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अपने अस्तित्व और आत्मा की यात्रा समझने के सरल तरीके | Self Awareness & Spiritual Journey (MAA ANANDMURTHI )

आप इस दुनिया में आए नहीं हो, भेजे गए हो।  |  YOU HAVE NOT COME INTO THIS WORLD, YOU HAVE BEEN SENT - www.saralvichar.in


मन में हमेशा ऐसी बात रहनी चाहिए कि हम अकेले आए हैं और अकेले जाएंगे । किंतु यह बात हमेशा याद रहे कि हम भले कोई तारा बन जाएं या पाताल में विश्व के किसी भी कोने में हों, ईश्वर हमारे साथ ही है। भले तुम्हारे सामने तुम्हारे घर का कोई प्राणी मर जाए, किंतु तेरी आंख से आंसू न आए, क्योंकि अगर ट्रेन में सफर कर रहे हैं तो साथ में कई लोग होते  हैं। किसी के साथ बात करते हैं, किसी के साथ खाना खाते हैं। फिर अपने-अपने स्टेशन पर सभी उतर जाते हैं। हम भी उन्हें खुशी से गुडबाय बोलते हैं। भले फोन नं. एक्सचेंज करते हैं । किंतु उनके जाने से हमें कटुता नहीं होती। किंतु इतनी नजदीकी भी नहीं होती कि घर पहुंचकर हम उन्हें रो-रोकर उन्हें याद करें। साथ में बैठने से भले थोड़ी-बहुत बातचीत हो जाती है। फिर गाड़ी से उतरकर कौन किसको याद करता है?

एक बार एक बच्चा अपने पिता के साथ बस में चढ़ा। वह पिता सारे सफर में साथ में बैठे बच्चे के साथ बात करता रहा। उसका बेटा चिढ़ता रहा। बस से उतरे तो इसके बच्चे का मुंह फुला हुआ था । बोला- जाओ, आप उसी बच्चे के साथ बात करो। पिता बोला- बेटा, मेरा लाडला तो तू है। वह तो मूंगफली टाईम पास था। मुझे तो सिर्फ समय बिताना था।
 काश! हम इसी ख्याल से अपने साथियों, मित्रों, दोस्तों के साथ ऐसा व्यवहार कर पाते! कि ये सब मूंगफली टाईम पास हैं । हम रिश्तेदारों को कहेंगे कि मंमी, मैं आपके बिना नहीं रह सकती । अगर वह शरीर चला जाए तो फूंककर आएंगे उसे और फिर चालू हो जाता है कि खीर-पूरी बनाएं या हलवा बनाएं। उसकी तेरवीं पर अच्छी-खासी पार्टी होती है कि कहीं नाक नीची न हो जाए। उस बेचारे की फोटो टांग देते हैं और उसी के कमाए पैसे से लोग पार्टी करते हैं । सब वक्त पास करते हैं। सब एक-दूसरे को धोखा देते हैं कि मैं तेरे बगैर नहीं रह सकता । पर यह धोखा इतना अच्छा लगता है कि कोई इससे बाहर नहीं आना चाहता।

एक बार एक पत्नि ने पति से कहा- आपको पता है कि हिप्नोटिज़्म क्या होता है? वह बोला- नहीं। पत्नि बोली- किसी को हिप्नोटाईज़ करके उससे कुछ भी करवा सकते हैं। पति बोला- पगली, उसे तो शादी कहते हैं। जिसने कभी सब्जी न खरीदी हो वह ४-४ थैले उठाकर, साथ में बच्चे को लिए चलता है। वह कभी मां को बोलता था- मां, मैं तुम्हारा लिफाफा नहीं उठा सकता । मेरी इज्जत खराब होगी। वही थैले और बच्चे लिए भरे बाज़ार में चलता है। जिम्मेदार पिता और पति होने का फर्ज अदा करता है। सबको यह खुशफहमी है। स्वामी तो आजकल कोई कहता नहीं है, ए जी, ओ जी कहकर सुबह शाम पराठे खिलाकर, धुले प्रेस कपड़े देकर और बार-बार साईड से यह अहसास करवाकर कि मैं नहीं होती तो तेरा क्या होता? और और यह बुद्ध भी मानने लगता है कि, हां तू नहीं होती तो मेरा क्या होता ।

ऐसी राजनिती चलती रहती है। कुछ ऐसा ही काम पति भी करते हैं । कभी साड़ी ला दी, कभी कभार फूल ला दिए । मेरी अर्धांगिनी, मेरी शक्ति, मेरी लक्ष्मी तू है तो सब कुछ है।

