मीनलदेवी की मर्सीडीज सरकारी अस्पताल के अहाते में आकर रुकी। दरवाजा
ड्राईवर ने खोला। दरवाजे के बाहर पांव रखते ही तेज दुर्गंध के कारण
उन्होंने नाक पर रुमाल रखा। आज मीनलदेवी किसी के जन्मदिन पर गरीब दरिद्रों
को फल बांटने नहीं आई थीं। आज वह अपने छोटे सगे भाई किशन को, जो सरकारी
अस्पताल में जिंदगी व मौत के बीच झूल रहा था, को देखने आई थी। किशन को दिल
की बिमारी थी। डॉक्टर ने उसे दिल के बाईपास आपरेशन की सलाह दी थी। पर किशन
एक छोटा-सा सामान्य दुकानदार था। इसलिए 4 लाख आपरेशन पर खर्च करने की उसकी
क्षमता नहीं थी। दवाईयों के सहारे वह जैसे-तैसे अपनी जिंदगी घिसट रहा था।
उसके जैसे गरीब लोग और कर भी क्या सकते हैं? सिर्फ बेबसी पर रोने और किस्मत को कोसने के सिवाए।
हालांकि
उसकी बड़ी बहन मीनल करोड़पति थी। उसके पति की बड़ी-बड़ी कंपनियाँ
थीं। मीनलदेवी खुद भी कई कंपनियों का काम देखती थी पर जैसे अक्सर बड़े लोग
अपने गरीब रिश्तेदारों को भुला देते हैं, वैसा मीनलदेवी भी कर रही थी।
इन्हें गरीब रिश्तेदार टाट के पैबंद लगते थे। इन्हें डर लगता था कि इन
रिश्तेदारों के साथ बैठने से उनकी इज्जत पर दाग लग जाएगा। पर आज भाई की
तबियत बहुत ही खराब थी। दुनिया या समाज क्या कहेगा! बस इसी मजबूरी के कारण
मीनलदेवी आज भाई से औपचारिकतावश मिलने आ गई थी। उसने गेट पर खड़े चौकीदार
से आईसीयू तक जाने का रास्ता पूछा। चौकीदार ने उसे बड़ी गाड़ी से उतरते
देखा तो, पहले जोर से सलाम मारा। फिर खुद ही उसे आईसीयू तक छोड़ने आया। यह
पूंजीवाद का असर था।
'कैसा है छोटू' स्टूल पर बैठते हुए मीनलदेवी ने पूछा।
'अब तबियत थोड़ी ठीक है दीदी, दर्द से कराहते हुए किशन ने कहा।
'डॉक्टर ने क्या कहा?'
'डॉक्टर
ने उन्हें जल्द आपरेशन करने को कहा है। कह रहे हैं यदि आपरेशन नहीं किया
गया तो कुछ महिनों से ज्यादा नहीं जी सकते हैं, कहते हुए किशन की पत्नी के
मुंह से रुलाई फूट पड़ी।
'कुछ नहीं होगा मुझे। ऊपरवाला सब कुछ ठीक कर देगा,' किशन ने अपनी पत्नी को दिलासा देते हुए कहा।
कुछ
समय बाद मीनलदेवी उठते हुए बोली, 'किशन अपना ध्यान रखना। मेरे लायक कोई
काम हो तो बताना,' पर्स में से कुछ पैसे निकालते औपचारिकता वश
मीनलदेवी बोली।
'दीदी, यह पैसे आप वापस रखें, मुझे सिर्फ आपका आशीर्वाद चाहिए।' किशन के बेबसी के आंसू निकल पड़े।
‘अच्छा मैं चलूं,' बिना कोई जवाब सुने मीनलदेवी वहां से चल पड़ी।
मीनलदेवी आज करोड़पति थी। वह चाहती तो अपने भाई के पूरे आपरेशन का खर्च उठा सकती थी। पर बड़े लोगों में बड़प्पन कहां होता है।
वे
तो वहां दान देते हैं, जहां अखबार में नाम और फोटो छपे। इनकी जय-जय हो।
रिश्तेदारों के मामले में कहां समाचारों में नाम और प्रशंसा होती है।
मीनलदेवी
हॉस्पिटल से कार की ओर आ रही थी। बीच में बच्चों का वार्ड आया। वहां एक
छोटी बच्ची के रोने की आवाज व भीड़ देखकर वह भी उत्सुकता से देखने लगी-
क्या हो रहा है।
डॉक्टर साहब आप मेरे भाई को इंजेक्शन मत लगाओ। मेरे
भाई को बहुत दर्द होगा। इसकी जगह मुझे इंजेक्शन लगाओ।' रोते हुए पांच साल
की बच्ची अपना 'पर बेटा भैया इंजेक्शन के बिना ठीक कैसे होगा।' उसकी मां
बच्ची को समझाते हुए बोली। नहीं-नहीं मैं भैया को इंजेक्शन नहीं लगाने
दूंगी।
कितना छोटा है, वह अपने भाई को प्यार से देखते हुए बोली।
‘पर तुम्हें भी तो दर्द होगा न?' डॉक्टर ने हँसते हुए पूछा।
'भले हो, मैं सहन कर लूंगी, बस भैया को दर्द नहीं होना चाहिए। ' उसने मासूमियत और बेफिक्री से कहा।
सब उसे समझा रहे थे पर बच्ची टस से मस नहीं हुई।
'बहनजी अभी छोड़ो, मैं बाद में आकर इंजेक्शन लगा दूंगा, डॉक्टर ने कहा।
'अंकल
बाद में भी मुझे ही लगाना, बच्ची ने जाते हुए डॉक्टर को कहा, तो सबको हंसी
आ गई। क्या! इस बच्ची की बातें सुनकर लगता है कि हम कलयुग में जी रहे हैं?
