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संपत्ति में बहन, विपत्ति में भाई | Brother Sister Sacrifice & Love Story Hindi


भाईचारे की जीत  | BHAEECHAARE KI JEET | Victory Of Brotherhood In Hindi By Saral Vichar

बह्मदेव नाम के राजा थे उनके दो बेटे थे बड़े का नाम यशदेव और छोटे का नाम धनदेव था। दो पुत्रों के बाद जब एक बेटी का जन्म हुआ तो राजा ने उसका नाम कीर्ति रखा । तीनों दूज के चांद की तरह बढ़ रहे थे। कुछ सालों बाद यशदेव का राजतिलक हुआ और वे राजा बने। धनदेव को राज्य का बड़ा भूभाग देकर उसे भी वहाँ का राजा बना दिया। राजकुमारी कीर्ति का विवाह भी एक राजा से कर दिया गया और वह भी रानी बन गई।

यशदेव बड़े थे। पिता के उत्तराधिकारी भी, बहन कीर्ति का उनपर विशेष स्नेह था। हर वार-त्योहार पर भाई के घर आती। उसका बड़ा आदर सत्कार होता । कुछ दिन भाई-भाभी के साथ सुखपूर्वक व्यतीत कर जब कीर्ति जाती, तो यशदेव उसे खूब धन व साजो सामान के साथ विदा करते।

एक बार पड़ोस के राजा ने यशदेव पर आक्रमण किया। राजा यशदेव हमले के लिए तैयार नहीं थे उन्होंने साहस और धीरज से काम लिया। उनके विश्वसनीय सेनापति ने ही दगा की थी। और कहीं से सहायता की कोई उम्मीद न रही तो वे रात में राज्य छोड़कर जंगल में चले गए। सातों सुखों में पले राजकुमार और रानी जंगल के जीवन में मुरझाने लगे। उन्हें इस हालत में देखकर राजा की चिंता बढ़ गई। एक दिन राजा को अपने भाई और बहन का ख्याल आया। भाई धनदेव भले ही छोटे से भूभाग के राजा थे, पर बहन कीर्ति का ऐश्वर्य अतुलनीय था। राजा यशदेव ने कीर्ति से मदद लेने का फैसला किया। बहन कीर्ति के राजधानी में पहुंचकर राजा यशदेव सोचने लगे, इस बुरी हालत में कैसे बहन से मिलूं? 

उन्होंने तिलक आदि लगाकर ज्योतिषी का वेश बनाया। महल के द्वारपाल से उन्होंने कहा, मैं तुम्हारी रानी के मायके से आया हूं। बचपन में उनकी कुंडली देखकर मैंने उनके रानी बनने की भविष्यवाणी की थी, पर उस दिन दक्षिणा न ली थी। आज मैं वही दक्षिणा लेने आया हूं।' रानी की आज्ञा पाकर द्वारपाल ने ज्योतिषी को अंदर पहुंचा दिया। ज्योतिषी ने रानी को हाथ दिखाने को कहा। हाथ देखते हुए यशदेव ने अपनी दाढ़ी हटा दी और बहन को अपना परिचय दिया। अपनी सारी कहानी सुनाकर उन्होंने उससे धन और सेना की सहायता मांगी।

रानी अपने भाई के हाल को देख रो पड़ी। आसपास आते-जाते दास-दासियों को देख कर उसने अपने को संयत किया। उसने सोचा, वह रानी है, उसके गरीब भाई को देखकर प्रजा क्या सोचेगी। वह राजा की नजरों से भी गिर जाएगी। बहन को चुप देखकर यशदेव बोले, कीर्ति! मैं बड़ी आशा लेकर तुम्हारे पास आया हूँ। भाई! मैं विवश हूं। तुम्हें इस दशा में अपने पति से मिलाते हुए मुझे लाज आती है। वे भी क्या सोचेंगे।'

रानी कीर्ति ने अपने भाई से कहा- तुम ज्योतिषी के भेष में ही महल से बाहर वाले पीपल तले बैठ जाना। मैं दासी के हाथ तुम्हारे पास कुछ खाने पीने का सामान भेजूंगी, इससे अधिक मैं कुछ नहीं कर सकती।' कीर्ति ने कहा।

यशदेव बहुत निराश होकर आए और पीपल तले बैठ कर दासी की प्रतीक्षा करने लगे। सांझ ढल गई तो दासी आकर पोटली दे गई। बड़ी आशा से राजा ने पोटली खोली, पर उसमें कुछ पका हुआ भोजन, कुछ पुराने कपड़े और थोड़े से पैसे थे। पोटली खोलकर राजा यशदेव बहुत दुखी हुए। विवश थे। बहुत भूख लगी थी सो खाना खाया और वहीं सो गए। भोर होते ही उन्होंने उन्होंने बहन के राज्य से विदा ली।

रानी के पास पहुंचकर राजा ने सभी समाचार सुनाए । और बोले, 'अब हमें मजदूरी कर जीवन यापन करना होगा, क्योंकि दुख में कोई सहायता नहीं करता। एक दिन रानी ने कहा, 'महाराज! धनदेव अपने राज-काज में व्यस्त रहे पर ये आपके भाई हैं। आप उनके पास एक बार जाकर तो देखें।' यशदेव को रानी की बात जंची। दूसरे ही दिन वे ज्योतिषी का भेष बनाकर भाई के राज्य के लिए रवाना हुए। वहाँ पहुंचकर उन्होंने द्वारपाल से कहा, 'मुझे राजा से मिलना है' ब्राह्मणों के लिए राजा के द्वार सदैव खुले हैं। यह कहता हुआ द्वारपाल उन्हें राजा के कक्ष में पहुंचा आया।

राजा धनदेव ने उन्हें प्रणाम किया और आसन दिया। यशदेव ने अपने दाढ़ी उतारी और बोले, धनदेव! मैं आपका भाई यशदेव हूं। शत्रु से पराजित मैं सपरिवार वन में कष्ट भुगत रहा हूँ । वैसे तो कभी आप तक आने का अवकाश नहीं मिला पर आज धन और सेना की सहायता के लिए आया हूँ।' राजा धनदेव भाई की दुर्दशा देखकर रोते हुए उनके चरणों पर गिर पड़े । राजा धनदेव उन्हें महल में ले गए। ऊंचे आसन पर भाई को बिठाया। अपनी सेना भेजकर सम्मान सहित जंगल से भाभी व बच्चों को बुलाया। दोनों भाई प्रेम से रहने लगे। कुछ ही समय बाद सेना संगठित कर भाई के राज्य में बसे शत्रु पर आक्रमण किया। विजय प्राप्त हुई। त्योहार के दिन नजदीक थे। राजा को अपनी बहन कीर्ति की याद आयी। उन्होंने उसे बुलावा भेजा। कीर्ति आई पश्चाताप के साथ बोली। भाई! मुझे क्षमा करो। दुख-सुख तो धूप-छाँव की तरह मनुष्य के साथ लगे रहते हैं। मैं झूठे अहं के कारण तुम्हें निराश कर बैठी और खुद भी दुखी हुई। राजा यशदेव, राजा धनदेव व रानी कीर्ति वर्षों तक राज्य करते हुए नेह निर्वाह करते रहे। इस घटना के बाद यह कहावत प्रचलित हुई-

'संपत्ति में बहन। विपत्ति में भाई।

 

SARAL VICHAR

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