आपा नजीरां बावर्चीखाने में बर्तन धो रही थी। ड्राईंगरूम में घर के सब लोग जमा थे और हंस-बोल रहे थे। उनकी आवाजें आपा नजीरां के लिए एक ऐसे दिलपसंद नगमें की तरह थीं, जो जब भी बजता है, कानों में रस घोलता है। पूरे बीस बरस हो गए थे, उसे इस घर में काम करते हुए। अब तो वह इस घर की सदस्या बन चुकी थी। छोटे-बड़े सब उसे आपा नजीरां कहते थे।
यह परिवार कुल चार सदस्यों का था। इता मुहम्मद साहब, उनकी बेगम कुलभ और दो बच्चे यासर और सोबिया। हाल ही में एक और सदस्य का इजाफा हुआ था और वह थी यासर की दुल्हन सेमी। | सेमी भी यासर और सोबिया की तरह एक हंसमुख लड़की थी। वे तीनों मिलकर घर में रौनक लगाए रखते थे। उस वक्त भी वे शायद कैरम बोर्ड खेल रहे थे। यासर की वालदा, जिन्हें आपा नजीरां 'बाजी जी' कहकर बुलाती थी, शायद छत पर धूप सेकने गई थी। अचानक बाहरी दरवाजे की तरफ से एक रोबदार आवाज गूंजी और आपा नजीरां जैसे ठिठक कर रह गई। यह आवाज इता मुहम्मद साहब की थी। वह खासे उदीन नजर आ रहे थे। ड्राइंग रूम में पहुंचते ही वह बोले, 'यहाँ सब मजे से बैठे हैं। वहाँ कमरे में टीवी, लाइट, गैस, हीटर सब कुछ चल रहा है। भई, हद होती है बेपरवाही की। घर का खर्च चलाना पड़े तो कुछ एहसास हो तुम को।
'ओह सॉरी अब्बाजी। मैं भूल गया था' यासर ने अपनी जगह से उठते हुए कहा।
'याद रहे भी कैसे। याद करने की कोशिश ही नहीं करते तुम। समझते हो मैं बकवास कर रहा हूं...करता रहूं... क्या फर्क पड़ता है।'
इतने में यासर की वालिदा भी नीचे आ गईं। उन्होंने शौहर का गुस्सा ठंडा करने की कोशिश करते हुए कहा, चलिए, छोड़िए भी, किसी वक्त बंदा भूल भी जाता है।'
'किसी वक्त!' इता साहब ने व्यंग्य से कहा, 'मुझे पंद्रह साल हो गए हैं तुम लोगों को बक-बक करते हुए। यहाँ किसी की समझ में कुछ नहीं आता।' वह पांव पटकते हुए अपने कमरे में चले गए।
रात नौ-दस बजे के करीब जब आपा नजीरां घर के कामकाज से फारिग हो कर अपने कमरे में पहुंची तो यासर भी वहीं चला आया। वह बचपन से उसकी आदत थी। जब उसे पिता से किसी बात पर डांट पड़ती थी, तो वह पनाह के लिए आपा नजीरां के पास चला आया करता था।
'आपा! आज दिल बहुत परेशान है,' वह उसके करीब कुर्सी पर बैठते हुए बोला, जी चाहता है, सब कुछ छोड़ कर कहीं निकल जाऊं।'
‘हाय, मेरे पुत्तर! ऐसी बातें मुह से नहीं निकालते।'
आपा नजीरां ने उसे टोका।
'यह कोई जिंदगी है आपा! घर में रहते हुए यों लगता है, जैसे स्कूल में रह रहें हों। अब्बाजी न हुए हैड मास्टर हो गए। हर बात पर पाबंदी। हर काम पर रोक-टोक। यह टीवी क्यों चल रहा है? यह लाइट क्यों जल रही है? यह दरवाजा बंद क्यों नहीं किया? यह दरवाजा खोला क्यों नहीं? गाड़ी में पानी क्यों नहीं डाला? मोटर साइकिल का टोकन क्यों नहीं लगवाया?
