माता-पिता का पन्ना
सभी माता-पिता इसे अवश्य पढ़े...
बच्चा जिस दिन
रिजल्ट लेकर आता है, उस दिन हम उसे डांटते हैं। किंतु वह तो डांटने का दिन
नहीं होता। क्योंकि उस दिन तो वह खुद अपने आपको ही बहुत डांट रहा है। वह
अंदर ही इतनी गिल्ट में है। आपको पता है जितने बच्चे फेल होने के बाद
सुसाईड करते हैं या सुसाईड करने का सोचते हैं। दरअसल वह फेल होने के कारण
नहीं सोचते, फेल होना क्या बड़ी बात है, एक साल और... पास हो जाएंगे। वह
इतनी बड़ी बात नहीं है। वह सुसाईड करने का इसलिए सोचते हैं कि वे अपने माता
पिता को face नहीं कर सकते । यह बहुत बड़ा डर होता है उनके लिए। आज हमारे
बच्चों से कोई गलती हो भी जाती है तो वे आकर नहीं बताते । जब बच्चा छोटा
होता है तब सबकुछ आकर बताता है। चाहे हम उसकी बात सुने या न सुने, वह हमारे
आगे-पीछे आकर बताते हैं। बड़े होने के बाद हम बच्चों के आगे-पीछे घूमते
हैं कि आज क्या हुआ? वे अपने रूम में चले जाते हैं और बाहर जाने को कह देते
हैं।
यह क्यों हो गया? हमारे पूछने पर उसने झूठ बोलना शुरु कर
दिया। जब बच्चे छोटे
होते थे तब हम उनकी बातें सुनकर मुस्कराते थे। उस बच्चे को सबसे प्यार,
स्वीकार मिलता था । थोड़ा बड़ा होने पर उसने बताया कि आज हम स्कूल बंग करके
पिक्चर देखने गए। आपने उसे डांटा या मारा । उसे समझ ही नहीं आया कि आज क्या हो गया । उसके लिए तो पहले भी वही बात थी और आज भी वही बात है। वह तो अपनी
हर बात आकर बताता था, उसी तरह पिक्चर वाली बात भी बताई। किंतु आज उसे
रिजक्शन मिला कुछ समय बाद उसने कुछ और बात बताई जो आपके हिसाब से गलत थी
किंतु उसे यह नहीं पता था कि वह कुछ गलत कर रहा है। उसे लगा कि अब ये मेरी
बातें रिजेक्ट करते हैं ।
उसने धीरे-धीरे बताना बंद कर दिया और हमने सोचा
कि बच्चे ने वह काम जो हमें नहीं पसंद हैं उसने करना बंद कर दिया है।
कई
ईमेल हमें आते हैं और बच्चे लिखते हैं कि हमें यह प्राब्लम है। पर आप इसे
टीवी पर नहीं बताना क्योंकि मेरे मंमी- पापा टीवी देखते हैं।
जहां
पर बच्चों की परेशानी का हल मिल सकता है, वहां पर बच्चे
बताना नहीं चाहते। कितनी बार बच्चे दोस्तों के मां बाप के पास जाते हैं और
वे बच्चे इनके मां-बाप के पास आते हैं।
क्योंकि बच्चों के दोस्त आते हैं तो
हम बहुत अच्छी राय देते हैं। गुस्सा नहीं होते । किंतु जब हमारा अपना
बच्चा आता है तो हम रिएक्ट (प्रतिक्रिया) करते हैं। ऐसे हम अपने ही परिवार
को दूर करते जा रहे हैं।
आज के समय में अपने बच्चे को protect करना
है तो बच्चों से आप कहिए कि आप हमें अपनी हर बात बता सकते हैं।
वैसे बच्चे तो सुनाने के लिए तैयार हैं किंतु क्या आप सुनने को तैयार हैं ?
