अधूरापन शब्द सुनते ही मन में बुरा
विचार (नेगेटिव थाट्स) आता है। पर सोचिए कि अगर ये छोटी सी कमी जीवन में न
हो तो जीवन खत्म सा नहीं हो जाएगा?
अगर आप ध्यान दीजिए तो आदमी को
यह कमी काम करने के लिए प्रेरित करती है। कोई भी कदम हम इस खालीपन को भरने
की दिशा में ही उठाते हैं। मनुष्य के अंदर कुछ जन्मजात शक्तियां होती है।
जो उसे किसी भी नकारात्मक भाव से दूर जाने और available options में से
अच्छा विकल्प चुनने को प्रेरित करती है। कोई भी चीज जो जिंदगी में असंतुलन
लाती है, आदमी उसे संतुलन की दिशा में ले जाने की कोशिश करता है।
अगर
कमी नहीं होगी तो जरुरत नहीं होगी । अगर जरुरत नहीं होगी तो आकर्षण नहीं
होगा और अगर आकर्षण नहीं होगा तो लक्ष्य भी नहीं होगा । अगर भूख न लगे तो
खाने की तरफ जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता । इसलिए अपने जीवन की किसी भी
कमी को negative ढंग से देखना सही नहीं है। असल बात तो यह है कि यह कमी या
अधूरापन हमारे लिए एक प्रेरक का काम करता है।
कमियां हम सबके जीवन
में होती हैं। बस उसके रुप और उसके स्तर अलग-अलग होते हैं। इस दुनिया का हर
काम उसी कमी को पूरा करने के लिए किया जाता रहा है और किया जाता रहेगा ।
चाहे जैसा भी व्यवहार हो, रोज का काम हो, ऑफिस जाना हो, प्रेम संबंध हों या
किसी से नए रिश्ते बनाना हो । सारे काम जीवन के उस खालीपन को भरने की दिशा
में किए जाते हैं।
हां, ये जरुर हो सकता है कि कुछ लोग उस कमी को पूरा हो जाने के बाद भी उसकी बेहतरी के लिए काम करते रहते हैं।
आप
किसी भी घटना को ले लिजिए, आजादी की लड़ाई, कोई क्रांति, छोटे अपराध, बड़े
अपराध या कोई परोपकार हो। हर काम किसी न किसी अधूरेपन को दूर करने के लिए
करते हैं।
कई शोधों से तो यह तक पता चला है कि व्यक्ति किस तरह के कपड़े
पहनता है, किस तरह के किताब पढ़ता है, किस तरह का कार्यक्रम देखना पसंद
करता है और किसी संस्था से जुड़ा है ये सब किसी कमी को दूर करने से संबंधित
है।
महान psychologist Maslow (मैस्लो ) ने कहा है कि व्यक्ति का जीवन पांच प्रकार की जरुरतों के आस
पास घूमता है।
१. पहली मौलिक जरुरतें जैसे- भूख, प्यास और Physical relationships की
२. सुरक्षा की
३. संबंधों या प्रेम की
४. आत्म-सम्मान की
५. आत्मसिद्धी की (self actualization) जिसमें व्यक्ति अपनी पूरी क्षमताओं का प्रर्दशन करता है।
जरुरी नहीं कि व्यक्ति मैस्लो द्वारा बताई गई सारी
स्टेज को पूरा कर पाए, पर प्रयास जरुर करता है।
कई घटनाएं ऐसी सुनने
में आती हैं जहां लोगों ने अपने जीवन की कमियों को अपनी ताकत में बदला है
और जिसके कारण पूरी दुनिया उन्हें जानती है। जिसमें अलबर्ट आईस्टिन और
इब्रहिम लिंकन का नाम सबसे ऊपर आता है।
आईस्टिन जन्म से ही learning
disability का शिकार थे। वह चार साल तक बोल नहीं पाते थे और नौ साल तक तो
उन्हें पढ़ना नहीं आता था । कॉलेज के पहले attempt में वे फेल भी हो गए थे ।
फिर भी उन्होंने जो कर दिखाया वह अतुलनीय था ।
अब्राहिम लिंकन ने
अपने जीवन में हैल्थ से संबंधित कई मुश्किलें आईं । उन्होंने अपने जीवन में
कई बार हार का मुंह देखा। यहां तक कि एक बार उनका नर्वस ब्रेक डाऊन हो
गया। पर फिर भी ५२ साल की उम्र में वे अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति बने ।
सच ही है अगर इंसान चाहे तो अपने जीवन के अधूरेपन को ही अपनी प्रेरणा का
सबसे बड़ा स्रोत बना सकता है। जो अधूरापन हमें जीवन में कुछ कर गुजरने की
प्रेरणा दे, भला वह नेगेटिव कैसे हो सकता है। जरा सोचिए कि...
अगर ये थोड़ा सा
अधूरापन हमारे जीवन में न हो तो जीवन कितना अधूरा हो जाए!!!
SARAL VICHAR
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