लोग निंदा करेंगे
गर्मी का मौसम था। राबिया
अपनी कुटिया के बाहर एक फटे-पुराने वस्त्र पर बैठी थी। उस दिन उसे भरपेट
भोजन भी नहीं मिला था। राबिया जैसी महान साधिका को इस सब की चिंता भी नहीं
थी। उसके लिए तो भूख-प्यास, सुख दुःख, गरीबी-गम, वेदना या निराशा सब एक पुल
के समान थे। जिसे पार कर उसे अपने रब, अपने प्रियतम तक पहुंचना था।
उसी
वक्त वहां से एक तंदुरुस्त युवक गुजर रहा था। वह राबिया को देखकर उसके
कदमों में झुककर प्रणाम करने लगा। राबिया ने उसे आशीर्वाद देते हुए पूछा-
तुमने अपने सिर पर यह पट्टी क्यों बांध रखी है? युवक- आज बहुत गर्मी
है। इसी के कारण सिर में दर्द हो रहा था। अत: गीले कपड़े की पट्टी सिर पर
बांध ली। अब ठीक है।
राबिया- भाई! तुम्हारी उम्र कितनी है?
युवक- तीस वर्ष
राबिया- क्या तुम हमेशा बिमार रहते हो?
युवक- नहीं, नहीं! आपकी दुआ से मैं तो हमेशा सेहतमंद हूं। यह सिरदर्द भी मुझे पहली बार ही हुआ है।
यह
सुनकर राबिया की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने युवक से कहा- मेरे मालिक ने
तुम्हें तीस सालों तक इतनी अच्छी सेहत दी। उसका तुमने कभी शुक्रिया अदा
नहीं किया। और आज जरा सी गर्मी के कारण सिर दर्द हो गया तो तुमने सिर पर
पट्टी बांध ली। क्या, तुम लोगों को यह जतलाना चाहते हो कि मेरे खुदा,
तुम्हें कितने दुःख देते हैं?
मेरे मित्र! पहले तुम यह पट्टी खोल
दो। नहीं तो लोग तुमसे इसका कारण पूछेंगे, और जब तुम इसकी वजह बताओगे तो
लोग गलतफहमी में मेरे परवादिगार की निंदा करने लगेंगे।
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