हम कहते
हैं बच्चे ने झूठ बोला। आप ही बताइए कि कोई झूठ क्यों बोलता है? फिर वह
चाहे आफिस में हो या घर पर । उसे झूठ बोलना पड़ता है । मान लो, कोई आपकी
टीम का मेम्बर है, उसे क्रिकेट मेच देखने जाना है । अगर वह आपको सच आकर
कहेगा तो आप उसे छुट्टी नहीं देंगे, इसलिए वह हास्पिटल का बहाना करेगा कि
मेरी पत्नी या मां को हॉस्पिटल लेकर जाना है।
कोई भी झूठ बोलना नहीं
चाहता, किंतु लोग सच सुनने को तैयार नहीं हैं।
अगर कोई आपसे झूठ बोलता है
तब सामनेवाले पर गुस्सा मत करो, अपने आप को चेक करो कि क्यों इसे मुझपर
इतना विश्वास भी नहीं है। झूठ बोलने का कल्चर (संस्कृति) तो हम सामनेवाले में
पैदा करते हैं।
आज पूरी टीम खुद को बचाने के लिए दूसरे पर इल्जाम
लगा देती है, इससे हमारा रिश्ता भी बिगड़ा और एक-दूसरे को नीचे गिराकर
बड़ों की नजरों में ऊपर उठने की कोशिश कर रही है। यह सब हमारी प्रतिकिया के
कारण हो रहा है। गुस्सा करते-करते हमारा संस्कार ही गुस्सेवाला बन गया है।
मेडिटेशन हमें सिखाती है कि बात आए तो धैर्य रखो, स्थिर रहो।
आज के
समय में बच्चे को protect करना बहुत महत्वपूर्ण है। वरना बच्चे को जो
दोस्त या ग्रुप स्वीकारते हैं वे वहां पर जाते हैं फिर न चाहते हुए भी
बच्चे उनकी बातों को मानते हैं।
हम सोचते हैं कि हम गुस्सा नहीं
करेंगे तो सामनेवाला नहीं सुधरेगा । गुस्से से सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही
होता है। हम शांतिपूर्ण आत्मा हैं, प्योर आत्मा हैं । सामनेवाली आत्मा भी
शांतिपूर्ण है। दोनों को ही शांति पसंद है। गुस्से से तो दोनों का दम घुटता
है। अगर हमसे कोई काम करवाना चाहता है तो क्या हमें भी गुस्से से ही सब
बात समझ आएगी? क्या कोई हमसे प्यार से बात करेगा तो क्या हम वह काम नहीं
करेंगे? सभी प्यार से ही काम करना चाहते हैं, क्योंकि हर आत्मा का संस्कार
है शांति ।
मान लो सुबह बच्चों को नींद से उठाना हो तो घर पर क्या
सीन हो जाता है। हमने बच्चे के शांत और स्थिर मन को सुबह-सुबह हिला दिया
फिर कहते हैं कि बच्चों में आजकल एकाग्रता नहीं है। स्कूल में टीचर बच्चों
से कहेंगे कि ध्यान लगाकर पढ़ो।
25-30 साल हम बच्चों को गुस्से से
जगाकर उठाते हैं। फिर हमारे घर का वही तरीका बन जाता है। बच्चे को पता चल
जाता है कि बात सीरियस नहीं है, याने अभी देर नहीं हुई है। जब आप चिल्लाने
लगते हैं तब बच्चा समझ जाता है कि अब उठने का समय हो गया है। आप बच्चे को
पहले ही कह दो कि 6 बजे के बाद मैं तुम्हें नहीं उठाऊंगी। आखिर कितने दिन
बच्चे स्कूल-कॉलेज नहीं जाएंगे? शायद 2-3 दिन आपने 25 साल घर का वातावरण
बिगाड़ा है, 2-3 दिन और सही । हम पौने छः बजे बच्चे को उठाना शुरु
करेंगे, 6 बजते-बजते गुस्से में आ जाएंगे।
हमें छोटी-छोटी चीजों से अपने जीवन जीने का तरीका बदलना है। हमें अपना यह प्रयोग2-3 दिन नहीं करना है।
गुस्सा
हमारा स्वभाव नहीं है। हमें शांति अच्छी लगती है। कभी भी कोई बात सामने आए
तो एक बात पक्की कर लो कि यह हमारे ही कर्मों का रिटर्न फल है।
