• हमारा निज स्वरुप क्या है?
हमारा
निज स्वरुप प्रेम, शांति वाला है। घृणा-द्वेष करना हमारा निज स्वरुप नहीं।
अपने आपे में रहें। स्वयं को चेक करते रहें । दूसरे के संपर्क से हम अपने
निज स्वरुप से दूर तो नहीं हो गए। जैसे पानी को आग का संपर्क मिलता है तो
पानी गर्म हो जाता है । लेकिन आग से संपर्क हटते ही वह अपने स्वरुप में आ
जाता है। हम भी ऐसे ही हैं। जैसे केकैई मंथरा के संपर्क में आई तो कैसी हो
गई। वह पहले रामजी को सबसे ज्यादा चाहती थी।
• चाणक्य कहते थे कि भले
अकेले रह लो किंतु किसी दुष्ट के साथ मत रहो। दुष्ट ऐसी बात करेगा जो आपको
वो बहुत अच्छा लगेगा। अपना संतुलन बनाना है। गलत संगति से बचना है।
• बुरे व्यक्ति की संगति शुरु में भले हंसाएगी। किंतु आखिर में रुलाएगी जरुर।
• आपके जीवन में दौलत के साथ-साथ शांति भी बढ़नी चाहिए।
• हमारा जीवन कैसा हो?
• कर्मों में कुशलता। जीवन में संतुलन। शांति को बढ़ाते जाना।
• आपकी २० साल की मेहनत आपके बच्चे को राम बनाने में लगे। किंतु बुरी संगत २० दिन में ही उसे रावण बना देगी।
• रोज स्वाद को जीतो। धीरज करो। कंट्रोल करो अपने आप पर। नियमित बनो । अनुशासित बनो।
•
सुबह नाश्ते में दलिया लें, अंकुरित मूंग लें। चाहे तो दाना मेथी को भिगो
लें उसे अंकुरित करें और दाना मेथी खाएं। मात्रा भले थोड़ी लें। किंतु दाना
मेथी फायदा ज्यादा करती है। आटे में सोयाबिन लें।
• जिसने अपने आप को कंट्रोल कर लिया। जिसने जीभ को कंट्रोल किया वह मन पर भी कंट्रोल कर सकता है।
पांच चीजों पर नियंत्रण रखें। रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, ध्वनि..
पतंगा जैसे शमा (रोशनी) के रुप पर मोहित हो जाता है और
उसी में जल जाता है।
भौरां जैसे फूलों का रस लेने के लिए फूल में ही बंद हो जाता है और मर जाता है।
कस्तूरी मृग यानी हिरन गंध के पीछे दौड़ता रहता है। उसे पता ही नहीं होता की ये तो उसके गर्भ में ही है।
हाथी जैसे हथिनी को स्पर्श करने के लिए दौड़ता चला आता है और शिकारी के जाल
में फंस जाता है।
इन जानवरों में तो एक ही खराबी होती है। जैसे हाथी को स्पर्श चाहिए और पतंगा, शमा के रुप पर मोहित होता है। किंतु इंसान में तो ये पांचो विकार हैं।
• रोज सोचो कि नीचे तो नहीं जा रहे। राग-द्वेष, मिलना-बिछड़ना, लेना-देना। इनमें संतुलन नहीं बिगड़ना चाहिए।
• जागो, वरना किसी दिन तुम्हें ऐसी नींद आएगी कि पूरी दुनिया तुम्हें जगाएगी, पर उठ नहीं पाओगे। जागो, सो गए हो आसक्ति में। आत्मा को जगाओ।
• जिसे पाने के लिए इस दुनिया में आए थे, उसे पाओ। आप किसी बड़े काम के लिए दुनिया में आए थे। जागो।
• अगर जाग गए तो भव-सागर को एक छलांग में पार कर जाओगे। वरना घर की दहलीज भी नहीं लांघ पाओगे। कोई भी परिस्थिति आपको रोक लेगी। घर या दुकान की जिम्मेदारियां आपको रोक लेगी हमेशा यही सोचते हैं कि यह काम हो जाए वह काम हो जाए तो बाद में सत्संग जाएंगे यह सब हो नहीं पाता और सत्संग भी नहीं जाते और जीवन यूं ही खत्म हो जाता है।
• ईश्वर से प्रार्थना करो कि हमें सहनशक्ति और नम्रता दो कि सज्जनों के सामने झुक जाऊं। क्रोध इतना देना कि बुराई के आगे न झुकूं।
• प्रार्थना करो कि शरीर में इतनी ताकत देना कि अपना काम हमेशा स्वयं कर सकूं। धन इतना देना कि काम चलता रहे।
• सुबह चार-साढ़े चार बजे तक जाग जाओ। जल्दी सोओ, जल्दी उठो। छः घंटे या साढे छः घंटे की नींद शरीर के लिए पर्याप्त होती है।
• बहुत ज्यादा भी न बोलो । बहुत कम भी न बोलो। मन को भी ज्यादा मत चलाओ। कम ऊर्जा में ज्यादा काम करो। ऐसा तब होगा जब आप खुश होंगे।
• जोश बना रहे। गाते-गाते समूह में काम करने से कैसे जोश बना रहता है। हम दबाव में काम करेंगे तो थक जाते हैं। अपने को थकाओ नहीं।
• एक हजार अश्वमेध यज्ञ कराने से अच्छा किसी विधवा के आंसू पोंछना है। उसकी बेटी की शादी करवाएं या उसकी आर्थिक मदद करें।
• नाप-तोल
कर भोजन करो। नाप-तोल कर काम करो। ध्यान में रोज बैठो, सत्संग में रोज
जाओ। सत्संग अगर रोज जाएंगे तो घर में बैठकर ध्यान करने की आवश्यक्ता नहीं।
क्योंकि सत्संग और ध्यान एक ही है। सत्संग में भी हम ईश्वर का नाम लेते
हैं। ढोल-बाजे वाला सत्संग नहीं। जहां प्रवचन में शांति से जीना, जीवन जीना
सिखाया जाता है।
• जो चीजें तुम्हें नीचे गिराती हैं, उनके बारे में सोचो ही नहीं।
ओम
SARAL VICHAR
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