जरा-जरा सी बात पर डांटने लगते हैं।'
'पुत्तर जी! बड़े छोटों को समझाया ही करते हैं, आपा नजीरां ने नरमी से कहा, 'ऐसी बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए।'
'लेकिन आपा अब मैं बच्चा नहीं हूं कि हर वक्त रोक-टोक की जाए। बीवी के सामने बेइज्जती करते हैं। कल बच्चे होंगे तो उनके सामने भी यही कुछ कहेंगे। घरों में तो छोटी-मोटी कोताहियाँ, बेपरवाहियाँ सब से होती है, लेकिन इन सबका यह मतलब तो नहीं कि किसी एक को हर वक्त तौहीन का निशाना बनाया जाए। "तुम ठीक कहते हो यासर, किंतु भाई साहब भी अपनी जगह गलत नहीं हैं।' आपा नजीरां ने जवाब दिया।
रुखसत के वक्त आपा नजीरां ने उन्हें ताकीद की थी कि हर सूरत में वह यासर को घर ले आए। लेकिन इता साहब की तरह यासर भी फैसला कर चुका था कि अब वह कभी पिता के घर वापस नहीं आएगा। दो हफ्ते बाद यासर की वालिदा आंखों में आंसू और मायूसी समेटे लाहौर वापस आ गई।
यासर के चले जाने के बाद आपा नजीरां ने भी घर छोड़ दिया। उसकी बहन ने उसे गुजरवालां बुला लिया। दो-तीन माह बाद वह लोग गुजरांवला से मुजफ्फरनगर चले गए। यहाँ आपा नजीरां तकरीबन पांच साल अपनी बहन और भांजे के साथ रहीं। इस दौरान कभी-कभी उसे इता मुहम्मद साहब और उसके घरवालों की खबर मिल जाती थी। उसे यह भी पता चला कि यासर क्वेटा में ही था और उसके दो बच्चे हो गए थे। पांच साल का खुर्रम और चार साल का शहजाद।
आपा नजीरां तकरीबन पांच साल अपनी बहन और भांजे के साथ मुजफ्फरनगर में रहीं। फिर बहन का देहांत हो गया। भांजा क्वेटा चला गया। आपा नजीरां फिर अकेली रह गईं।
इता साहब की ख्वाहिश और अपनी जरूरत के पेशे-नजर आपा नजीरा लाहौर वापस आ गई और एक बार फिर इता साहब के घर की रसोई संभाल ली। पुराने घर में वापस आते ही पुराने जख्म ताजा हो गए। यासर की याद शिद्दत से आने लगी ।
संयोगवश उन्हीं दिनों दिसंबर की छुट्टियाँ थी। सोबिया और यासर की वालिदा क्वेटा जा रही थीं। आपा नजीरां भी उनके साथ गई। यासर ने इतने सालों के बाद आपा नजीरां को देखा तो आंखों में आंसू भर आए। आपा नजीरां भी सजल नेत्र हो गईं। उसने आगे बढ़कर दोनों हाथों से यासर को प्यार किया उसका माथा चूमा | यासर को गले लगा लिया। यासर के बीवी-बच्चों ने भी गर्मजोशी से आपा का स्वागत किया। यासर पहले से कुछ मोटा नजर आ रहा था। उसके चेहरे पर नजर की ऐनक का इजाफा हो गया था। कनपटियों पर भी बाल सफेद नजर आने लगे थे।
आपा नजीरां को यासर के घर में ठहरे आज तीसरा दिन था। वह भारी-भरकम लिहाफ ओढ़े कमरे में सो रही थी। अचानक कुछ आवाजें सुनकर उनकी आंख खुल गई। उन्होंने कान लगाकर सुना। यासर की आवाज थी।
वह बड़े बेटे खुर्रम के बारे में बात कर रहा था। कह रहा था, 'सेमी, अब वह दूध पीता बच्चा नहीं है। उस में समझ होनी चाहए। अभी परसों की बात है, मेरे सामने उसने गर्म पानी का नल खोला और मुंह हाथ धोकर चलता बना। नल बंद करने में भला कितना समय लगता है। बेपरवाही क हद है। टीवी लगा है, ट्रांसमीशन खत्म हो जाता है लेकिन टीवी चलता रहता है। हीटर ऑन है तो रात-दिन चलता रहता है। बत्ती जलाई है तो बुझाना याद नहीं। तुम ध्यान नहीं देती हो। इस तरह कब तक चलेगा ? मेरा तो बोल-बोल कर दिमाग खाली हो गया है।
सेमी ने कहा, 'यासर ! अपनी तरफ से तो बहुत एहतियात करते हैं। किसी वक्त इंसान भूल भी जाता है। ‘किसी वक्त?' यासर ने व्यंग्य से कहा, 'मैं तो दिन रात एक ही तमाशा देखता हूं। सच पूछो तो तुम्हारे लाड़ प्यार ने बिल्कुल ही बिगाड़ दिया है दोनों को।' 'यासर! बच्चे हैं। अहिस्ता-आहिस्ता समझ जाएंगे। सेमी ने धीरे से कहा।
