डर के बिना कैसे जीएं?
युद्ध के मैदान में जब
अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि मुझे बीच मैदान में ले चलो। दोनों ओर
सेनाएं खड़ी थीं। अर्जुन कहता है कि मुझे पता तो चले कि मुझे किस-किससे
लड़ना है।
कभी गीता पढ़कर देखना। आपको बड़ा आनंद आएगा। भगवान ने दोनों सेनाओं के बीच रथ खड़ा कर दिया। आप लोगों को पता है कि जितने भी देवता हैं उन सबके पास एक ध्वनि तो जरुर है। एक पशु-पक्षी, परींदा-वनस्पति जरुर है। कोई फूल है। भगवान ने पंचजन्य शंख जब बजाया था तो दूसरी तरफ की सेना और पितामह को लगा कि हम हार गए।
अपने चरित्र को इतना महान बनाईए कि शत्रु भयभीत हो जाए। आपका नाम सुनकर ही डर जाए। आपका अहित करने की, अनिष्ट करने की कल्पना भी न कर सकें। अपने व्यक्तित्व को इतना बड़ा बनाईए, ऊंचा बनाईए । वह व्यक्तित्व वेद से बनता है। और किसी से नहीं बन सकता। अपने आपको बड़ा बनाना हो, अपने व्यक्तित्व को बड़ा बनाना हो तो उसकी एक मात्र विधी वेद है। वेद में वो ज्ञान है, प्रकाश है । वेद से सामर्थ्य प्राप्त होती है। सबसे प्राचीनतम वेद है ऋग्वेद। जो व्यक्ति वेद के द्वारा तैयार होते हैं, वे विराट होते हैं। हम भाग्यशाली हैं कि हम वैदिक प्राणी हैं। हमारे रक्त में, मांसपेशियों में, सांसों में, हमारे अंगों में वेद के अंश हैं।
इसलिए यहां का पुत्र अमृतपुत्र कहलाता है। शत्रु से डरने की जो कभी-कभी कल्पना होती है-वह उनको होती है जिनमें कहीं कोई कमी होती है।
मुझे तो आपसे एक ही बात कहनी है -क्या हमें कभी डर लगता है? भय लगता है? अगर भय लगता है तो इसका एक ही कारण है- तुझमें और भगवान में कुछ दूरी हो गई है। तुझमें और ज्ञान में दूरी आ गई है। वेद सबलता देता है। जो अंतर के शत्रुओं का नाश करे। बाहर के शत्रुओं को नियंत्रित करने जाएंगे किंतु जो भीतर के, अंदर के शत्रु हैं मंथरा जैसे, उन्हें कौन ठीक करेगा। आपको जब कभी भी लगे कि चलो दुश्मन गिन लें तो शुरुआत यहां से करना।
कभी गीता पढ़कर देखना। आपको बड़ा आनंद आएगा। भगवान ने दोनों सेनाओं के बीच रथ खड़ा कर दिया। आप लोगों को पता है कि जितने भी देवता हैं उन सबके पास एक ध्वनि तो जरुर है। एक पशु-पक्षी, परींदा-वनस्पति जरुर है। कोई फूल है। भगवान ने पंचजन्य शंख जब बजाया था तो दूसरी तरफ की सेना और पितामह को लगा कि हम हार गए।
अपने चरित्र को इतना महान बनाईए कि शत्रु भयभीत हो जाए। आपका नाम सुनकर ही डर जाए। आपका अहित करने की, अनिष्ट करने की कल्पना भी न कर सकें। अपने व्यक्तित्व को इतना बड़ा बनाईए, ऊंचा बनाईए । वह व्यक्तित्व वेद से बनता है। और किसी से नहीं बन सकता। अपने आपको बड़ा बनाना हो, अपने व्यक्तित्व को बड़ा बनाना हो तो उसकी एक मात्र विधी वेद है। वेद में वो ज्ञान है, प्रकाश है । वेद से सामर्थ्य प्राप्त होती है। सबसे प्राचीनतम वेद है ऋग्वेद। जो व्यक्ति वेद के द्वारा तैयार होते हैं, वे विराट होते हैं। हम भाग्यशाली हैं कि हम वैदिक प्राणी हैं। हमारे रक्त में, मांसपेशियों में, सांसों में, हमारे अंगों में वेद के अंश हैं।