मान
लो 2 जुड़वा भाई है। दोनों एक ही समय पर पैदा हुए याने उनके प्लानेट
(ग्रह) वगैरह एक ही है। दोनों ने एक जैसा बिजनेस, एक जैसी मेहनत की। किंतु
एक भाई सफल है और एक असफल । क्योंकि उनके कार्मिक अकाऊंट अलग-अलग हैं।
दोनों अलग अलग जगहों से आए थे। दोनों के अलग-अलग कर्म थे । किंतु यहां जब
हम उनकी तुलना दूसरे से करते हैं तब प्राब्लम होती है। क्योंकि हम बचपन से
ही बच्चों को 'जिंदगी एक प्रतियोगिता है' सिखाते हैं।
मान लो हमने खूब मेहनत की। हमें 80% सफलता
मिलने की आशा थी किंतु ६०% ही सफलता मिली, तब भी हमें आत्मविश्वास बनाए
रखना है। भले हमारे पिछले कर्म खराब हो किंतु आज अगर मैं अच्छे काम करते
जाऊंगा तो इसमें कोई शक नहीं कि 70% सफलता मिल जाए । अगर में आज भी खराब
काम करुंगा तो पिछले कर्म तो भारी थे ही, आज के काम भी मैंने खराब करने
शुरु किए तो फिर हम 60% भी सफल नहीं हो पाएंगे। फिर हम कहते हैं कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? क्यों हुआ?
जीवन
में खुश रहना है तो अपनी यात्रा को सीधा बनाओ। वैसे तो हम जीवन रुपी
रास्ते पर हंसी-खुशी से जा रहे हैं, किंतु परेशानी तो तब होती है जब रास्ते
पर कोई दूसरी गाड़ी हमसे आगे निकल जाती है, फिर हमें एक विचार आता है कि
वह मेरे से आगे कैसे है? फिर हमारा लक्ष्य एक ही हो जाता है कि सामने वाले
को पीछे छोड़ दें। अगर वह रेड सिग्नल पर खड़ा होता है तो हम सोचते हैं यही
मौका है उसे पीछे छोड़ने का । तब हम सिग्नल भी तोड़ देते हैं। मान लो सामने
वाले की गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया हो, तब भी आप उसकी मदद के लिए नहीं
रुकेंगे ।
जीवन की यात्रा भी सरल ही थी । एक विचार ने हमें कैसा बना
दिया। आपने सामनेवाले की मदद की तो वह आपको दुआएं ही देगा। यहां पर जीवन
की गाड़ी हो या साधारण गाड़ी, दुआओं से आपकी गाड़ी भी तेज भागेगी । यह एक
आध्यात्मिक कानून (spiritual law) है कि आपको खुश रहना है तो यह एक सरल
तरीका है कि आप औरों को प्यार और सहयोग दें। छोटा सोचेंगे तो धन तो कमा
लेंगे, लेकिन धन के साथ पता नहीं क्या-क्या कमाकर आएंगे।
अगर कोई
मेहनत नहीं कर रहा है फिर भी सफल हो रहा है तो आपके मन में जरुर विचार आएगा
कि ऐसा क्यों? इसका जवाब यही है कि वह आत्मा भले इस शरीर में इतनी मेहनत
नहीं कर रही है, लेकिन कोई भी चीज फ्री में नहीं मिलती, किसी को भी। वह
आत्मा किसी और शरीर में मेहनत करके आई है। वह बीज बोकर आई है जिसका फल अभी
उसे मिल रहा है। हम तो अभी हल चला रहे हैं।
उसकी यात्रा अलग है, हमारी
अलग है। हम दूसरों की सफलता देंखें और खुशी के विचार मन में लाएं तो हमारे
वर्तमान कर्म भी अच्छे हो जाएंगे। हमारे पिछले कर्म भले भारी हों, किंतु
अभी हम भी अवश्य कामयाब बनेंगे। किसी को दुःख देकर धन कमाया, किसी का शोषण
करके धन कमाया तो धन के साथ दुःख भी कमाएंगे । फिर यह सवाल नहीं करना कि
मैंने किसी के साथ क्या बुरा किया या मेरे साथ ही ऐसा क्यों?
