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चंदन का व्यापारी | Man Darpan Story

चंदन का व्यापारी | CHANDAN KA VYAPARI | SANDALWOOD MERCHANT - www.saralvichar.in

कर्नाटक में चंदन का बहुत बड़ा व्यापारी रहता था। वह दूर-दूर के जंगलों से चंदन मँगाता था। वह चंदन खासकर सेठ-साहूकार या राजा के मरने पर ही काम में आता था। एक बार सेठ के व्यापार में बहुत मंदी आ गई। माल जमा हो गया। खरीदार नहीं मिल रहा था।

एक दिन उस नगर के राजा का जन्मदिन आया। राजा बड़ा न्यायी और प्रजावत्सल था। नगर के प्रमुख लोग राजा के जन्मदिन पर बधाई देने अनेक प्रकार के उपहार लेकर जा रहे थे। औपचारिकतावश चंदनवाला सेठ भी गया। राजा ने जैसे ही सेठ को देखा, उसके मन में सेठ के प्रति बड़ी घृणा जगी।
 

उसके मन में विचार उठा-इस सेठ को जेल में बंद करवा दूं या मरवा डालूं। राजा ने मन के दुर्भावों को छिपाने की चेष्टा भी की और ऊपरी तौर पर सेठ के साथ सभ्य व्यवहार किया, व्यापार और सुख-दुख की बात पूछकर उसे विदा किया। राजा बहुत देर तक सोचता रहा, 

इस सेठ ने कभी मेरा कोई अपराध नहीं किया, फिर उसे देखकर मेरे मन में उसके प्रति दुर्भावना क्यों आई ? उसे मरवा डालने का संकल्प आखिर मेरे मन में क्यों उठा। राजा ने मंत्री से यह बात कही और उसका कारण पूछा।
मंत्री ने भी कारण की खोज की। उसने सेठ से मित्रता बढ़ाई। दिल खुलने लगे। आखिर बात ही बात में सेठ ने बताया-व्यापार में बड़ी मंदी आ रही है, कोई सेठ-साहूकार राजा - महाराजा मरे तो उसकी चिता में चंदन लगे।

 तब हमारी 10-20 मन की बिक्री हो। मंत्री सेठ के मन की बात समझ गया। 

एक दिन मंत्री ने कहा- सेठजी! राजाजी के लिए वैद्यों ने बताया है कि उनका भोजन चंदन की लकड़ी से पकाया जाएगा। अत: जो बढ़िया से बढ़िया चंदन हो वह पाँच सेर चंदन प्रतिदिन राजमहलों में पहुँचाने का ठेका आपको दिया जाता है। जीवन भर राजा को चंदन की लकड़ी से पकी रसोई खानी है ।
मंत्री की बात सुनते ही सेठ की उदासी दूर हो गई। मन में बड़ी प्रसन्नता हुई। अब वह सोचने लगा- 'यह राजा सौ वर्ष तक जीवित रहे, जब तक राजा जीएगा, मेरा धंधा चलेगा। हे भगवान! राजा को लंबी उम्र दो। '

यही विचार मन में करने लगा। अगले वर्ष फिर राजा का जन्मदिन आया। सभी लोगों के समान यह चंदन वाला सेठजी उपहार सजाकर राज दरबार में गया और भेंट करके राजा के दीर्घायु की कामना की। राजा ने सेठ को जैसे ही देखा-मन में बड़ा प्रेम जगा। लगा जैसे कोई मेरा भाई है। इसे गले लगा लूं। मन के इन भावों को भी राजा ने छिपा लिया। मंत्री से पुन: अपनी बात कही और इस परिवर्तन का रहस्य पूछा कि क्यों उस दिन इसके प्रति मेरे मन में दुर्भावना आई और क्यों आज प्रेम छलकने लगा।

मंत्री ने कहा महाराज! जिस दिन यह सेठ आपके सामने आया था, इसके चंदन में बहुत मंदी आ रही थी, बिक्री नहीं थी, इसने सोचा अगर यह राजा मर जाए तो मेरा 10-20 मन चंदन बिक जाए। उसके मन
में आपके प्रति यह भाव था तो आपके मन में भी उसको जान से मारने के विचार आए। आज जब वह आया तो वह यही सोच रहा था आप चिरंजीवी हों, जब तक आप जीते रहेंगे उसका धंधा चलता रहेगा। आज वह आपके लिए शुभ भावना करता है। इसलिए आपके मन में भी उसके प्रति प्रेम उमड़ आया।

 मन दर्पण है, जैसा आपका विचार होता है वैसा ही विचार दूसरे हृदय पर भी अंकित हो जाता है।

सिद्धांत- ये बातें आज भी कितनी सच्ची हैं। अगर हम किसी के लिए बुरा सोचते हैं तो वह भी हमारे लिए बुरा ही सोचता है। चाहे तो आजमाकर देख लो।

यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जैसा भाव हमारे मन मेे होता है वैसा ही भाव सामने वाले के मन में आता है।

 

 SARAL VICHAR

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