इसलिए यहां का पुत्र अमृतपुत्र कहलाता है। शत्रु से डरने की जो कभी-कभी कल्पना होती है-वह उनको होती है जिनमें कहीं कोई कमी होती है।
मुझे तो आपसे एक ही बात कहनी है -क्या हमें कभी डर लगता है? भय लगता है? अगर भय लगता है तो इसका एक ही कारण है- तुझमें और भगवान में कुछ दूरी हो गई है। तुझमें और ज्ञान में दूरी आ गई है। वेद सबलता देता है। जो अंतर के शत्रुओं का नाश करे। बाहर के शत्रुओं को नियंत्रित करने जाएंगे किंतु जो भीतर के, अंदर के शत्रु हैं मंथरा जैसे, उन्हें कौन ठीक करेगा। आपको जब कभी भी लगे कि चलो दुश्मन गिन लें तो शुरुआत यहां से करना।
पहला शत्रु कौन है?
पहला शत्रु- आलस्य, जड़ता, मूढ़ता, आसक्ति । ये मानसिक दुर्बलताएं हैं। एक
दिन कागज पर लिखकर देखना। पता चलेगा कि भीतर के कई दुश्मन है। जिनके कारण
हम उन्नति नहीं कर पाए, प्रगति नहीं कर पाए, ध्यान में नहीं बैठ पाए। समाधि
का सुख नहीं ले पाए।
कुछ लोग तो रात के तारे जो आसमान में होते हैं, वे ही नहीं देख पाए। उन्हें ये ही नहीं पता कि उनका भी कोई सौंदर्य होता है। आकाशगंगा की दूधिया चादर को नहीं देख पाए। पूरा चांद नहीं देख पाए।
सूरज की अपनी महिमा है, किंतु रात की भी अपनी महिमा है। कभी चांद की कलाएं देखा करो। अमावस कैसी होती है? कभी निहार लिया करो रात्रि को। रात भी वंदनीय होती है जो तारे दिखाती है। जब कभी अचानक दुःख आएगा जीवन में तो उसके लिए बल कहां से आएगा? वो है वेद। वेद से ज्ञान आएगा। वेद से प्रकाश आएगा। वेद के बिना परंपरा नहीं संभाली जा सकती।
हम भी कई बार हार जाते हैं, अपनी दुर्बलताओं से, अपनी वासनाओं से, अपनी कमजोरियों से, अपने दुर्गणों से । उनके लिए बल कहां से आएगा? वेद से हमें बल आएगा।
कुछ लोग तो रात के तारे जो आसमान में होते हैं, वे ही नहीं देख पाए। उन्हें ये ही नहीं पता कि उनका भी कोई सौंदर्य होता है। आकाशगंगा की दूधिया चादर को नहीं देख पाए। पूरा चांद नहीं देख पाए।
सूरज की अपनी महिमा है, किंतु रात की भी अपनी महिमा है। कभी चांद की कलाएं देखा करो। अमावस कैसी होती है? कभी निहार लिया करो रात्रि को। रात भी वंदनीय होती है जो तारे दिखाती है। जब कभी अचानक दुःख आएगा जीवन में तो उसके लिए बल कहां से आएगा? वो है वेद। वेद से ज्ञान आएगा। वेद से प्रकाश आएगा। वेद के बिना परंपरा नहीं संभाली जा सकती।
हम भी कई बार हार जाते हैं, अपनी दुर्बलताओं से, अपनी वासनाओं से, अपनी कमजोरियों से, अपने दुर्गणों से । उनके लिए बल कहां से आएगा? वेद से हमें बल आएगा।
स्वामी अवधेशानंद जी
Dar Ke Bina kaise Jiye?