इससे बड़ा सतयुग क्या होगा?' वहां खड़े एक वृद्ध ने दूसरे व्यक्ति से कहा।
इसे ही तो भाई-बहन का प्यार कहते हैं, दूसरा व्यक्ति बोल पड़ा।
काश भाई-बहन का प्यार जिंदगी भर चलता रहे।' औरत ने अपने अनुभव पर कहा। पता नहीं क्यों एक यह सब देखकर व सुनकर भारीपन - सा अनुभव हुआ।
वह
भागती हुई जाकर कार में बैठ गई। शायद एयरकंडींशन कार में मन को सुकून मिल
सके। कार तेजी से आगे बढ़ रही थी पर मीनलदेवी का मन उससे भी तेज गति से
पीछे की ओर जा रहा था। वह एक निम्नमध्यम वर्ग में पैदा हुई थी। उसके पापा
की एक छोटी सी किराने की दुकान थी। उससे सिर्फ इतनी आमदनी होती थी, जिससे
उसकी जिंदगी चल सके। एक रुम का घर व बस जरुरतभर की चीजें, यही उसकी दुनिया
थी। मीनलदेवी उस समय हाईस्कूल की परिक्षा देकर घर में सिलाई का काम सीख रही
थी। उसकी माँ का मानना था कि लड़कियों को घर के जरुरी काम आने चाहिए। मीनल
के ख्वाब भी बहुत बड़े नहीं थे।
उन्हीं छुट्टियों में उनके
रिश्तेदार के यहां शादी थी। मीनल भी अपने परिवार के साथ शादी में गई। उसने
अपनी सबसे अच्छी ड्रेस जो पिछले साल दिपावली पर ली थी, पहनी थी। पुरानी
होने के बाद भी मीनल उसमें बहुत खूबसूरत लग रही थी। भगवान ने उसे गजब की
खूबसूरती दी थी, उसने अपनी हमउम्र लड़कियों की तरह कोई मेकअप नहीं किया था
शायद इसलिए मासूम भी लग रही थी। उसी मासूमियत पर इसी शादी में आए हुए एक
करोड़पति इकलौते चिराग का दिल आ गया। मां से जिद की, शादी इसी से करुंगा।
परिवार को इसमें ज्यादा एतराज न था। एक गरीब खुबसूरत कन्या कहानियों की तरह
रानी बनकर महलों में आ गई।
शुरु-शुरु में उसे अपने भाई व घर से
बहुत लगाव था। वह नियमित दूसरी लड़कियों की तरह पीहर आती थी। कभी-कभार भाई
को मदद भी करती थी। पर दोनों के स्तर में इतना अंतर था जिसके कारण अलग होना
ही था। मीनलदेवी के पति का उठना-बैठना बड़े लोगों में था। उसका भी इन
पार्टियों में आना-जाना था। किटी पार्टी में पीहर के बारे में जवाब देने में
उसे शर्म व हीन भावना आती थी। इस कारण उसका मायके में आना-जाना कम होता
गया। आज वह बहुत वर्षों बाद भाई की हालत बहुत खराब होने के कारण गई।
पर
आज उस छोटी लड़की को अपने भाई के लिए इतना प्यार और चाहत देखकर उसे लगा कि
आज वह पैसे से बहुत बड़ी होने के बाद भी उस लड़की से बहुत छोटी हो गई है।
आज
वह सबकुछ करने की स्थिति में होने के बाद भी अपने छोटे भाई के लिए कुछ न
कर पाई। अचानक उसे लगा कि वर्षों का लावा दिल से बह रहा है। 'ड्राईवर गाड़ी
वापस हॉस्पिटल ले चलो।' उसने धीरे पर स्पष्ट आवाज में कहा।
ड्राईवर
ने आश्चर्य से पीछे देखा, मीनलदेवी अपने सेकेट्ररी से कह रही थी, 'हृदय
विशेषज्ञ डॉ. चांडक से भाई के आपरेशन के लिए अपॉइंटमेंट ले ले।'
डॉ. चमन माहेश्वरी
saral vichar
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