चाणक्य की जीवन कथा के कुछ अंश
आपको पता है कि जब मगध में भ्रष्टाचार
फैला तो वहां के राजा धनानंद के खिलाफ उसी के मंत्री शक्टार खड़े हुए, तो
वे बंदी बना लिए गए। शक्टार के मित्र चणक ने भी जब सच्चाई का साथ दिया तो
उन्हें भी बंदी बना लिया गया । चणक का पुत्र विष्णु जो चाणक्य के नाम से
प्रसिद्ध हुआ, वह उस समय छोटा था ।
विष्णु अपने पिता के बंदी बनने
पर रोया नहीं बल्कि अन्याय के खिलाफ खड़ा हुआ । अपनी मां से विष्णु बोला कि
अगर राजा ने पिताजी को मरवा भी दिया तो वे मेरे रक्त में जीवित रहेंगे।
विष्णु
ब्राह्मण थे और शिक्षा पाने के लिए आश्रम में रहते थे। भिक्षा मांगकर
आश्रम में लाते थे। उस समय यही नियम था । पिता के राजद्रोह करने और बंदी
बनने के कारण नगर में अब उनको कोई भिक्षा नहीं देता था, क्योंकि राजकोप का
भागीदार कोई नहीं बनना चाहता था। उनकी मां ने उन्हें मुट्ठी भर अनाज दिया ।
क्योंकि उनकी मां के पास भी अब कुछ नहीं था।
आश्रम से भी उन्हें निकाल दिया गया । आश्रम से घर लौटकर आ रहे थे तो उन्हें एक आचार्य मिले वे बोले- प्रकृति तुम्हें आज पाठ पढ़ा रही है। एक दिन पूरे मगध
को तुम्हें पाठ पढ़ाना है। मैं तुम्हें शास्त्र पढ़ा सकता हूं, किंतु
नियती कुछ और चाहती है। जिन्हें दूसरों को मार्ग दिखाना होता है, उन्हें
अपना मार्ग भी स्वयं ही ढूंढना होता है। आज मगध का पतन तुम देख रहे हो।
किंतु एक दिन इसका उत्थान भी तुम्हीं से होगा। अभी तो तुम्हें बहुत कुछ सहन
करना है।'
घर आया विष्णु तो देखा मां का देहांत हो चुका था। अपने
घर को तोड़कर लकड़ियां इकट्ठी की । क्योंकि उस समय लकड़ियों पर कर
(टैक्स) शुरु किया गया था। उन्होंने अपने घर को तोड़ते हुए कहा- राजा मैं
तुम्हें लकड़ी पर कर नहीं दूंगा । ये उनका पहला विद्रोह था।
अपनी
मां को अग्नि देकर वे तक्षशिला के लिए रवाना हुए। इधर विष्णु के पिता चणक
का कारागृह में देहांत हो गया । तक्षशिला के गुरुकुल में उन्होंने प्रवेश
लिया । विष्णु ने अपने पिता से दंडनिति और अर्थशास्त्र सीखा था। गुरुकुल
में उन्होंने इसी विषय पर अध्ययन किया। उसी गुरुकुल में वे आचार्य
विष्णुगुप्त बने ।
जब बचपन में उन्हें आश्रम से निकाला गया था तो
जो एक आचार्य उन्हें रास्ते में मिला था वे उनकी बातों को हमेशा याद करते
कि 'अग्नि को समर्पित होने पर अपवित्र भी पवित्र हो जाता है। तुम अपने भीतर
साधना की अग्नि को जन्म देना । जलना, ज्ञान की साधना में जलना । सूरज न
सही, दीपक तो जरुर बनना।
बस इसी बात को वे हमेशा याद करते । उन्होंने अपने
को इतना ऊपर उठाया कि लोग आज भी उनके विचारों को अपनाते हैं।
चंद्रगुप्त
जो भेड़े चराता था उसे उन्होंने खूब शिक्षित किया । चंद्रगुप्त अपने
सौतेले मामा के पास अपनी मां के साथ रहता था । चाणक्य ने चंद्रगुप्त को
खेल-खेल में न्याय करता देखकर उसे अपने साथ रखने और उसे शिक्षित करने का
सोचा । किंतु उसके मामा ने चंद्रगुप्त को ले जाने के लिए ५००० स्वर्ण
मुद्राएं मांगी। आचार्य विष्णु के पास उस वक्त पैसे नहीं थे तो उन्होंने
अपने कुल के दुर्लभ सूत्रों (अर्थशास्त्रों के सूत्रों) को बेचकर मुद्राएं
देना चाहा। किंतु उनके मित्रों ने पुस्तक न लेकर उन्हें मुद्राएं दी।
उसी चंद्रगुप्त को उन्होंने मगध का राजा बनाया । चंद्रगुप्त को राजा बनाने में उन्हें काफी कठिनाईयां आई किंतु वह लड़का जिसे मगध ने दुत्कार दिया था वही विष्णु, चणक का बेटा चाणक्य बनकर मगध का सर्वोपरी बना।
SARAL VICHAR
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