'समझ जायेंगे। मुझे तो लगता है, आहिस्ता आहिस्ता बेपरवाह और अहमक हो रहे हैं।, यह देखो इस महीने का बजट। पिछले महिने की तुलना में इस महिने का बिल ज्यादा है। अगर यही रफ्तार रही तो सात-आठ माह में आधी तनख्वाह बिलों के भेंट चढ़ जाएगी। फिर चला लेना खुद ही इस घर को। 'आहिस्ता बोलो' सेमी ने कहा, आपा नजीरां छोटे कमरे में सो रही हैं। सुन लेंगी...' अपना जिक्र सुनते ही आपा नजीरां वापस मुड़ने लगी पर अंधेरे में किसी चीज से ठोकर लगी और जोर का खटका हुआ। वह अपनी जगह सुन्न खड़ी रह गईं। चंद ही लम्हे बाद ड्राइंग रूम का दरवाजा खुला और आपा नजीरां ने यासर को अपने सामने खड़े देखा... उसकी आंखों में हैरत थी।
'आ.. आपा...नजीरां, तम यहाँ? यासर ने कहा। आपा नजीरा खामोश खड़ी रहीं। उनका दिल चाहा कि वह यहाँ अपनी मौजूदगी के लिए कोई बहाना न बनाए। यासर को साफ बात बता दे कि उसकी बातें सुन चुकी है और फिर उसने ऐसा ही किया। वह जज्बात में बोझिल पर बेहद ठहरी हुई आवाज में बोली, ' यासर मैंने तुम्हारी सारी बातें सुनी हैं और सुनकर मुझे लगा कि यह बातें मैंने पहले भी कहीं सुनी हैं।
'मम... मैं समझा नहीं आपा?' यासर ने कहा। अब सेमी भी उसके पीछे आ खड़ी हुई थी।
आपा नजीरा की आंखों में आसुओं की चमक थी। वह बोली, 'जो बातें तुम आज कर रहे हो, यही बातें तुम्हारे अब्बा कहा करते थे। उस वक्त ये बातें तुम्हे बुरी लगती थी...तुम कहा करते थे...अब्बा जान पर 'रोक टोक' का खब्त सवार हो गया है। याद करो, यही कहा करते थे न तुम ।
यासर खामोश रहा। उसके चेहरे पर एकदम ही परेशानी के बादल उमड़ आए। वह खोयी-खोयी नजरो से आपा नजीरां की तरफ देख रहा था। आपा नजीरां ने कहा, 'जो बातें तुम अभी कह रहे थे यह बुरी नहीं हैं। यह पहले भी बुरी नहीं थीं, लेकिन तुमने इन्हें बुरा समझा और लड़-झगड़ कर घर से निकल आए। जरा ठंडे दिमाग से सोचो, तुम्हें ऐसा करना चाहिए था ?' यासर अब भी कुछ नहीं बोला, लेकिन अब आपा नजीरां की तरह उसकी आंखों में भी आंसुओं की चमक प्रकट हो चुकी थी। आपा नजीरां ने बड़ी मुहब्बत से उसके कंधे पर हाथ रखा और रुंधी हुई आवाज़ में बोली, 'चलो पुत्तर! घर चलो! इन गुजरे बरसों में एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा कि जब तुम्हारे पिता ने तुम्हें याद न किया हो और खिड़की खोल कर तुम्हारी राह न देखी हो!...
यासर कितनी ही देर गुमसुम खड़ा रहा। फिर उसने स्वीकृति में सिर हिला दिया।
'याद रहे भी कैसे। याद करने की कोशिश ही नहीं करते तुम। समझते हो मैं बकवास कर रहा हूं...करता रहूं... क्या फर्क पड़ता है।'
इतने में यासर की वालिदा भी नीचे आ गईं। उन्होंने शौहर का गुस्सा ठंडा करने की कोशिश करते हुए कहा, चलिए, छोड़िए भी, किसी वक्त बंदा भूल भी जाता है।'
'किसी वक्त!' इता साहब ने व्यंग्य से कहा, 'मुझे पंद्रह साल हो गए हैं तुम लोगों को बक-बक करते हुए। यहाँ किसी की समझ में कुछ नहीं आता।' वह पांव पटकते हुए अपने कमरे में चले गए।
रात नौ-दस बजे के करीब जब आपा नजीरां घर के कामकाज से फारिग हो कर अपने कमरे में पहुंची तो यासर भी वहीं चला आया। वह बचपन से उसकी आदत थी। जब उसे पिता से किसी बात पर डांट पड़ती थी, तो वह पनाह के लिए आपा नजीरां के पास चला आया करता था।
'आपा! आज दिल बहुत परेशान है,' वह उसके करीब कुर्सी पर बैठते हुए बोला, जी चाहता है, सब कुछ छोड़ कर कहीं निकल जाऊं।'
‘हाय, मेरे पुत्तर! ऐसी बातें मुह से नहीं निकालते।'
आपा नजीरां ने उसे टोका।
'यह कोई जिंदगी है आपा! घर में रहते हुए यों लगता है, जैसे स्कूल में रह रहें हों। अब्बाजी न हुए हैड मास्टर हो गए। हर बात पर पाबंदी। हर काम पर रोक-टोक। यह टीवी क्यों चल रहा है? यह लाइट क्यों जल रही है? यह दरवाजा बंद क्यों नहीं किया? यह दरवाजा खोला क्यों नहीं? गाड़ी में पानी क्यों नहीं डाला? मोटर साइकिल का टोकन क्यों नहीं लगवाया?
