स्वामी अवधेशानंदजी महाराज
नारी की महानता
स्त्री वही सबसे अधिक
सुंदर दिखती है जिसमें लज्जा हो, शील-संकोच हो। जिसमें परंपराओं का गहरा
सम्मान भाव हो। वही तो स्त्री सुंदर होती है जो अपने चरित्र को संभालकर
रखे।
जैसे अग्नि में दाहकता है। अग्नि मे दाहकता न हो, मारकता न हो,
जिसमें जलन करने की, भस्म करने की क्षमता न हो, जिसमें ताप न हो वह आग
नहीं होती। जिसमें आद्रता है वही तो जल है। जिसमें गंध हो वही तो धरा
(धरती) है । जिसमें अनंतता है, वही तो आकाश है। जिसमें व्यापकता हैं, वही
तो दिशाएं हैं। जिसमें बहते रहना है, वही तो वायु है और जिसमें शील, संयम,
सदाचार है, जिसमें वैराग्य की पूर्णता है,वही तो साधूता है।
उसी तरह जिसमें
अपने वचन की पूर्ति की भावना नहीं, वह व्यक्ति पुरुष नहीं। पुरुष वह जो
पुरुषार्थी हो। जो आक्रमी है, शौर्यवान है, धैर्यवान है, जो धैर्य कभी नहीं
खोता, जो पराक्रम से मुंह नहीं मोड़ता, जो पुरुषार्थ से मुंह नहीं मोड़ता ।
जो इंद्रियों को संभालकर रखता है, वही तो पुरुष है।
फिर स्त्री
किसे कहेंगे? जिसके पास लज्जा है, शील है, संकोच और मर्यादा है। जिसमें ये
सब चीजें हैं वह नारी सुंदर होती है। पार्लर के चकर लगाने बंद कीजिए । अपने
नियमों में अडिग रहिए फिर देखिए कैसी शोभा आपके आस-पास बिखर जाती है ।
बहू-बेटियों के बीच हमें इतना अधिकार तो मिलना ही चाहिए। हम आचार्य हैं।
आचार्यों को अपनी बहू-बेटियों से कोई बात कहने का मौका तो मिलना ही चाहिए।
वही तो सुंदर है। वही तो सावधान है जो अपनी परंपराओं के मूल्यों का परिवार
की गोपनीयता को जो कभी उजागर नहीं करती। जो महिला कभी द्वैत नहीं रखती।
अतिथी आगमन, यतियोग्य, तपी, सन्यासी, माता-पिता, और सबके प्रति समान भाव से
बंटती रहती है।
एक बच्ची के विवाह में कुछ दिन शेष रह गए थे।
उसने कहा- आपने मुझे गोद में खिलाया है, मैं आपकी बेटी हूं, मैं ससुराल जा
रही हूं, मुझे आप अंतिम उपदेश दिजिए। मैंने कहा- बेटी, एक ही बात है,
जिसके साथ जा रही हो वह बसा हुआ है तुझे वहां जाकर बसना है । वहां की
प्रकृति में, वहां की परंपराओं में, वहां के कुल देवता की पूजा में, वहां
के आचार-विचार, निती में। वहां जीने की ढंग अद्भुत, निराला होगा । जिससे
तूअनभिज्ञ है। बस वहीं तेरे लिए सबकुछ है। वहां के पशु-पक्षी, वहां के
साधू-संत, वहां की भाषा, वहां का अन्न, वहां का जो कुछ भी है वह सब तेरा
अपना होना चाहिए। एक पल के अंदर तेरे भीतर सबकुछ आ जाना चाहिए।
मुझसे
कोई पूछे कि सन्यास क्या है? तो भारत की जो दुल्हन है, वह सन्यास को जीती
है। एक पल में उसमें सन्यास घटित होता है। बाबुल की गलियां, भैया,
सखी-सहेलियां, सहचरी, वो खेलकूद का मैदान, गली- चौबारे पल में ही बिसर जाते
हैं। ये सब पल भर में ही तो बिसर जाते हैं जब वह ससुराल जाती है। जो अपना
था वह सब कुछ बेगाना हो गया। जो बेगाना था वह सब अपना हो गया । पल में
जिसमें आसक्ति थी वह टूट जाती है गठजोड़े के बाद, फेरे लेने के बाद,
कन्यादान के बाद। डोली में बैठकर, ससुराल में आकर पलभर में ही बिसर गया
बाबुल का घर । पराया था वह अपना हो गया, जो अपना था वह पराया हो गया । यही
तो सन्यास है।
जागतिक संबंधों को जो पलभर में जो चटका देता है और उस
ईश्वर से नेह नाता जोड़ लेता है। इसी का नाम तो सन्यास है। तो सच है यह कि
भारतीय नारी के पास बड़ी जिम्मेदारी है। इसके पास बहुत दायित्व है। ये कुछ
अजीब होती है। अधिक सामर्थ्यवान होती है। वैसे भी नारी जो मादा है उसके
पास शक्ति ज्यादा बताई गई है। चाहे वह शेरनी हो या हथिनी हो या फिर वह
नन्हीं सी चींटी हो । यही ज्यादा काम करती दिखाई देती है।
एक बार
में मादा चरित्र को पढ़ रहा था। मनोविज्ञान, शास्त्रीयविज्ञान ये कहता है
कि स्त्री का जो मनोविज्ञान है उसमें देना अधिक है, बंटना है। वह प्रकृति
है, वह भार्या है, वह गृहिणी है । वह तनया है, पुत्री है, माता है,
गुरुमाता है, दादी अम्मा है, नानी मां है। वह पल-पल बंटती है। हजारों के
साथ संबंध अच्छे से निभाती है। वह नारी है... ।
बड़ा कठिन है, सामर्थ्य इतनी कि अग्नि में प्रवेश कर सके। इसी का तो सम्मान किया गया है इस नारी के सद्गुण, चरित्र, इसके स्त्रेयण, मातृत्व, कौमार्य, इसकी अस्मिता और इसके स्वभाव की जिसने रक्षा की है वह देव बने हैं । जिसने इसकी भावनाओं को ठगा है, जिसने इसके साथ छल किया है, इसके सौंदर्य का दोहन किया है। जिसने इसके साथ में अति की है, भैया उसे सुख तो नहीं मिला है।
SARAL VICHAR
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