भगवान का दिया हुआ यह जीवन निश्चित ही एक महान अवसर है। कहा जाता है कि ८४ लाख योनियों के बाद यह एक सुअवसर प्राप्त हुआ । इस अवसर का पूर्ण लाभ लेने के लिए हमें अपने अंदर के श्रेष्ठ तत्व को प्रकट करने में पूर्ण प्रयास करना चाहिए। कोई भी कार्य अगर हमें दिया जाए तो वह कार्य ही हमारा हस्ताक्षर बन जाए। हमारी पहचान बन जाए कि यह इसने किया।
एक आदत होती है लापरवाही की। थोड़ी- थोड़ी लापरवाही करने लग जाइए , आदत बन जाएगी।
एक आदत होती है कलाकार की कि वह जो भी कर्म करेगा उसमें अपनी कलाकृति जरुर छोड़ेगा ।
एक आदत होती है हड़बड़ाहट की । कुछ भी काम करेगा, हड़बड़ाहट से करेगा ।
एक आदत होती है धैर्य-कुशलता से काम करने की।
काम तो एक ही होता है, पर कोई व्यक्ति करने के ढंग से किस तरह महान हो जाता है। लेखकारों ने लिखा है कि जिस प्रकार कुएं की ईंटे बनाते हुए, लगाते हुए वह नीचे की तरफ जाता है लेकिन महल बनाने वाला ईंटें लगा रहा है और ऊपर चढ़ता जा रहा है। कहते हैं मेहनत तो उतनी ही है । सोचिए कि आप अपनी मेहनत से ऊपर उठ रहे हैं या नीचे गिर रहे हैं। आपका कर्म आपको नीचे तो नहीं ला रहा?
आपकी उर्जा का बहाव यदि परमात्मा की ओर है तो श्रेष्ठ की ओर, आनंद की ओर, प्रेम की ओर आप जा रहे हैं। निश्चित ही जीवन में फूल खिलने लग जाएंगे। जिनसे आप तो शोभायमान होंगे ही और हवाएं उन खुश्बूओं को लेकर दूर-दूर तक आपकी शोभा को बढ़ा देंगी। इसलिए कोशिश कीजिए कि जहां हैं, पुष्प बनकर महकने का प्रयास करें। ये भी सच है कि पत्ते कितनी भी कोशिश करके फूल को छिपा लें पर उसकी खुश्बू को कोई ढक नहीं सकता। यदि आपमें गुणवत्ता है, विशेषता है तो दुनिया कितनी भी ढकने की कोशिश करे आपकी खुश्बू अपने आप दुनिया तक पहुंच जाएगी। प्रयास करते रहें कि अपने आप को निखारें। मेरे चलने में, उठने में, बैठने में , चेष्टाओं में, कर्म में पहले से कुछ निखार आया या नहीं?
शरीर उम्र के साथ कुछ भी हो, बाहर का निखार काम नहीं करेगा। शरीर को तो भस्म होना ही है । इसको मिटना ही है। लेकिन जो नहीं मिटता वह आत्म तत्व है। उसे निखारने की लगातार कोशिश करनी चाहिए। जैसे आईने में स्वयं को देखते हैं और स्वयं को निखारते हैं, वैसे ही आत्मचिंतन भी एक दृष्टि है स्वयं को निखारने की। अकेले रहकर अपने बारे में कुछ विचार करें, कुछ सोचें। आप देखेंगे कि जो समय आप अपने आपको देंगे वह एक ऐसे आईने का काम करता है जिसमें आपको अपना स्वभाव दिखाई देगा।
महात्मा गांधी कहते थे कि डायरी लिखना आत्मसुधार के लिए आवश्यक है। जुगान जापान के एक बहुत बड़े संत हुए, उन्होंने कहा- मैं एक दिन जंगल से जा रहा था। वहां सरोवर में अपनी छवि देखकर उससे बात करने की इच्छा हुई। बचपन में कितने भोले थे । उम्र बढ़ी तो चालाकी आ गई। बातचीत से लेकर व्यवहार तक हर चीज में चालाकी है। लेकिन सोच- दुनिया तो तुझे समझदार कहती है। पर तू क्या कहता है? तूने शांति खो दी, प्यार खो दिया । पहले चारों तरफ से परम सत्ता ने मुझे घेरकर दुलार भरे हाथों में संभालकर रखा था। भोले के साथ मां-बाप हमेशा रहते हैं। चालाक को अकेला छोड़ देते है। लगता है चालाक हो गया हूं तो भगवान ने दूर कर दिया है मुझे, फिर से भोला बनने की जरुरत है ताकि परमात्मा अपने दुलार भरे हाथों में मुझे फिर से संभाल सके।
