जब मन अंतर की मस्ती को चख लेता है तो डोलना भूल
जाता है। फिर चाहे उसके आस-पास कुछ भी हो रहा हो। हर चीज में वह ईश्वर की
इच्छा देखता है और ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध भक्त कैसे जा सकता है? जब से
कुछ मेरे मालिक की रजा पर हो रहा है तो मैं किंतु-परंतु क्यों करूं?
यही
निश्चय साधक के मन के पथ को इतना मजबूत कर देता है कि अनहोनी से अनहोनी
घटना भी उसके आसपास हो जाए तो वह परेशान नहीं होता, वह दुःखी नहीं होता ।
आज अगर हमको बढ़ते हुए तनाव की घटनाएं देखने को मिलती हैं तो उसकी वजह जीवन
की समस्याएं बढ़ गई हैं... ऐसा नहीं हैं। वास्तव में मनुष्य के मन में
ईश्वर के प्रति विश्वास ही नहीं रह गया है। आस्था नहीं रह गई है। इसलिए वह
हर बात में परेशान हो जाता है।
आज स्ट्रेस को जैनेटिक याने वंश से आने वाली बिमारी कहने लगे है। यह बहुत बेवकूफी वाली बात है।
यही
प्रश्न मेरे पास आया था कि क्या तनाव वंशानुगत होता है? मैं यह बता दूं कि
तनाव जेनेटिक, नहीं है। वैसे आजकल दिमाग के डॉक्टर (न्यूरोसर्जन) बहुत
तरक्की कर ली है। कभी किसी को तनाव या विभाग में गड़बड़ी हो जाती है तो डॉ.
उसको ठीक भी करते हैं।
एक डॉ. डेनियल है। उनका कहना है कि कोई
तोड़फोड़ करे, ट्रेफिक रुल तोड़े, बदतमीजी करे, गाली- गलौच करे तो उन्होंने
खोज की तो पता चला कि वह बच्चा अटेंशन (ध्यान देना चाहता है। लोगों का
ध्यान उस पर जाए इसलिए वह ऐसा करता है ।)
उस डा. ने करीब ४० हजार मरीजों पर रिसर्च किया, उनके दिमाग की स्केनिंग की तो पता चला कि कभी-कभी बचपन में माथे पर चोट वगैरह अगर लग जाती है और दिमाग के किसी हिस्से को क्षति पहुंचती है तो वह खतरनाक होता है या जन्म के समय नर्स या दाई के हाथ से बच्चा फिसल जाता है तो उस समय की लगी चोट उस बच्चे की आने वाली पूरी जिंदगी को बदल देती है। कभी-कभी बच्चे खेलते हुए गिर जाते हैं । हमारे यहां तो मोटरसाईकिल चलाते हुए लोग हेलमेट नहीं पहनते किंतु विदेशों में अगर कोई साईकिल चला रहा हो व उसने हेलमेट नहीं पहना है तो मां-बाप को १००-२०० डॉलर का जुर्माना भरना पड़ता है कि आप इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो। क्योंकि इस उम्र में लगी हुई चोट बच्चे के पूरे जीवनभर के निर्णय व सोच को बदल सकती है। डॉ. डेनियल ने रिसर्च में पता किया कि दवाओं के साथ उस व्यक्ति को अखरोट, ऑलिव ऑयल, ५-६ बादाम रोज खाए, पालक खाए सलाद खाए और मैदा, सूजी व तला हुआ खाना न खाए तो ऐसे व्यक्ति के दिमाग में आए बदलाव को हम मात्र खाने (डाईट) से ठीक कर सकते हैं।
डॉ. डेनियल अपने मरीजों को खेलने के
लिए डांस स्कूल, म्यूजिक स्कूल, शतरंज खेलने का सुझाव देते हैं। ६ से १२
महीने में उन लोगों का स्वभाव बदल जाता है। जिन मरीजों को यहां तक कह दिया
गया कि वे क्लिनिकली डिप्रेशन याने ज्यादा डिप्रेशन में हैं, उन लोगों को
डॉ. ने ठीक किया। सबसे हैरत वाली बात यह है कि डा. उनको ध्यान करने के लिए
