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जिंदगी में सचेत और जागरूक रहकर सफलता और शांति पाएं | Jagrut Avastha aur Hosh (Sudhanshuji Maharaj)

  जागृत अवस्था  |    सुधांशु जी महाराज  |  AWAKE STATE  |  SUDHANSHUJI MAHARAJ  - www.saralvichar.in

जागृत अवस्था- याने होश में रहना सीखो । होश है तो ठीक है। मजे की बात देखिए कि जब जवानी होती है तो जोश-जोश, सपने सपने । लेकिन होश बिल्कुल नहीं है । और... जैसे ही बुढ़ापा आया तो होश ही होश है और जोश बिल्कुल नहीं है। सपने फिर भी हैं लेकिन वे भी अजीब हैं। आगे का देख नहीं सकता, पिछली बातें याद करता है। क्योंकि आगे का. देखेगा तो मौत दिखाई देती है तो पिछला ही याद करता है कि 'म इतना सुखी था, मैं यह था, वह था । मैंने ऐसी-ऐसी दुनिया देखी, ऐसी जगह  गया, ऐसे-ऐसे बादाम खाए, घी यह भाव था । दुनियाभर की बातें करेगा ।

आगे की कल्पना नहीं कर सकता और जवान आगे की ही कल्पना करता है, पीछे की बात करता ही नहीं है। क्योंकि पीछे तो खेल-खिलौनों की दुनिया थी। लेकिन दोनों अधूरे हैं। एक के पास जोश है तो दूसरे के पास होश है। जिंदगी तब चलती है जब दोनों चीजें एक जगह आकर जुड़ जाए।

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ये भी एक मजे की बात है । जब जीना आता है तब जिंदगी का रस नहीं ले सकता । 

भगवान भी अजीब खेल खेलता है- जब दांत देता है तो चने नहीं होते और जब चने होते हैं तो दांत नहीं रहते। दोनों का मेल किस्मत में, व्यवस्था में नहीं है। लेकिन यह बात याद रखिए कि जब किसी जवान को होश मिल जाए तो जिंदगी जीने का जो मजा वह ले सकता है वह परम सौभाग्य कहलाएगा । 

इसलिए सत्संग की जरुरत जवानों को ज्यादा व बूढ़ों को कम है। लेकिन सत्संग में ज्यादातर बूढ़े ही आते हैं। वे सोचते हैं कि चलो परलोक सुधर जाएगा । सत्संग तो उनके लिए अधिक है जिन्हें जिंदगी का मर्म समझना है। मर्यादा में होश पूर्वक अपने जोश का प्रयोग करते चले जाएं तो जोश ज्यादा देर तक टिके। फिर जिंदगी का रस लिया जा सके।


पहली बात कही गई है उठो, परिस्थितियों को तोड़ने के लिए । जागृत और होश में रहो। सजग, सावधान, सतर्क, अलर्ट रहना है । आलस्य का परित्याग करते हुए सतर्क रहना है । 

 सावधान हो जाईए कि कोई तारीफ भी कर रहा है तो क्यों कर रहा है? सच में कर रहा है या झूठी तारीफ कर रहा है। कोई बुरा भी कह रहा है तो क्या सच में सही कर रहा है या उसकी ईर्ष्या बोल रही है, या उसके बदले की भावना बोल रही है या उसकी नासमझी बोल रही है।

किसी के बुरा बोलने पर भी अपने मन को कमजोर मत करो, और अगर वह सच कह रहा है तो यह समझो कि उसमें से कुछ चुन लिया जाए । गांधीजी को किसी ने दो पन्ने भर कर गालियां लिखी, किंतु उन्होंने उस पन्नों के बीच की आलपिन को रख लिया और बाकी कूड़े में डाल दिया । वह व्यक्ति बाद में उनसे मिला। उसके पूछने पर गांधीजी बोले कि आलपिन काम थी वो मैंने रख ली बाकी तो कूड़ा था तो
कूड़े में डाल दिया । यह सुनकर वह व्यक्ति शर्मिंदा हुआ । उसने सोचा गांधीजी गुस्से में आकर कुछ बोलेंगे । गांधीजी कुछ नहीं बोले। वह आदमी इसलिए भी शर्मिंदा था कि मैं इस आदमी को हिलाना चाहता था, लेकिन यह हिला नहीं।

गांधीजी जानते थे कि उस आदमी का गुस्सा बोल रहा है। 

बस यही कहना चाहता हूँ कि सामने वाले की बात में सच है तो संभाल लो और अगर वह कुछ गलत बोल रहा है तो बुरा क्या मानना। उसकी मानसिकता ही ऐसी है। इससे ज्यादा वह क्या कर सकता है? उसकी तरफ से ध्यान हटाओ और अपनी राह पर चलते चलो, क्योंकि दुनिया में ऐसे तो हमेशा से ही हुआ है कि आदमी जब भी कुछ अच्छा करता है उसकी राह को रोकने के लिए तरह-तरह के लोग आते रहेंगे। हरेक के लिए कुछ न कुछ तो कहा जाता ही है । मन को बुझने मत दो। होश में रहना, सतर्क रहना ।

अपने मन की उर्जा को, अपने सामर्थ्य को जोड़ो जिससे तुम्हारे जीवन में लक्ष्मी आती हो, तरक्की आती हो उन कर्मों में अपने मन की उर्जा को जोड़ो । आधा- अधूरा मन मत लगाओ।

दुनिया में व्यक्ति को शाबाशी देने वाले लोग मिल जाएं तो व्यक्ति को खिलने का मौका मिलता है। दुःख इंसान को संकुचित कर देता है । दुःख में आदमी की प्रतिभा कुंठित हो जाती है। दुःख से ज्यादा निराशा में ऐसा होता है। दुःख जब निराशा का रूप ले लेता है, पीड़ा जब डिप्रेशन बन जाती है तो आपकी शक्तियां, आपकी प्रतिभाएं सिकुड़ने लगती हैं। और.. थोड़ा- थोड़ा सुख आए और किसी की शाबाशी मिले तो फिर आप खिलने लगते हो ।

                     

SARAL VICHAR

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