एक पत्नि ने कहा- मुझे देवी-देवताओं वाले नाम देने की कोई जरुरत नहीं, मुझे तो पैसे दो तो घर चलाऊं । परस्पर ब्लैकमेलिंग हो रही है। और लोग इमोशनल ब्लैकमेल हो रहे हैं। यह सब इसलिए कह रही हूं क्योंकि आज जैसी शादी हो रही है वह यही है। पहले शादी का अर्थ होता था- It wood be meeting a two complete people. पहले गुरु आश्रम में लोग सीखते थे तो वह ब्रह्मचर्य कहलाता था । हमारे प्राचीन योग्य शास्त्री कहते हैं कि पहले २५ वर्ष तक कोई शारीरिक संबंध न बनाए अपने वीर्य की रक्षा करे तो ऐसा व्यक्ति अत्यंत वीर्यवान अत्यंत ओज़वाला होता था । वीर्यवान एक पदवी होती थी । आदमी वह अपने ज्ञान से, अपनी आंतरिक शक्ति से तेजस्वी होता था । जिसमें कोई भावनात्मक कमजोरी नहीं है। जीव को यही समझना चाहिए कि तू अकेला नहीं है। जब तू गर्भ में था, अभी तू जीवित है और जब यह शरीर छूटेगा उस समय भी परमात्मा तेरे साथ होगा । जिस पथ पर अंधकार है वहां पर भी परमेश्वर के नाम का प्रकाश है। अफसोस! उस परमात्मा को ही मनुष्य भूल जाता है।
 
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आप इस दुनिया में आए नहीं हो, भेजे गए हो। आपने कोई एप्लीकेशन नहीं दी थी कि मुझे जन्म दे दिजिए। क्या आपने अपने जन्म का मुहुर्त, तिथी तय किया था? हुआ यूं कि आपने अपने आपको किसी शरीर में पाया । उस शरीर में सांस चल रही थी। आंख खुली तो दुनिया दिख रही थी, आवाजें सुन रही थीं। आपने देखा होगा के छोटे बच्चे की आंखों में कितना आश्चर्य होता है। चिड़िया भी देखता है तो हंसता है। किसी के भी पास चला जाता है। भूख लगने पर दूध मिल जाए और गीला होने पर सुखा दें तो वह खुश रहता है। आगे-पीछे उसे किसी की आवश्यकता नहीं है। अभी न माया, न लोभ है। एक फूल को देखता है तो खुश होता है, कोई झुनझुना बजा दे उसके पास तो जैसे उसके लिए अनहद नाद बज जाए ऐसा खुश होता है। पुचकारने पर हंसता है। उसकी सांस अपने
आप चलती रहती है। आप उसकी सांस नहीं लेते हो। 
आप चाहकर भी इस सांस को रोक नहीं पाते। सोचो! अगर हमें सोचकर सांस लेनी पड़ती तो करोड़ों मुर्दे रोज निकल रहे होते कि सांस लेना भूल गया । बेहोश हो, कोमा में हो तो भी सांस चल रही है। न आपको अपने आने का पता है न जाने का । हम नहीं जानते कि यह शरीर मर क्यों जाता है। हमें अपने अस्तित्व का ही कुछ पता नहीं है। सब कुछ तो अपने आप हो रहा है। अगर हमें अभी यह नहीं पता चला कि हम क्यों आए हैं तो एक दिन बेहोशी में ही चले भी जाएंगे। जन्म के साथ इतनी जोर से 'मैं' पना जुड़ जाता है कि हम इस शरीर से अलग नहीं होना चाहते । मृत्यु का ख्याल भी, विचार भी नहीं करना चाहते। कोई बात भी करे तो घबराहट होती है।

कुछ चीजों को समझ लिजिए। सिर्फ सुनना या पढ़ना नहीं, इसे समझना है। हमारे ऋषि-मुनियों ने, आचार्यों ने एक बात कही है कि आपका आना भले बेहोशी में हुआ है, किंतु अब इस बेहोशी को छोड़िए । जागिए, समझिए, मैं कौन हूं? अगर मैं कहूं आप यहां क्यों हो तो आपने शायद कुछ पढ़ा हो, सुना हो, आप आसानी से कह देंगे कि भगवान को प्राप्त करने के लिए यहां आए हैं। अगर भगवान को प्राप्त करने के लिए, अपने को पहचानने के लिए आप यहां आए हो तो फिर वह काम क्यों नहीं कर रहे? आप सत्तर साल के, साठ साल के हो गए हो, पर बिल्कुल तड़प नहीं हो रही कि भगवान कौन है? शरीर अब बूढ़ा हो रहा है तो जल्दी से अपना काम कर लूं। इसका अर्थ यही है कि आपने बातें सिर्फ सुनी हैं, समझी नहीं । आपके अंदर वह भूख नहीं जागी है जो आपको इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने पर मजबूर करे। आप लोग अपने अज्ञान में बहुत खुश हो। यह बात तय कर लो कि इस जगत में आप अकेले ही हो ।

लोगों को अकेले रहने में डर लगता है । वे लोग बाहर के झमेलों में, रिश्तेदारों में, शॉपिंग में अपने आप को व्यस्त रखते हैं और शाम को थककर सो जाते हैं। इतना समय किसके पास है कोई यह सोचे कि स्वयं को जानना है। आप घर में अकेले होते हैं तो फोन पर बातें करेंगे, टी.वी. देखेंगे या खुद भी बाहर चले जाएंगे । क्या कभी ऐसा होता है कि न आप टीवी देंखें न अखबार पढ़ें बस अपने अंदर उतर जाएं। जो यह करना जानते हैं, उन्हीं को हम साधक कहेंगे।

साहब तेरा दिल में बैठा, बाहर नैना क्यों खोजे?

मन मस्त हुआ, यह क्यों डोले, क्यों डोले,

हल्की थी तब चढ़ी तराजू, भारी भई अब क्यों तोले? गठरी में तेरे साहेब बैठा, बाहर नैना तू क्यों खोले।

 

SARAL VICHAR

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