  |  REASONS NOT TO BE HAPPY  - www.saralvichar.in


संसार में रोना है,  दु:ख है, जन्म-मत्यु, जरा व्याधि है । जन्म और मृत्यु के बीच में झांककर के देखो.., क्या मिलता है?

जन्म और मृत्यु है तो व्याधियां मिलेंगी तुम्हें । भगवान ने जगत बनाया परंतु किसी ने कहा- यह जगत!.... इसमें तो रोना ही रोना है, अभाव है । 

वैसे इस जगत में तीन ताप हैं 

आधिदैविक, आदिभौतिक और आध्यात्मिक । आदि, व्याधि, उपाधि ।

दो चीजें तो आपकी समझ में आती हैं उपाधि और व्याधि । उपाधि वह है जो हम नहीं हैं और लोग हमें वह समझ लें। दूसरी व्याधि- याने बहुत से रोग ।

आदि अभाव को कहते हैं। इसलिए प्रत्येक जीव को अज्ञानता के कारण विचार और विवेक के अभाव में जो दुःख है वह सताता रहता है और वह है अभाव का दुःख । वह कौनसा अभाव है- धनाभाव, पदार्थ-वस्तु का अभाव, ख्याति  अभाव, सुंदरता का अभाव । याने किसी न किसी चीज की  कमी बनी रहती है।

इस जगत में अज्ञानी कौन है? अविवेकी कौन है? जो उसे प्राप्त है उसमें संतुष्ट नहीं है । भागवत इन तीन प्रकार के दुःखों की चर्चा करती है। भागवत में आरंभ में एक और दुःख की भी चर्चा है .. जो स्वनिर्मित है, स्वरचित है। स्वकल्पित है। हमने ही जिसे बनाया है।

वह क्या है? वह है
अभाव का दुःख।कुछ चीजें तो है, पर ब्रैंडेड नहीं है। वाहन तो है, पर महंगा नहीं है। भवन तो है, पर अट्टालिकाएं नहीं हैं। भूमि तो है, पर विस्तार नहीं है। घर तो है, पर आंगन में बगीचा नहीं है।

इसका यही अर्थ है, यही तुक है कि हम मन में बनाए बैठे हैं। हम ऊंचे पद पर नहीं, हम मान्य नहीं, पूज्य नहीं, वंदनीय नहीं। अगर यह सब होता तो और सुंदर होता... तो अनुकूलताओं के संचय में और रुचियों के गलियारे में भटकी हुई चेतना में, जिसमें अभाव बोध है उसे कौन ठीक करे? जिसे हमेशा अभाव सताएगा, उसे कौन ठीक कर पाएगा । इसलिए संतुष्ट रहो । जो है, उसी में खुश रहो।

वह चेतना जो भटक रही है कि अनुकूलताएं मिलें। याने हमारा मन जो चाहे, वह हमें मिले । व्यक्ति से, वस्तु से, पदार्थ  से, घटनाओं से, दृष्यों से, परिस्थितियों से, परिजनों से, प्रकृति से, परमात्मा से, भाग्य से हमें सब कुछ मिले।

कुछ लोग कहते हैं- हमारा भाग्य ठीक नहीं। पड़ोसी ठीक नहीं, परिवार ठीक नहीं, पत्नि या पति ठीक नहीं । गृह-नक्षत्र ठीक नहीं । बड़े बुद्धिमान लोग भी होते हैं जो बातों को शब्दों में बांधकर कहते हैं समय ठीक नहीं।

हमें सबसे अनुकूलता करनी आनी चाहिए। प्रकृति से, वस्तुओं से, व्यक्तियों से । हम सोचते हैं कि एक अभाव है। अनुकूलता नहीं है।

तीन ताप जो आपसे कहे - आदिदैविक, आदिदैहिक और आदिभौतिक, इन्हें भूकंप, महामारी, बड़े रोग भी कह सकते हैं। एक होता है मन का रोग । मन का रोग श्रद्धा के अभाव में होता है, विचार के अभाव में मन का रोग होता है। कुछ रोग और भी हैं जैसे- स्वयं को छोटा मानना। यह नकारात्मक भाव है। जिसे आजकल नेगेटिविटी कहते हैं। इस भाव में लोग स्वयं के लिए सही नहीं सोचते, स्वयं को उत्साही नहीं बनाते।

वैसे अगर यह तीन ताप, तीन रोग हैं तो भगवान ने उनको नाश करना भी सिखाया है। एक वह ईश्वर है जो तीनों तापों का भंजन कर सकता है। इसके लिए पहल हमें करनी पड़ेगी कि हमें दुःखों की चर्चा ही नहीं करनी है। सब कुछ ईश्वर पर छोड़ देना है। अगर वह ताप देता है तो ताप उतारता भी वह ही है।

 

 SARAL VICHAR

एक टिप्पणी भेजें (POST COMMENT)

0 टिप्पणियाँ