Yuddh ke maidaan mein jab arjun shreekrshn se kahata hai ki mujhe beech maidaan mein le chalo. Donon or senaen khadee theen. Arjun kahata hai ki mujhe pata to chale ki mujhe kis-kisase ladana hai.
Kabhee geeta padhakar dekhana. Aapako bada aanand aaega. Bhagavaan ne donon senaon ke beech rath khada kar diya. Aap logon ko pata hai ki jitane bhee devata hain un sabake paas ek dhvani to jarur hai. Ek pashu-pakshee, pareenda-vanaspati jarur hai. koee phool hai. Bhagavaan ne panchajany shankh jab bajaaya tha to doosaree taraph kee sena aur pitaamah ko laga ki ham haar gae.
Apane charitr ko itana mahaan banaeee ki shatru bhayabheet ho jae. Aapaka naam sunakar hee dar jae. Aapaka ahit karane kee, anisht karane kee kalpana bhee na kar saken. Apane vyaktitv ko itana bada banaeee, ooncha banaeee . Vah vyaktitv ved se banata hai. Aur kisee se nahin ban sakata. Apane aapako bada banaana ho, apane vyaktitv ko bada banaana ho to usakee ek maatr vidhee ved hai. Ved mein vo gyaan hai, prakaash hai . Ved se saamarthy praapt hotee hai. Sabase praacheenatam ved hai rgved. Jo vyakti ved ke dvaara taiyaar hote hain, ve viraat hote hain. Ham bhaagyashaalee hain ki ham vaidik praanee hain. Hamaare rakt mein, maansapeshiyon mein, saanson mein, hamaare angon mein ved ke ansh hain.
Isalie yahaan ka putr amrtaputr kahalaata hai. Shatru se darane kee jo kabhee-kabhee kalpana hotee hai-vah unako hotee hai jinamen kaheen koee kamee hotee hai.
Mujhe to aapase ek hee baat kahanee hai -kya hamen kabhee dar lagata hai? Bhay lagata hai? Agar bhay lagata hai to isaka ek hee kaaran hai- tujhamen aur bhagavaan mein kuchh dooree ho gaee hai. Tujhamen aur gyaan mein dooree aa gaee hai. Ved sabalata deta hai. Jo antar ke shatruon ka naash kare. Baahar ke shatruon ko niyantrit karane jaenge kintu jo bheetar ke, andar ke shatru hain manthara jaise, unhen kaun theek karega. Aapako jab kabhee bhee lage ki chalo dushman gin len to shuruaat yahaan se karana.
Pahala shatru kaun hai? Pahala shatru- aalasy, jadata, moodhata, aasakti . Ye maanasik durbalataen hain. Ek din kaagaj par likhakar dekhana. Pata chalega ki bheetar ke kaee dushman hai. Jinake kaaran ham unnati nahin kar pae, pragati nahin kar pae, dhyaan mein nahin baith pae. Samaadhi ka sukh nahin le pae.
Kuchh log to raat ke taare jo aasamaan mein hote hain, ve hee nahin dekh pae. Unhen ye hee nahin pata ki unaka bhee koee saundary hota hai. Aakaashaganga kee doodhiya chaadar ko nahin dekh pae. poora chaand nahin dekh pae.
Sooraj kee apanee mahima hai, kintu raat kee bhee apanee mahima hai. Kabhee chaand kee kalaen dekha karo. Amaavas kaisee hotee hai? Kabhee nihaar liya karo raatri ko. Raat bhee vandaneey hotee hai jo taare dikhaatee hai. Jab kabhee achaanak duhkh aaega jeevan mein to usake lie bal kahaan se aaega? Vo hai ved. Ved se gyaan aaega. Ved se prakaash aaega. Ved ke bina parampara nahin sambhaalee ja sakatee.
Ham bhee kaee baar haar jaate hain, apanee durbalataon se, apanee vaasanaon se, apanee kamajoriyon se, apane durganon se . Unake lie bal kahaan se aaega? Ved se hamen bal aaega.
Swami Avdheshanand Ji Maharaj
SARAL VICHAR
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