एक बात हर किसी को अच्छी लगती है। वो है किसी का नाम । या जो भी आपने प्यार से रखा हो। जैसे कई लोग पति का प्यार से कोई अलग नाम लेते हैं।
पति भी बार-बार जैसे अनू मुझे ये दो, अनू मुझे वो दो। अनू मुझे चाय दो ऐसा कहते हैं तो पत्नि को अच्छा लगता है।
सबको अपना नाम प्यारा होता है। आप किसी के नाम से उसे बुलाएंगे तो उसे
अच्छा ही लगेगा।
एक अन्य बात याद आती है। मुझे किसी ने
अपने जीवन की घटना सुनाई। जिसमें उसकी पत्नी ने उससे एक आग्रह किया था।
उसकी पत्नी ने एक कार्यक्रम 'आत्मसुधार' में भाग लिया था। एक दिन उसकी
पत्नी ने पूछा कि वह उसकी छह कमियां बताए जिन्हें सुधारने से वह बेहतर
पत्नी बन जाए। उसका पति यह सुनकर हैरान रह गया। सच कहा जाए तो वह बड़ी
आसानी से उसे छह कमियां बता सकता था जिसमें सुधार की जरुरत थी और उसने कहा
कि ईश्वर जानता है कि वह ऐसी हजार बातों की सूची थमा सकती थी जिसमें मुझे
सुधार की आवश्यकता थी। परंतु मैंने ऐसा नहीं किया । इसके बजाए मैंने कहा मुझे सोचने का
समय दो। मैं तुम्हें सुबह जवाब दूंगा।
'अगली सुबह वह जल्दी उठ गया
और फूल वाले को फोन करके अपनी पत्नी के लिए छह गुलाबों का तोहफा भिजवाने के
लिए कहा। जिसमें एक चिट्ठी भी लगी हो, 'मुझे तुम्हारी छह कमियाँ नहीं
मालूम, जिसमें सुधार की जरुरत हो । तुम जैसी भी हो, मुझे बहुत अच्छी लगती
हो ।
उस शाम को जब मैं घर लौटा तो आप बता सकते हैं दरवाजे पर किसने
उसका स्वागत कियाः बिल्कुल ठीक- मेरी पत्नी ने। उसकी आंखों में आंसू भरे
हुए थे। या यह कहने की जरुरत नहीं है कि उसके आग्रह करने के बावजूद मैंने
उसकी आलोचना नहीं की थी।
अब आप ही बताईए । आपको सराहना की शक्ति का अहसास हो गया होगा।
लेकिन
इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आप लोगों की चापलूसी करें। क्योंकि
समझदार लोगों के सामने चापलूसी काम नहीं आएगी। वैसे कई लोग तारीफ के इतने
भूखे होते हैं कि वे चापलूसी को भी तारीफ समझकर उसे निगल जाते हैं। जैसे
भूखा आदमी घास और कीड़े-मकोड़े तक खा लेता है।
प्रशंसा और चापलूसी
में क्या फर्क है? एक झूठी होती है दूसरी सच्ची। एक दिल से निकलती है,
दूसरी दांतों से। एक निःस्वार्थ होती है, दूसरी स्वार्थपूर्ण ।
आज
की व्यस्त जिंदगी में सच्ची तारीफ करना दुर्लभ हो गई है।
न जाने ऐसा क्यों
होता है कि हम अच्छे नंबर लाने पर अपने पुत्र और पुत्री की प्रशंसा करना
अक्सर भूल जाते हैं। या वो कोई अच्छा काम करते हैं। हम तब भी अपने बच्चों
की तारीफ नहीं करते। बच्चों को अपने माता-पिता की रुचि और प्रशंसा से जो
आनंद मिलता है, उससे अधिक आनंद और किसी बात से नहीं मिलता। अगर आप उनकी
तारीफ करेंगे तो वे और अच्छा काम करेंगे।
ईमानदारी से सच्ची तारीफ
करें। मुक्त कंठ से तारीफ करें। अगर आप ऐसा करेंगे तो आप पाएंगे कि लोग
आपके शब्दों को अपनी यादों की तिजोरी में रखेंगे और जिंदगी भर उन्हें
दोहराते रहेंगे- आपने जो कहा है, वह आप भूल जाएंगे, पर वे नहीं भूल पाएंगे।
डेल कारनेगी
SARAL VICHAR
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