कहते हैं। योगा, टेबिल टेनिस खेलने को कहते हैं व साथ में कुछ दवाएं भी
देते हैं ताकि ओमेगा की मात्रा शरीर में अधिक जा सके।
लेकिन मुझे आज
भी तरस आता है हिंदुस्तान के मनोवैज्ञानिकों के ऊपर कि जो आसानी से कह
देते हैं कि मरीज को जेनेटिक डिप्रेशन है जो कभी ठीक नहीं हो सकता । मैं उन
लोगों से यही कहूंगी कि उनको अपनी पढ़ाई ठीक करनी चाहिए। डॉ. का काम है
मित्र होना । मरते हुए इंसान को भी यह आश्वासन देना कि तू ठीक हो जाएगा ।
यह एक खासियत डॉ. में होनी चाहिए। अगर आपने इस बात को मान लिया तो आपके
जीवन में वही सब कुछ होने लग जाएगा क्योंकि आपने अवचेतन ने इस बात को मान
लिया। आप लोग नेगेटिव बात सोचते हो । बच्चा बाहर गया हो, और आप सोचते हो
गिर न जाए तो आप गिरने की पूरी संभावना बना रहे हो।
आप सोचते होगे
कि ऐसा कैसे हो सकता है? पर हर शब्द एक ध्वनि है। हर ध्वनि का असर होता है ।
यहां एक उदाः देती हूं। भयंकर से भयंकर फिल्म खासकर जिस फिल्म के कहा गया
हो जो इस फिल्म को अकेला देखेगा उसे इनाम मिलेगा । मैं उनसे कहती हूं कि हम
पिक्चर पूरी देखेंगे किंतु उसमें आप आवाज न करें। बिना आवाज की वह फिल्म
आपके लिए कॉमिक्स की पिक्चर हो जाएगी। वे आवाज से डर पैदा करते हैं। शब्द
की आप कीमत समझिए। आपको ४ लोग कहेंगे कि आप बिमार लग रहे हो तो आपको जरुर लगेगा कि आप बिमार हो । किसी ने तुम्हें कहा कि तुम्हें तो अक्ल ही नहीं है। सुन-सुनकर तुम
खुद मानने लग जाओगे कि मुझमें अक्ल नहीं है। टीचर किसी बच्चे की तारीफ
करती है तो कैसे बच्चा खुश हो जाता है। ऑफिस में अगर मालिक बोले- गुड वर्क ।
तो खुश हो गए। बॉस ने डांटा तो दुःखी हो जाते हैं। एक बच्चा अपने ७०-७५
साल के दादाजी से कहता है- माय दादू इज़ स्ट्रांगेस , तो उस बूढ़े में भी
जान आ जाती है। अब इसके विपरित घर के लोग कहें कि तू तो बुड्ढा हो गया है
तो वह भी मानने लग जाएगा।
हिंदुस्तान में जब कोई रिटायर होता है तो
वे अक्सर डिप्रेशन में चले जाते हैं। बेकार हो गए, अब क्या करेंगे? दिन-रात
सोच सोचकर सही में वे बिमार भी हो जाते हैं । अच्छे-भले थे। ऑफिस
जाना-आना, शॉपिंग वगैरह सब करते थे । किंतु जब से घर में बैठे हैं, डाऊन
चले जाते हैं।
अमेरिका में मैंने देखा है टूरिस्ट भाग या कई ऐसी जगह
जहां आपको बूढ़े दिखाई देंगे। कुछ दिन पहले हम नार्वे से डेनमार्क शिप में
गए थे। वहां ८०% बूढ़े थे। यहां के बूढ़ों में और वहां के बूढ़ों में बड़ा
फर्क है। यहां के बूढ़े मोह-ममता में एड़ियां रगड़-रगड़ कर बच्चों को
सबकुछ देते हैं। मेरा बच्चा खा ले, मेरा बच्चा कान्वेन्ट पढ़ ले, MBA कर
ले। बेचारा पेट काट-काटकर उनको पालता है। फिर उनकी शादी में कितना खर्चा कर
लेता है। फिर जब उसकी रिटायरमेंट की उम्र आती है तब पैसा भी कम हो जाता है
और शक्ति भी। ऊपर से भारत में यह कहा जाता है - बूढ़े हो गए, अब तो आराम
कर । राम-राम कर । वहां पर कहते हैं कि ६० से हमारी उम्र शुरु हुई । वे काम
करते हुए सेविंग करते रहते हैं।