जरा-जरा सी बात पर डांटने लगते हैं।'
'पुत्तर जी! बड़े छोटों को समझाया ही करते हैं, आपा नजीरां ने नरमी से कहा, 'ऐसी बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए।'
'लेकिन आपा अब मैं बच्चा नहीं हूं कि हर वक्त रोक-टोक की जाए। बीवी के सामने बेइज्जती करते हैं। कल बच्चे होंगे तो उनके सामने भी यही कुछ कहेंगे। घरों में तो छोटी-मोटी कोताहियाँ, बेपरवाहियाँ सब से होती है, लेकिन इन सबका यह मतलब तो नहीं कि किसी एक को हर वक्त तौहीन का निशाना बनाया जाए। "तुम ठीक कहते हो यासर, किंतु भाई साहब भी अपनी जगह गलत नहीं हैं।' आपा नजीरां ने जवाब दिया।
तीन चार दिन बाद की बात है। आपा नजीरां बावर्चीखाने में मसरूफ थीं कि बरामदे की तरफ से शोर उठा। इस बार बेटी सोबिया पर बिगड़ रहे थे। उनका ख्याल था कि वह रात छत का नल खुला छोड़ आई थी | और सारी रात पानी बहता रहा है। सोबिया ने अपनी सफाई पेश करते हुए बताया कि रात को भाईजान छत पर गए थे। 'भाईजान' का जिक्र पर इता साहब का पारा कुछ और चढ़ गया और बोले, 'यह लड़का तो है ही नकारा । न वक्त पर सोना न वक्त पर जागना।
यासर की वालिदा ने आड़े आते हुए कहा, 'छोड़िये भी। जरा-जरा सी बात पर न बिगड़ा करें।' इता साहब गरजे, 'तुम्हें तो हर बात जरा-जरा सी लगती है। आधी आमदनी तो बिलों में उड़ जाती है हमारी।। | मुझमें तो अब ताकत नहीं रही यह फिजूलखर्ची बर्दाश्त करने की। यह मैं ही जानता हूं कि घर की गाड़ी कैसे चल रही है।'
आपा नजीरां देख रही थीं कि घर में तनाव की स्थितियाँ दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इता साहब तपे-तपे से रहते थे। वह कंजूस नहीं थे, लेकिन फिजूलखर्ची के सख्त खिलाफ थे। आमदनी और खर्चों में असमानता के सबब यह 'मुखालफत' और बढ़ गई थी। अपने बेटे यासर से इता साहब को खास शिकायत थी। उनकी राय थी कि वह बेहद लापरवाह, फिजूल खर्च और आराम पसंद है। यासर से वह अक्सर डांटने वाले लहजे में बात करते थे। ऐसे में यासर सुर्ख चेहरा लेकर दांए-बाएं हो जाता था और उसकी दुल्हन की आँखों से बेचैनी जाहिर होने लगती थी।
एक रोज आपा नजीरां अपनी इकलौती बेटी से मिलने के लिए लाहौर से गुजरांवाला गई। शाम को जब वापस आई तो घर की फिजां में अजीब-सा खिंचाव और सूनापन महसूस हुआ। सोबिया उदास-सी बैठी थी। बाजी जी ओढ़नी के पल्लू से आंखें पोंछ रही थी।
यासर की वालिदा ने आड़े आते हुए कहा, 'छोड़िये भी। जरा-जरा सी बात पर न बिगड़ा करें।' इता साहब गरजे, 'तुम्हें तो हर बात जरा-जरा सी लगती है। आधी आमदनी तो बिलों में उड़ जाती है हमारी।। | मुझमें तो अब ताकत नहीं रही यह फिजूलखर्ची बर्दाश्त करने की। यह मैं ही जानता हूं कि घर की गाड़ी कैसे चल रही है।'
आपा नजीरां देख रही थीं कि घर में तनाव की स्थितियाँ दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इता साहब तपे-तपे से रहते थे। वह कंजूस नहीं थे, लेकिन फिजूलखर्ची के सख्त खिलाफ थे। आमदनी और खर्चों में असमानता के सबब यह 'मुखालफत' और बढ़ गई थी। अपने बेटे यासर से इता साहब को खास शिकायत थी। उनकी राय थी कि वह बेहद लापरवाह, फिजूल खर्च और आराम पसंद है। यासर से वह अक्सर डांटने वाले लहजे में बात करते थे। ऐसे में यासर सुर्ख चेहरा लेकर दांए-बाएं हो जाता था और उसकी दुल्हन की आँखों से बेचैनी जाहिर होने लगती थी।
एक रोज आपा नजीरां अपनी इकलौती बेटी से मिलने के लिए लाहौर से गुजरांवाला गई। शाम को जब वापस आई तो घर की फिजां में अजीब-सा खिंचाव और सूनापन महसूस हुआ। सोबिया उदास-सी बैठी थी। बाजी जी ओढ़नी के पल्लू से आंखें पोंछ रही थी।
'क्या हुआ सोबिया बेटे'? आपा नजीरां ने तड़प कर पूछा। बाजीजी तो आंसू बहाकर बाहर चली गई। सोबिया ने बताया कि भैया और भाभी घर छोड़कर चले गए। आपा बेदम सी होकर कुर्सी पर बैठ गईं। जैसे किसी ने उसके कलेजे को मसल डाला था।
