BE RESPECT FOR PARENTS
भैया सबसे जीतना, माता-पिता को मत जीतना । उन्हें पराजित मत करना । लेकिन
एक सांची बात बता रहा हूं आपको, माता-पिता को प्रसन्नता ही उसी दिन होती है
जिस दिन पुत्र उसे पराजित कर देता है । अपने ज्ञान, शील, संयम, सदाचार,
नैतिकता, अपनी पवित्रता, उदारता और अपने भीतर के सद्गुणों से जिस दिन अपने
पिता के हृदय को जीत लेता है, जिस दिन माता को यह पता लग जाए कि मेरी
पुत्री सदगुणी, सदाचारी, संपन्ना, कुलशीला, अत्यंत शालीन है, ये कितनी
मर्यादित है, इसकी नैतिकता को कोई अंत नहीं ।
अगर आपको जीतने का मन करे अपने माता पिता को तो नैतिकता के आधार पर जीतना ।
एक
पिता के प्राण तभी आसानी से निकलते हैं जब उन्हें पता लग जाए कि मेरा
पुत्र साहसी, समर्थ, मेधावी व योग्य है। इसकी क्षमताएं अपार हैं।
अगर
हम अभिमान के साथ बताएं कि हम ज्येष्ठ हैं, श्रेष्ठ हैं, पांडित्य की किसी
पेचीदगी से, छल- बल से, अर्थ के प्रभाव से, पदार्थों की प्रचुरता से,
वस्तुओं की बहुलता से, पद की सिद्धी से, अपनी कीर्ति की ख्याति से हम उन्हें
गौण करना चाहें कि देखो आपको कोई जानता नहीं था, हमें तो सब जानते हैं । तो
भई, ये तो अपराध हो जाएगा।
माता-पिता को ऐसे वशीभूत मत करना। कभी
नहीं। अपनी सिद्धी को, अपनी लोकप्रिय छवि को उनके सम्मुख इस रुप में मत
रखना कि मैं जयी हूं, पराक्रमी हूं और आप कुछ नहीं कर पाए।
इससे माता-पिता को कष्ट होता है।
SARAL VICHAR
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