दादा टी. एल. वासवानी
सन १९४४ की बात है। २५, २६ और २७ नवंबर को
युनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट कलकत्ता में ऑल इंडिया गीता जयंती कान्फ्रेंस होने
जा रही थी। साधु वासवानी को दूसरे दिन की सभा की अध्यक्षता करने के लिए
आमंत्रित किया गया। साधु वासवानी उस समय हैदराबाद सिंध में थे और उनके भक्त
२५ नवंबर को उनका जन्मदिन मनाने की तैयारियों में जुटे थे। उन लोगों को यह
जानकर बड़ी निराशा हुई कि साधु वासवानी ने सभा का वह निमंत्रण स्वीकार कर
लिया है और २० नवंबर को वे कलकत्ता के लिए रवाना हो जाएंगे।
कोई भी
रेलगाड़ी सीधी कलकत्ता नहीं जाती थी। इसलिए हमें रास्ते में लाहौर उतरना
पड़ा। जहां एक दिन रुककर कलकत्ता मेल पकड़नी थी पर किसी कारणवश वह मेल छूट
गई। साधु वासवानी ने कहा कि 'जो भी होता है, हमारे भले के लिए ही होता है।
अगली गाड़ी से हम लाहौर चलेंगे । बाद में पता चला कि जिस कलकत्ता मेल से हमें
जाना था वह आगे जाकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। जिसमें कई आदमी घायल हो गए।
गाड़ी
जब कलकत्ता की ओर भागी जा रही थी तो साधु वासवानी ने खिड़की से बाहर गरीब
किसानों को धान के खेतों में काम करते हुए देखा। उनकी आंखों में आंसू आ गए ।
कहा- कितनी गरीबी है , पुरुष , और नारियां, बच्चे सब सूखे दुबले-पतले व भूखे
हैं। जब कि भारत के खेतों में खूब धान होता है। सूरज तेज है और भारत के
नदी, नाले पहले की तरह ही गति से बह रहे हैं। हे ईश्वर तू कहां है? '
साधु
वासवानी २४ नवंबर अपने जन्मदिन से एक दिन पहले कलकत्ता पहुंचे। जब उनसे
जन्मदिन का संदेश देने की प्रार्थना की गई तो वे बोले, 'हमारे आसपास तथा
हमारे अंदर एक प्राणभक्ति का प्रवाह है। हम जिस स्वर में सधे हैं, उसी स्वर
के साथ तालमेल बिठा सकते हैं।
ऊंचे स्वर के साथ नहीं बिठा सकते। और एक स्वर सबसे ऊंचा है।
जिंदगी एक रहस्य है। उसके आगे मैं सादर शीश झुकाता हूं। मैं प्रार्थना करता हूं कि मुझे इतनी शक्ति मिले ताकि मैं सहानुभति और प्रेम के छोटे छोटे कार्यों से उन दीन-हीनों की पूजा व सेवा कर सकूँ।'
उस समय के पवित्र वातावरण में आगे वे बोले, संसार के बारे में आदमी का ज्ञान बहुत बढ़ गया है। विज्ञान ने बड़ी तेजी से प्रगति की है। लेकिन क्या विज्ञान ने संतों का यह आह्वान सुना है किसी के साथ हिंसा करना मानो मेरी अपनी अखंडता की हिंसा करना है, क्योंकि मेरे भाई का रक्त भी मेरा ही है। और आज में प्रार्थना करता हूं कि मुझ में दोहरा खजाना प्राप्त करने की आकांशा बढ़ती रहे। वह दोहरा खजाना है आध्यात्मिक उन्नति और दीन लोगों की विनम्र सेवा।'
SARAL VICHAR
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