वह जवानी में ही विधवा हो गई थी। इन लोगों को ही अपना सब कुछ समझ लिया था। यासर को उसने अपने बच्चों की तरह पाला-पोसा था। अपनी सारी मुहब्बतें उसने उसके नाम कर दी थी। उसके यूं अचानक चले जाने की खबर ने आपा नजीरां को अधमुआ कर दिया था। उसने सोबिया से तफसील से पूछा तो पता चला कि सुबह मामूली बात पर झगड़ा हो गया सेमी यासर के लिए चाय बना रही थी और चूल्हा बंद करना भूल गई। इता साहब ने देख लिया। वह गुस्से में बोलने लगे। इतने में यासर कमरे से निकल आया। दबे-दबे लहजे में एक-दो बातें उसके मुंह से भी निकल गईं। इता साहब का पारा और चढ़ गया। उन्होंने यासर से कहा अगर वह तंग है तो बेशक अलग हो जाए।
वह जवानी में ही विधवा हो गई थी। इन लोगों को ही अपना सब कुछ समझ लिया था। यासर को उसने अपने बच्चों की तरह पाला-पोसा था। अपनी सारी मुहब्बतें उसने उसके नाम कर दी थी। उसके यूं अचानक चले जाने की खबर ने आपा नजीरां को अधमुआ कर दिया था। उसने सोबिया से तफसील से पूछा तो पता चला कि सुबह मामूली बात पर झगड़ा हो गया सेमी यासर के लिए चाय बना रही थी और चूल्हा बंद करना भूल गई। इता साहब ने देख लिया। वह गुस्से में बोलने लगे। इतने में यासर कमरे से निकल आया। दबे-दबे लहजे में एक-दो बातें उसके मुंह से भी निकल गईं। इता साहब का पारा और चढ़ गया। उन्होंने यासर से कहा अगर वह तंग है तो बेशक अलग हो जाए।
यासर ने कहा. 'आप सीधी तरह क्यों नहीं। कहते कि 'मुझे अलग करना चाहते हैं। वह पांव पटकता अपने कमरे में चला गया। मियाँ-बीवी एक-दो घंटे कमरे में बंद रहे। फिर सामान बांधने लगे। वालिदा ने बेटे और बहू को बहुत रोकना चाहा। लेकिन उनकी एक न चली। सोबिया का रोना-धोना भी बेकार गया और यों शादी के सिर्फ सात महीने बाद यासर पिता के घर से चला गया।
यासर और सेमी के बाद घर एकदम वीरान हो गया। इता साहब दुकान से आने के बाद अपने कमरे में घुस जाते। सोबिया चुपचाप बैठी किताबों में गुम हो जाती। यासर की वालिदा सारा दिन रोती रहती। दो तीन हफ्ते गुजर गए, लेकिन यासर की कोई खैर-खबर नहीं आई। इता साहब ऊपरी तौर पर बेपरवाह बने थे, लेकिन बेटे और बहू की जुदाई ने उन्हें अंदर से हिलाकर रख दिया था। तीसरे हफ्ते यासर के एक दोस्त ने क्वेटा QUETA से फोन किया और बताया कि यासर उसके पास है और यहाँ एक दफ्तर में नौकरी कर ली है।
यासर की खबर मिलते ही सारे घरवाले बेताब हो गए। यासर की वालिदा तो उड़कर उसके पास पहुंच जाना चाहती थी। वह अपने भांजे को साथ लेकर क्वेटा QUETA रवाना हो गई।
यासर और सेमी के बाद घर एकदम वीरान हो गया। इता साहब दुकान से आने के बाद अपने कमरे में घुस जाते। सोबिया चुपचाप बैठी किताबों में गुम हो जाती। यासर की वालिदा सारा दिन रोती रहती। दो तीन हफ्ते गुजर गए, लेकिन यासर की कोई खैर-खबर नहीं आई। इता साहब ऊपरी तौर पर बेपरवाह बने थे, लेकिन बेटे और बहू की जुदाई ने उन्हें अंदर से हिलाकर रख दिया था। तीसरे हफ्ते यासर के एक दोस्त ने क्वेटा QUETA से फोन किया और बताया कि यासर उसके पास है और यहाँ एक दफ्तर में नौकरी कर ली है।
यासर की खबर मिलते ही सारे घरवाले बेताब हो गए। यासर की वालिदा तो उड़कर उसके पास पहुंच जाना चाहती थी। वह अपने भांजे को साथ लेकर क्वेटा QUETA रवाना हो गई।
रुखसत के वक्त आपा नजीरां ने उन्हें ताकीद की थी कि हर सूरत में वह यासर को घर ले आए। लेकिन इता साहब की तरह यासर भी फैसला कर चुका था कि अब वह कभी पिता के घर वापस नहीं आएगा। दो हफ्ते बाद यासर की वालिदा आंखों में आंसू और मायूसी समेटे लाहौर वापस आ गई।