मैं यह कहूंगा कि सतर्क होना, सावधान होना जरुरी है लेकिन ये भी ध्यान रखिए दुनिया के लिए समझदार हो जाईए किंतु उस परमपिता के लिए वही भोला बच्चा बन जाईए । भोले बनकर जिंदगी कुछ और बन जाती है। निखार लाने के लिए बस इतना करना है कि आपके कर्म कुशलता पूर्वक होने लग जाएं। आपका मन संतुलित रहने लग जाए। बाहर उग्रता और व्यग्रता के बीच भले रहना , लेकिन अंदर से शांति बनाए रखना । बाहर शोर-शराबे के बीच भले रहना किंतु अंदर प्यार भरे संगीत से खुद को गुनगुनाते रहना । यदि अंदर प्रेम और सौंदर्य है तो बाहर भी भगवान का प्रेम और सौंदर्य दिखाई देगा । इसलिए ऐसा कहा जाता है कि जो जीवन को संगीत मानते हैं, वे इसे झूमकर गाने की कोशिश करें, जो इसे चुनौती मानते हैं वे बहादुरी से सामना करने की कोशिश करें, जो कोई जिंदगी को अवसर मानते हैं वे इस अवसर का पूरा लाभ लें क्योंकि अवसर बार-बार दरवाजा नहीं खटखटाता । जिंदगी को खेल मानते हो तो जी भरके खेलो और अगर वचन मानते हो तो इसे निभाने का प्रयास करो। अगर सपना मानते हो तो इसे सच करने का प्रयास करो ।
चाहें आप इसे कुछ न मानते हो तो जिस किनारे लग गए वही हमारा किनारा बन जाए। बहुत से लोग अपनी जिंदगी को भाग्य पर छोड़कर बेबसी जताने लग जाते हैं।- नहीं! आज से अभी से कुछ निश्चय कीजिए । नया वर्ष आया है । नई उमंग, नई तरंग, नई जीवन धारा, नए तरह से जीवन को ढालना है। एक बात यह भी कहूंगा कि परिवर्तन को स्वीकारो। नए विचार, कुछ अच्छा सोचना, अच्छा होने की उम्मीद करना।
हेनरी फोर्ड का नाम शायद आप लोगों ने सुना हो। उसने कारों के उद्योग में नई क्रांति लाई थी । उस व्यक्ति की एक बात अच्छी लगी। V-8 इंजन बनाने के लिए उसने अपने इंजिनियरों से कहा । जिसमें आठ सिलेंडर एक ही तरफ होते हैं । ऐसा इंजन बनाना कठिन था। उसके इंजिनियरों ने कहा कि आप नहीं जानते इस बारे में। ऐसी कोई चीज बन ही नहीं सकती । हेनरी फोर्ड ने उन्हें ३ महीने का समय दिया । किंतु वैसा इंजन नहीं बना। ३- ३ महीने करके उन्होंने ९ महीने का समय दिया पर वे लोग उस तरह का इंजन बना ही नहीं पाए।
उसने उनसे एक बात कही- तुम लोग अपनी बुद्धि को सीमाओं में कैद करके बैठे हो । बस इतना हो सकता है, इससे ज्यादा नहीं हो सकता । तुम लोगों ने जितना पढ़ा उसके बाद सीमा रेखा लगा दी। जब यह सोचोगे कि इतना ही हो सकता है तो तुम कुछ नहीं कर पाओगे। तुम यह सोचो कि तुम्हारे पास गुणवत्ता है, यह जरुर करुंगा। मैं तुम्हें ४ महीने का समय और देता हूँ । इतना कहकर वे office से बाहर चले गए।
तीने महीने में ही जैसे चमत्कार हुआ और उनका v-8 इंजन तैयार हो गया। उससे उद्योग जगत में क्रांति की शुरुआत हुई। उनके इंजीनियर अच्छे थे, उन्होंने अच्छा काम किया, बात यह नहीं है । उनके अंदर जो गुणवत्ता थी उसको प्रकट करने वाला एक व्यक्ति था । जिसके प्रेरणा से उन व्यक्तियों ने अपने अंदर के श्रेष्ठ तत्व को बाहर निकाला।
हम भी यही सोचते हैं कि मैं अपने दुःख से बाहर नहीं आ सकता । मेरा कुछ भला नहीं हो सकता । मैं जहां हूं वहां से आगे नहीं बढ़ सकता । मेरी बिमारी जा नहीं सकती । अब नहीं हो सकता, अब उम्र नहीं रही। ना कोई साथ देने वाला है।
इसे कहते हैं उस व्यक्ति ने खुद को लिमिट में बांध रखा है । अपने आपको एक डिबिया में बंद करके बैठ जाईए और रोते रहिए किस्मत को । शिकायत करते रहिए अपने परायों की। बोलते रहिए कि मेरे साथ ज्यादती हुई है। जो दायरे बना रखे हैं उनसे बाहर आओ।
मैं भी यही कहना चाहता हूं कि जब भी आपकी जिंदगी में गुरु आता है, वह आपके अंदर के श्रेष्ठ तत्व को बाहर निकालने के लिए प्रेरणा देता है और कहता है कि अपने आपको दायरे में कैद मत करो । उठो जागो । कुछ करो।
SARAL VICHAR
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