पता है
हमें बहुत सारी चीजों की जरुरत भी नहीं होती। जैसे हम मारुती कार लेते हैं
और खुश होते हैं। वैसे तो हम 1000रु. वाले मोबाईल से भी बहुत खुश होते
हैं, किंतु सोचते हैं कि लोग क्या कहेंगे कि इतना सस्ता मोबाईल लिया है। हम
स्वयं को खुश करने के बजाए दूसरों को खुश करने की कोशिश करते हैं। दूसरों
को तुम्हारी खुशी देखकर कभी खुशी नहीं होगी। वैसे एक बात बता दें कि वे लोग
खुश नहीं होते हैं तब भी हमें तनाव होता है कि लोग मुझसे जलते हैं। अगर
थोड़ा कुछ ऊपर नीचे होता है तो हम ही कहते हैं कि नजर लग गई है। नजर लगना
याने क्या होता है? किसी ने नेगेटिव विचार किया। तो क्या हुआ। किसी के
विचार हमारा भाग्य नहीं बनाते। अगर सारी दुनिया भी मेरे बारे में नेगेटिव
सोचे तो भी मेरा भाग्य नहीं बदल सकता । मेरे ही विचार मेरा भाग्य बनाते
हैं। हमें नजर दूसरों की नहीं लगती, हमारी ही नजर हमें लगती है। फिर हम दुःखी
होते हैं। हम रोज परमात्मा से कनेक्शन करेंगे तो हमारी आत्मा शक्तिशाली हो
जाएगी। राजयोग आत्मा को साफ करता है। हमारे मूल संस्कारों को बाहर लाता
है। हमारे विचार शुद्ध होने लगते हैं तो भाग्य साफ हो जाता है।
आज से
हमें प्यार से, धीरज से काम करना है, कोई गिर जाए तो उसे पहले उठाओ । उसे
ठीक करे। दो दिन बाद उसे बताओ कि कैसे चलना चाहिए। जब कोई दर्द में होगा तो
आपकी बात उसे समझ नहीं आएगी।
१. ऐसे ही बच्चे का मन जब दर्द में हो तो उसे बात समझ नहीं आएगी। पहले दर्द को ठीक करो
२. कोई हमसे झूठ बोले तो पहले हमें खुद को चेंज करना है।
३.
जो कुछ भी हो रहा है, वह मेरे ही कर्म का रिटर्न फल है। फिर हमें भाग्य
पूछने के लिए किसी और के पास नहीं जाना पड़ेगा क्योंकि जिसका आज अच्छा है,
उसका कल भी अच्छा हो ही जाएगा।
४. जीवन रेस नहीं है। हम अपनी यात्रा पर हैं | साथ में संस्कार और कार्मिक अकाऊंट जाएंगे।
सब
कुछ करते हुए इन बातों पर ध्यान देना है क्योंकि ये हर पल आपके साथ
रहेंगे, आज भी और आगे भी। जल्दी में सफलता पाने के लिए किसी को दुःख नहीं
पहुंचाना वर्ना शार्टकट ही आपको भारी पड़ जाएगा।
-बी. के. शिवानी
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