यासर के चले जाने के बाद आपा नजीरां ने भी घर छोड़ दिया। उसकी बहन ने उसे गुजरवालां बुला लिया। दो-तीन माह बाद वह लोग गुजरांवला से मुजफ्फरनगर चले गए। यहाँ आपा नजीरां तकरीबन पांच साल अपनी बहन और भांजे के साथ रहीं। इस दौरान कभी-कभी उसे इता मुहम्मद साहब और उसके घरवालों की खबर मिल जाती थी। उसे यह भी पता चला कि यासर क्वेटा में ही था और उसके दो बच्चे हो गए थे। पांच साल का खुर्रम और चार साल का शहजाद।
आपा नजीरां तकरीबन पांच साल अपनी बहन और भांजे के साथ मुजफ्फरनगर में रहीं। फिर बहन का देहांत हो गया। भांजा क्वेटा चला गया। आपा नजीरां फिर अकेली रह गईं।
इता साहब की ख्वाहिश और अपनी जरूरत के पेशे-नजर आपा नजीरा लाहौर वापस आ गई और एक बार फिर इता साहब के घर की रसोई संभाल ली। पुराने घर में वापस आते ही पुराने जख्म ताजा हो गए। यासर की याद शिद्दत से आने लगी ।
संयोगवश उन्हीं दिनों दिसंबर की छुट्टियाँ थी। सोबिया और यासर की वालिदा क्वेटा जा रही थीं। आपा नजीरां भी उनके साथ गई। यासर ने इतने सालों के बाद आपा नजीरां को देखा तो आंखों में आंसू भर आए। आपा नजीरां भी सजल नेत्र हो गईं। उसने आगे बढ़कर दोनों हाथों से यासर को प्यार किया उसका माथा चूमा | यासर को गले लगा लिया। यासर के बीवी-बच्चों ने भी गर्मजोशी से आपा का स्वागत किया। यासर पहले से कुछ मोटा नजर आ रहा था। उसके चेहरे पर नजर की ऐनक का इजाफा हो गया था। कनपटियों पर भी बाल सफेद नजर आने लगे थे।
आपा नजीरां को यासर के घर में ठहरे आज तीसरा दिन था। वह भारी-भरकम लिहाफ ओढ़े कमरे में सो रही थी। अचानक कुछ आवाजें सुनकर उनकी आंख खुल गई। उन्होंने कान लगाकर सुना। यासर की आवाज थी।
वह बड़े बेटे खुर्रम के बारे में बात कर रहा था। कह रहा था, 'सेमी, अब वह दूध पीता बच्चा नहीं है। उस में समझ होनी चाहए। अभी परसों की बात है, मेरे सामने उसने गर्म पानी का नल खोला और मुंह हाथ धोकर चलता बना। नल बंद करने में भला कितना समय लगता है। बेपरवाही क हद है। टीवी लगा है, ट्रांसमीशन खत्म हो जाता है लेकिन टीवी चलता रहता है। हीटर ऑन है तो रात-दिन चलता रहता है। बत्ती जलाई है तो बुझाना याद नहीं। तुम ध्यान नहीं देती हो। इस तरह कब तक चलेगा ? मेरा तो बोल-बोल कर दिमाग खाली हो गया है।
सेमी ने कहा, 'यासर ! अपनी तरफ से तो बहुत एहतियात करते हैं। किसी वक्त इंसान भूल भी जाता है। ‘किसी वक्त?' यासर ने व्यंग्य से कहा, 'मैं तो दिन रात एक ही तमाशा देखता हूं। सच पूछो तो तुम्हारे लाड़ प्यार ने बिल्कुल ही बिगाड़ दिया है दोनों को।' 'यासर! बच्चे हैं। अहिस्ता-आहिस्ता समझ जाएंगे। सेमी ने धीरे से कहा।
'समझ जायेंगे। मुझे तो लगता है, आहिस्ता आहिस्ता बेपरवाह और अहमक हो रहे हैं।, यह देखो इस महीने का बजट। पिछले महिने की तुलना में इस महिने का बिल ज्यादा है। अगर यही रफ्तार रही तो सात-आठ माह में आधी तनख्वाह बिलों के भेंट चढ़ जाएगी। फिर चला लेना खुद ही इस घर को। 'आहिस्ता बोलो' सेमी ने कहा, आपा नजीरां छोटे कमरे में सो रही हैं। सुन लेंगी...' अपना जिक्र सुनते ही आपा नजीरां वापस मुड़ने लगी पर अंधेरे में किसी चीज से ठोकर लगी और जोर का खटका हुआ। वह अपनी जगह सुन्न खड़ी रह गईं। चंद ही लम्हे बाद ड्राइंग रूम का दरवाजा खुला और आपा नजीरां ने यासर को अपने सामने खड़े देखा... उसकी आंखों में हैरत थी।
'आ.. आपा...नजीरां, तम यहाँ? यासर ने कहा। आपा नजीरा खामोश खड़ी रहीं। उनका दिल चाहा कि वह यहाँ अपनी मौजूदगी के लिए कोई बहाना न बनाए। यासर को साफ बात बता दे कि उसकी बातें सुन चुकी है और फिर उसने ऐसा ही किया। वह जज्बात में बोझिल पर बेहद ठहरी हुई आवाज में बोली, ' यासर मैंने तुम्हारी सारी बातें सुनी हैं और सुनकर मुझे लगा कि यह बातें मैंने पहले भी कहीं सुनी हैं।
'मम... मैं समझा नहीं आपा?' यासर ने कहा। अब सेमी भी उसके पीछे आ खड़ी हुई थी।