वहां का सिस्टम कुछ ऐसा है कि
बच्चे बता देते हैं कि मैं शादी कर रहा हूं तो बाप कहता है ठीक है । मैं आ
जाऊंगा। उसके पास समय होगा तो वह आएगा, चेक-वेक देना होगा तो दे देगा, खाना
खाएगा, डांस करेगा, मुफ्त की शराब पीएगा और चला जाएगा। पैसे नहीं देते वे ।
वे कहते हैं- पढ़ा दिया । पढ़ाया क्या, वहां पर तो स्कूल भी फ्री, कॉलेज
में भी इतना खर्चा नहीं होता । १४-१५ साल की उम्र से बच्चों को सिखाते हैं
कि बेटे कमाओ । घर मेरा है, मेरी मर्जी से रहना है। कमाओ और अपनी मर्जी करो
। स्कूल जाने वाले बच्चे नौकरियां करने लग जाते हैं। १८ साल के होते ही घर
से बाहर...।
एक हिंदुस्तानी दपंति मिले लासँ एंजिल्स में । वे
परेशान थे कि बेटा २५ साल का हो गया है किंतु अब तक घर में रह रहा है ।
मैंने कहा कि ये तो अच्छी बात है। कल फिर आप ही कहोगे कि बच्चा पूछने भी
नहीं आता । वे कहने लगे नहीं-नहीं। हम इसके लिए तैयार हैं।
वहां मन
की फालतू ममता कोई नहीं बनाते । ६० साल के होते ही उनकी छुट्टियां शुरु हो
जाती हैं । हमारे यहां ६० का होते ही बच्चे कफन का ऑर्डर देने लग जाते हैं ।
वसीयत बना दी है या नहीं, यही सोचते रहते हैं।
इसलिए कहती हूं कि
विचारों को समझिए, क्योंकि आपका शरीर, आपका जीवन विचारों अनुसार हो जाता
है। हमारे यहां वेदों में एक श्लोक है जो सूर्य को सुबह देखते हुए कहा जाता
है कि - हे सूर्यदेव, आज से मेरी उम्र १०० वर्ष की हो । सूर्य को शरीर का
कारक मानते हैं । १०० वर्ष तक जीयूं ऐसी प्रार्थना इसलिए की जाती है कि जो
आत्म-अनुसंधान करना है उसके लिए बहुत वक्त चाहिए, और वह काम किए बगैर वह
मरना नहीं चाहता। इसलिए हर सुबह यह प्रार्थना करता है। उसे मरने से डर लगता
है क्योंकि जिंदगी में जो श्रेष्ठ काम करने हैं, उसके लिए आयु चाहिए।
फिलहाल आप ऐसे काम कर रहे हैं जिससे आयु कम हो। जैसे- ज्यादा खाना खाते
हैं। ज्योतिष चार्ट में २ रा घर खाने का है व मौत का भी है। ७ वां घर शादी
का भी है और मौत का भी है। मोत तो साथ साथ चल रही है। अधिक खाने से दूर
रहें, बासी और तला हुआ कम खाएं । पौष्टिक खाएं।
श्रीकृष्णजी ने
बहुत सुंदर बात गीता में कही है आपका खाना -पीना, व्यवहार युक्तिपूर्वक
होना चाहिए। क्या खाना, खाना, कब सोना, कब क्या पीना सबका विचार होना
चाहिए।
ऋषियों ने कहा है कि सुबह जब बिस्तर पर हो तब प्रभू का
धन्यवाद करो कि सांस चल रही है, हम जिंदा हैं। आपकी वाणी से पहला शब्द
ईश्वर का नाम हो। सहस्त्र नाम हैं ईश्वर के । फिर देंखे कि कौनसी नासिका से
श्वांस चल रहा है फिर वह पैर जमीन पर रखें। फिर शरीर को अंदर-बाहर से
शुद्ध करो । कफ है तो नेति और मल है तो प्रक्षालन जैसी विधा करो । सैर करो।
आसनों को होशपूर्वक समझते हुए करो, प्राणायाम में यह समझिए कि आपका हर
सांस भीतर बाहर करने पर आपका शरीर स्वस्थ हो रहा है, मेरे शरीर की उर्जा
बढ़ रही है।
ओम
SARAL VICHARTopics of Interest
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