एक बार उद्धव ने श्री कृष्ण से पूछा कि आपने पांडवों का युद्ध में साथ दिया। उन्हें युद्ध में जिताया।
किंतु जब वे द्युत
क्रीड़ा (जुआ) खेल रहे थे। पांडव अपना सब कुछ हार गए थे। द्रोपती का वस्त्र
हरण होने लगा उससे पहले ही आपने उनकी मदद क्यों नहीं की ? अगर जुआ नहीं
खेला जाता तो राज्य भी नहीं हारते। ये महाभारत का युद्ध भी नहीं होता।
कृष्ण
बोले- मैं तो तब भी सत्य के पक्ष में था। दुर्योधन को भी जुआ खेलना नहीं
आता था तो उसने अपने मामा शकुनि (जो जुआ खेलना जानता था) उसे पास बिठाया।
किंतु युधिष्टर को पता था कि मुझे (श्रीकृष्ण को) जुआ खेलना पसंद नहीं। वह
मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि कृष्ण यहां पर न आए। भले ही बुरे काम के
लिए दुर्योधन ने शकुनि को बुलाया तो शकुनि ने उसे जिताया। युधिष्टर
प्रार्थना करता रहा कि मैं वहां ना आऊं। तो उसकी प्रार्थना ने मेरे पैर
बांध दिए। इसलिए मैं वहां पर उनकी मदद नहीं कर सका।
सत्य भी है कि
जब द्रोपती की साड़ी दुःशासन खींचने लगा तो वह भीष्म पितामह,
द्रोणाचार्य आदि सबको पुकारने लगी। पहले उसने साड़ी को हाथ से पकड़ा, फिर
दांतों से पकड़ा। किंतु उसने जब श्रीकृष्ण को पुकारा, घट-घट वासी कहा।
हाथों और दांतों ने जब साड़ी छोड़ दी। स्वयं को, श्रीकृष्ण को सौंप दिया तो
एक सेकंड भी नहीं लगा श्रीकृष्ण के आने में। श्रीकृष्ण तो हमारे साथ ही
हैं। किंतु हम उसे पुकारें तो सही।
दादा भगवान
मायाजाल के लड्डू
संत को देख वह बंदर संत से आग्रह करने लगा कि महाराज कृपया कर के मुझे इस बंधन से मुक्त करवाएं। संत ने बंदर को कहा के तुमने घड़े के अंदर हाथ डाला तो वह आसानी से उसमे चला गया...
परन्तु अब इसलिए बाहर नहीं निकल रहा है क्यूंकि तुम ने अपने हाथ में लड्डू पकड़ा हुआ है जो की उस घड़े के अंदर है, अगर तुम वह लड्डू हाथ से छोड़ दो तो तुम आसानी से मुक्त हो सकते हो...
बंदर ने कहा के महाराज, लड्डू तो मैं नहीं छोड़ने वाला, अब आप मुझे बिना लड्डू छोड़े ही मुक्त होने की कोई युक्ति सुझाएं,
हज़ार कोशिशों के बाद बंदर को इस बात का एहसास हुआ कि बिना लड्डू छोड़े मेरा हाथ इस घड़े से बाहर नही निकल सकता और मैं मुक्त नही हो सकता, आख़िरकार बंदर ने वो लड्डू छोड़ा और सहजता से ही उस घड़े से मुक्त हो गया...
बंदर जैसी स्थिति आज हमारी है। जो की संसार के मायाजाल रूपी घड़े में फँसा बैठा है। संसारिक वस्तुओं, इच्छाओं जैसे लड्डू को छोड़ना भी नहीं चाहता और उस घड़े से मुक्त भी होना चाहता है...।
ANMOL SHIKSHA
Ek baar uddhav ne shree krshn se poochha ki aapane paandavon ka yuddh mein saath diya. Unhen yuddh mein jitaaya.
Kintu
jab ve dyut kreeda (jua) khel rahe the. Paandav apana sab kuchh haar
gae the. Dropati ka vastr haran hone laga usase pahale hee aapane
unakee madad kyon nahin kee ? Agar jua nahin khela jaata to raajy bhee
nahin haarate. Ye mahaabhaarat ka yuddh bhee nahin hota.
Krshn
bole- Main to tab bhee satay ke paksh mein tha. duryodhan ko bhee jua
khelana nahin aata tha to usane apane maama shakuni (jo jua khelana
jaanata tha) use paas bithaaya. Kintu Yudhishtar ko pata tha ki mujhe
(shrikrishna ko) jua khelana pasand nahin. Vah man hee man praarthana kar
raha tha ki krishna yahaan par na aae. Bhale hee bure kaam ke lie Duryodhan ne Shakuni ko bulaaya to Shakuni ne use jitaaya. Yudhishtar
praarthana karata raha ki main vahaan na aaoon. to usakee praarthana ne
mere pair baandh die. Isalie main vahaan par unakee madad nahin kar
saka.
Satay bhee hai ki jab dropatee kee sari duhshaasan
kheenchane laga to vah Bheeshm pitaamah, Dronaachaary aadi sabako
pukaarane lagee. Pahale usane sari ko haath se pakada, phir daanton se
pakada. kintu usane jab Shreekrishna ko pukaara, ghat-ghat vaasee kaha.
haathon aur daanton ne jab sari chhod dee. Svayam ko, Shreekrshna ko
saump diya to ek sekand bhee nahin laga Shreekrshna ke aane mein. Shreekrshna to hamaare saath hee hain. Kintu ham use pukaaren to sahee.
DADA BHAGWAN
SARAL VICHAR
Topics of Interest
0 टिप्पणियाँ