आपा नजीरा की आंखों में आसुओं की चमक थी। वह बोली, 'जो बातें तुम आज कर रहे हो, यही बातें तुम्हारे अब्बा कहा करते थे। उस वक्त ये बातें तुम्हे बुरी लगती थी...तुम कहा करते थे...अब्बा जान पर 'रोक टोक' का खब्त सवार हो गया है। याद करो, यही कहा करते थे न तुम ।
यासर खामोश रहा। उसके चेहरे पर एकदम ही परेशानी के बादल उमड़ आए। वह खोयी-खोयी नजरो से आपा नजीरां की तरफ देख रहा था। आपा नजीरां ने कहा, 'जो बातें तुम अभी कह रहे थे यह बुरी नहीं हैं। यह पहले भी बुरी नहीं थीं, लेकिन तुमने इन्हें बुरा समझा और लड़-झगड़ कर घर से निकल आए। जरा ठंडे दिमाग से सोचो, तुम्हें ऐसा करना चाहिए था ?' यासर अब भी कुछ नहीं बोला, लेकिन अब आपा नजीरां की तरह उसकी आंखों में भी आंसुओं की चमक प्रकट हो चुकी थी। आपा नजीरां ने बड़ी मुहब्बत से उसके कंधे पर हाथ रखा और रुंधी हुई आवाज़ में बोली, 'चलो पुत्तर! घर चलो! इन गुजरे बरसों में एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा कि जब तुम्हारे पिता ने तुम्हें याद न किया हो और खिड़की खोल कर तुम्हारी राह न देखी हो!...
यासर कितनी ही देर गुमसुम खड़ा रहा। फिर उसने स्वीकृति में सिर हिला दिया।
ROK-TOK
Aapa najeeraan baavarcheekhaane mein bartan dho rahee thee. Drawingaroom mein ghar ke sab log jama the aur hans-bol rahe the. Unakee aavaajen aapa najeeraan ke lie ek aise dilapasand nagamen kee tarah theen, jo jab bhee bajata hai, kaanon mein ras gholata hai. Poore bees baras ho gae the, use is ghar mein kaam karate hue. Ab to vah is ghar kee sadasya ban chukee thee. Chhote-bade sab use aapa najeeraan kahate the. Yah parivaar kul chaar sadasyon ka tha. Ita muhammad saahab, unakee begam kulabh aur do bachche yaasar aur sobiya. Haal hee mein ek aur sadasy ka ijaapha hua tha aur vah thee yaasar kee dulhan semee.
Semee bhee yaasar aur sobiya kee tarah ek hansamukh ladakee thee. Ve teenon milakar ghar mein raunak lagae rakhate the. Us vakt bhee ve shaayad kairam bord khel rahe the. yaasar kee vaalada, jinhen aapa najeeraan baajee jee kahakar bulaatee thee, shaayad chhat par dhoop sekane gaee thee. achaanak baaharee daravaaje kee taraph se ek robadaar aavaaj goonjee aur aapa najeeraan jaise thithak kar rah gaee.
Yah aavaaj ita muhammad saahab kee thee. Vah khaase udeen najar aa rahe the. drawing room mein pahunchate hee vah bole, yahaan sab maje se baithe hain. vahaan kamare mein teevee, lait, gais, heetar sab kuchh chal raha hai. bhee, had hotee hai begaravaahee kee. ghar ka kharch chalaana pade to kuchh ehasaas ho tum ko. oh sorry abbaajee. Main bhool gaya tha yaasar ne apanee jagah se uthate hue kaha.
Yaad rahe bhee kaise. yaad karane kee koshish hee nahin karate tum. Samajhate ho main bakavaas kar raha hoon... karata rahoon... kya phark padata hai. Itane mein yaasar kee vaalida bhee neeche aa gaeen. unhonne shauhar ka gussa thanda karane kee koshish karate hue kaha, chalie, chhodie bhee, kisee vakt banda bhool bhee jaata hai. Kisee vakt! ita saahab ne vyangy se kaha, mujhe pandrah saal ho gae hain tum logon ko bak-bak karate hue. yahaan kisee kee samajh mein kuchh nahin aata. vah paanv patakate hue apane kamare mein chale gae. raat nau-das baje ke kareeb jab aapa najeeraan ghar ke kaamakaaj se phaarig ho kar apane kamare mein pahunchee to yaasar bhee vaheen chala aaya. Vah bachapan se usakee aadat thee.
