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बच्चे सच क्यों नहीं बताते | Kids Hide Truth from Parents

बच्चों के दोस्त बनिए... | BACHON KE DOST BANIYE |  BE FRIEND OF CHILDREN = www.saralvichar.in



बच्चा जिस दिन रिजल्ट लेकर आता है, उस दिन हम उसे डांटते हैं। किंतु वह तो डांटने का दिन नहीं होता। क्योंकि उस दिन तो वह खुद अपने आपको ही बहुत डांट रहा है। वह अंदर ही इतनी गिल्ट में है। आपको पता है जितने बच्चे फेल होने के बाद सुसाईड करते हैं या सुसाईड करने का सोचते हैं। दरअसल वह फेल होने के कारण नहीं सोचते, फेल होना क्या बड़ी बात है, एक साल और....... पास हो जाएंगे। वह इतनी बड़ी बात नहीं है। वह सुसाईड करने का इसलिए सोचते हैं कि वे अपने माता पिता को face नहीं कर सकते । यह बहुत बड़ा डर होता है उनके लिए। आज हमारे बच्चों से कोई गलती हो भी जाती है तो वे आकर नहीं बताते । 

जब बच्चा छोटा होता है तब सबकुछ आकर बताता है। चाहे हम उसकी बात सुने या न सुने, वह हमारे आगे-पीछे आकर बताते हैं। बड़े होने के बाद हम बच्चों के आगे-पीछे घूमते हैं कि आज क्या हुआ? वे अपने रूम में चले जाते हैं और बाहर जाने को कह देते हैं।


यह क्यों हो गया? हमारे पूछने पर उसने झूठ बोलना शुरु कर दिया। जब बच्चे छोटे होते थे तब हम उनकी बातें सुनकर मुस्कराते थे। उस बच्चे को सबसे प्यार, स्वीकार मिलता था । थोड़ा बड़ा होने पर उसने बताया कि आज हम स्कूल बंग करके पिक्चर देखने गए। आपने उसे डांटा या मारा । उसे समझ ही नहीं आया कि आज क्या हो गया । उसके लिए तो पहले भी वही बात थी और आज भी वही बात है। वह तो अपनी हर बात आकर बताता था, उसी तरह पिक्चर वाली बात भी बताई। किंतु आज उसे रिजक्शन मिला कुछ समय बाद उसने कुछ और बात बताई जो आपके हिसाब से गलत थी किंतु उसे यह नहीं पता था कि वह कुछ गलत कर रहा है। उसे लगा कि अब ये मेरी बातें रिजेक्ट करते हैं । 

उसने धीरे-धीरे बताना बंद कर दिया और हमने सोचा कि बच्चे ने वह काम जो हमें नहीं पसंद हैं उसने करना बंद कर दिया है।

वैसे बच्चे तो सुनाने के लिए तैयार हैं किंतु क्या आप सुनने को तैयार हैं ? 

बच्चों को कहिए आप जो कुछ कहेंगे जो कुछ भी....हम गुस्सा नहीं होंगे। यह बात शुरू से ही उसे बता कर रखनी है। आप सोचेंगे तो क्या हम बच्चों पर गुस्सा ही ना करें.... नहीं ऐसा नहीं है आप उन्हें उस वक्त नहीं बोलिए। बाद में शांति से बोलिए कि बेटा यह करने में क्या बुराई है और बच्चा उस वक्त सुनेगा भी....

आज के समय में अपने बच्चे को protect करना है तो बच्चों से आप कहिए कि आप हमें अपनी हर बात बता सकते हैं। 

हम कहते हैं बच्चे ने झूठ बोला। आप ही बताइए कि कोई झूठ क्यों बोलता है? फिर वह चाहे आफिस में हो या घर पर । उसे झूठ बोलना पड़ता है । मान लो, कोई आपकी टीम का मेम्बर है, उसे क्रिकेट मेच देखने जाना है । अगर वह आपको सच आकर कहेगा तो आप उसे छुट्टी नहीं देंगे, इसलिए वह हास्पिटल का बहाना करेगा कि मेरी पत्नी या मां को हॉस्पिटल लेकर जाना है।

कोई भी झूठ बोलना नहीं चाहता, किंतु लोग सच सुनने को तैयार नहीं हैं।
 

आज के समय में पैरेंट्स और बच्चों के बीच दोस्ती का रिश्ता डेवलप ना होने के पीछे एक मुख्य कारण यही होता है कि माता-पिता बच्चे से दोस्ती तो करना चाहते हैं, लेकिन उनके पास बच्चे के लिए समय नहीं होता। हम यह नहीं कहते कि आप सारा दिन बच्चे के साथ बिताएं, लेकिन कम से कम दिन में एक घंटा सिर्फ और सिर्फ उनके लिए ही रखें।

बच्चों को यह विश्वास दिलाना होगा कि आप उनके  लिए हमेशा अवेलेबल हैं। 

याद रखें कि फ्रेंडशिप सिर्फ एक दिन में या अचानक से डेवलप नहीं होती। रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयासों की जरूरत होती है।

अगर कोई आपसे झूठ बोलता है तब सामनेवाले पर गुस्सा मत करो, अपने आप को चेक करो कि क्यों इसे मुझपर इतना विश्वास भी नहीं है। झूठ बोलने का कल्चर (संस्कृति) तो हम सामनेवाले में पैदा करते हैं।

हम सोचते हैं कि हम गुस्सा नहीं करेंगे तो सामनेवाला नहीं सुधरेगा । गुस्से से सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही होता है।

जब आप उन्हें प्यार से गले लगाते हैं तो इससे बच्चा न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी आपसे जुड़ता है।


SARAL VICHAR


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