सरश्री तेज पारखी जी
जीवन का लक्ष्य क्या है?
प्यारे लक्ष्मण रेखा के पारखीयों,
आप सबको शुभेच्छा, हैप्पी थॉट्स लक्ष्मण रेखा (लक्ष्य की रेखा)- जिसके बाहर क्या होता है... आप जानते हैं।
लक्ष्मण
रेखा (लक्ष्य की रेखा) से जैसे ही कोई बाहर गया तो रावण ने पकड़ लिया।
इंसान इसे पार करते ही सोने की लंका में पहुंच जाता है। जो इस लक्ष्मण रेखा
के अंदर रहा वह अयोध्या में रहा।
इंसान ऐसी इच्छा करता है कि मुझे
सोने का हिरण चाहिए, सोने के गहने...। सोने की बातें ही वह कर रहा है तो
जागेगा कब? सोओगे तो कुंभकर्ण के पास पहुंच जाओगे। जो छः महीने सोता था, छः
महीने जागता था। मगर इंसान जब लक्ष्य निर्धारित करता है कि मुझे कहां
पहुंचना है तो कुदरत भी वैसी ही चीजें आपके जीवन में लाना शुरु करती है।
जैसे मुझे अयोध्या पहुंचना है । अ- युद्ध। जहां युद्ध नहीं है। लंका याने
जहां युद्ध है। आपके अंदर शांति के लिए प्रार्थना उठती है तो आप वही करोगे।
सोने में दिलचस्पी है तो जागृती नहीं आएगी।
आपके अंदर सभी अवस्थाएं
हैं। ये आप निश्चित करते हैं कि आप कौनसी अवस्था खोलना चाहते हो। जैसे
कैरमबोर्ड खेलना है। वहां बंधन होता है कि रेखाओं में रहकर ही आपको खेलना
है। वहां आप दुःखी नहीं होते कि मैं बाहर क्यों नहीं खेलता। अगर बंधन है तो
हम इसमें रहते हुए अभ्यास करके (खेलते हुए) इसमें
कुशल बनेंगे। वैसे ही
इस शरीर में रहते हुए आप चमत्कार कर सकते हो। अपना स्वयं का ही नहीं,
दूसरों का भी जीवन बदल सकते हो। ये क्षमता आपमें है।
संपूर्ण लक्ष्य
समझोगे तो आपकी क्षमता खुलेगी। वरना ये ही कहोगे कि मैं क्या कर सकता हूँ?
जिसने खुद को नहीं पहचाना वह ये ही कहेगा कि मैं क्या कर सकता हूं।
जैसे
मैं तो इस देश, इस परिवार में बंधा हुआ हूं। मैं लड़की हूं, लड़का हूं,
कमजोर हूं, बिमार हूं। मेरी तो किसी से पहचान नहीं। तो... ये रेखाएं हैं।
इसमें रहते हुए भी आप संपूर्ण लक्ष्य समझ पाए, अभ्यास कर पाए तो आप उच्चतम
विकास कर पाएंगे।
संपूर्ण लक्ष्य क्या है? संपूर्ण लक्ष्य याने
पूर्ण विकास है। जिसमें आपकी पूरी संभावनाएं खुलें। अब इसे कैसे पता करें
कि हमारी संभावनाएं क्या हैं। हम कैसे पहचानें ?
जैसे एक फूल खिला हुआ ज्यादा खिल सकता था या ये है। क्या वह इससे इतना ही खिलेगा?
आप
कहोगे कि अगर इसे अच्छी जमीन मिली होती या सही धूप-छांव मिली होती तो शायद
यह और खिलता। वैसे ही आप जितने खिले हो, ये ही आपकी पूर्ण संभावना है या
अगर पूर्ण ज्ञान मिला होता, पूर्ण तेज प्रेम मिला होता या ऐसा परिवार मिला
होता तो शायद आप इससे ज्यादा खिलते।
क्या लक्ष्य जरुरी है?
दिशा मिलते ही सब कर्म बदल जाते हैं। मैं कौन हूं... मैं पृथ्वी पर क्यों आया हूं?
उदाः
एक टब में मछलियों को छोड़ दिया गया। दूसरे टब में भी दूसरी मछलियों को
छोड़ दिया गया। दूसरे टब में पानी के बीच में एक खंभा था। दोनों टब में
खाना-पीना सुविधाएं सभी समान थीं । किंतु पहले टब वाली मछलियां कुछ दिनों
में मर गईं। दूसरे टब वाली मछलियां अधिक तंदुरुस्त हो गईं। फर्क इतना था कि
दूसरे टब में खंभा (लक्ष्य) था कि चारों तरफ घूमना है। पहले टब वाली
मछलियां बिना मतलब के यहां वहां घूमकर बिना लक्ष्य के जीवन जीकर मर गईं।
उसी
तरह आप अपने जीवन में क्या लक्ष्य रखकर जी रहे हो ? पुराने जमाने में लोग
प्रकृति के साथ जुड़े हुए थे। वहां विकास के लिए उनको विचार मिले। जैसे
पेड़ को सीधा न काटकर उन्होंने गोल तना काटा और पहिए का अविष्कार किया। फिर
हाथगाड़ी बनाकर सामान ले जाने के लिए इसे इस्तेमाल करने लगे। ऐसे ही एक
विचार, फिर दूसरा विचार आने लगा।
ये सब क्यों हुआ? क्योंकि
वे अंदर से जुड़े हुए थे। अगर ऐसा कहें कि आपके घर में बुजुर्ग हैं। उससे
आपने किसी बात पर सलाह ली। उस बात में आप कामयाब हुए। खुश होकर आपने एक शॉल
लाकर उनको पहनाया। फिर दूसरी बात में कामयाब हुए, फिर शॉल पहनाया। ऐसे
हमेशा करके आपने उस बुजुर्ग को पूरा ढक दिया। फिर आपको उसकी आवाज आना कम हो
गई और फिर आपने उनसे पूछना भी छोड़ दिया।
आज आप वापिस उस आवाज को सुनना चाहते हो।
तेज स्थान में रहेंगे तो ये संपूर्ण संभावना अवश्य है। पश्चिम में विकास
का अर्थ है खाने में बर्गर हो, पिज्जा हो। मोबाईल ऐसा हो, टीवी ऐसा हो। तो
उसे विकास कह सकते हैं। किंतु विकास का अर्थ है हमें अंदर का भी विकास करना
है। अंदर का विकास बंद हुआ तो यह संपूर्ण विकास नहीं है।
अंदर की
आवाज सुनना चाहते हैं? इसमें आपको सफलता अवश्य मिलेगी। इसके लिए आपको कुछ
समय निकालना पड़ेगा। इंसान धन कमाने के लिए १० से. ५ ड्यूटी करता है। किंतु
आंतरिक विकास के लिए आपको ६ से १० काम करना पड़ेगा। इससे हम बेहतर से
बेहतर होते जाएंगे। रोज अपने आपको टाईम देंगे तो रिजल्ट अवश्य मिलेगा। कोई
पत्थर जब १०० चोट करने पर टूटता है, तो इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि उसकी
पहली चोट बेकार गई। दूसरों से प्रतियोगिता नहीं करो। भले एक कदम आगे बढ़ो,
विकास जरूर होगा
SARAL VICHAR
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