Jab use pita se kisee baat par daant padatee thee, to vah panaah ke lie aapa najeeraan ke paas chala aaya karata tha. Aapa! aaj dil bahut pareshaan hai, vah usake kareeb kursee par baithate hue bola, jee chaahata hai, sab kuchh chhod kar kaheen nikal jaoon. ‘haay, mere puttar! aisee baaten muh se nahin nikaalate. Aapa najeeraan ne use toka. Yah koee jindagee hai aapa! ghar mein rahate hue yon lagata hai, jaise skool mein rah rahen hon. abbaajee na hue haid maastar ho gae. har baat par paabandee. har kaam par rok-tok. Yah teevee kyon chal raha hai? yah lait kyon jal rahee hai? yah daravaaja band kyon nahin kiya? yah daravaaja khola kyon nahin? gaadee mein paanee kyon nahin daala? motar saikil ka tokan kyon nahin lagavaaya? jara-jara see baat par daantane lagate hain. puttar jee! bade chhoton ko samajhaaya hee karate hain, aapa najeeraan ne naramee se kaha, aisee baaton ka bura nahin maanana chaahie. lekin aapa ab main bachcha nahin hoon ki har vakt rok-tok kee jae. Beevee ke saamane beijjatee karate hain. Kal bachche honge to unake saamane bhee yahee kuchh kahenge. Gharon mein to chhotee-motee kotaahiyaan, beparavaahiyaan sab se hotee hai, lekin in sabaka yah matalab to nahin ki kisee ek ko har vakt tauheen ka nishaana banaaya jae. "tum theek kahate ho yaasar, kintu bhaee saahab bhee apanee jagah galat nahin hain. aapa najeeraan ne javaab diya. Teen chaar din baad kee baat hai. Aapa najeeraan baavarcheekhaane mein masarooph theen ki baraamade kee taraph se shor utha. is baar betee sobiya par bigad rahe the. unaka khyaal tha ki vah raat chhat ka nal khula chhod aaee thee | aur saaree raat paanee bahata raha hai. Sobiya ne apanee saphaee pesh karate hue bataaya ki raat ko bhaeejaan chhat par gae the. Bhaeejaan ka jikr par ita saahab ka paara kuchh aur chadh gaya aur bole, yah ladaka to hai hee nakaara . na vakt par sona na vakt par jaagana. yaasar kee vaalida ne aade aate hue kaha, chhodiye bhee. jara-jara see baat par na bigada karen. Ita saahab garaje, tumhen to har baat jara-jara see lagatee hai. aadhee aamadanee to bilon mein ud jaatee hai hamaaree.. mujhamen to ab taakat nahin rahee yah phijoolakharchee bardaasht karane kee yah main hee jaanata hoon ki ghar kee gaadee kaise chal rahee hai. aapa najeeraan dekh rahee theen ki ghar mein tanaav kee sthitiyaan din-pratidin badh rahee hai. ita saahab tape-tape se rahate the.
Vah kanjoos nahin the, lekin phijoolakharchee ke sakht khilaaph the. aamadanee aur kharchon mein asamaanata ke sabab yah mukhaalaphat aur badh gaee thee. Apane bete yaasar se ita saahab ko khaas shikaayat thee. unakee raay thee ki vah behad laaparavaah, phijool kharch aur aaraam pasand hai. yaasar se vah aksar daantane vaale lahaje mein baat karate the. aise mein yaasar surkh chehara lekar daane-baen ho jaata tha aur usakee dulhan kee aankhon se bechainee jaahir hone lagatee thee. ek roj aapa najeeraan apanee ikalautee betee se milane ke lie laahaur se gujaraanvaala gaee. shaam ko jab vaapas aaee to ghar kee phijaan mein ajeeb-sa khinchaav aur soonaapan mahasoos hua. sobiya udaas-see baithee thee. Baajee jee odhanee ke palloo se aankhen ponchh rahee thee. kya hua sobiya bete? aapa najeeraan ne tadap kar poochha. baajeejee to aansoo bahaakar baahar chalee gaee. sobiya ne bataaya ki bhaiya aur bhaabhee ghar chhodakar chale gae. aapa bedam see hokar kursee par baith gaeen. Jaise kisee ne usake kaleje ko masal daala tha.
Vah javaanee mein hee vidhava ho gaee thee. in logon ko hee apana sab kuchh samajh liya tha. yaasar ko usane apane bachchon kee tarah paala-posa tha. apanee saaree muhabbaten usane usake naam kar dee thee. usake yoon achaanak chale jaane kee khabar ne aapa najeeraan ko adhamua kar diya tha. Usane sobiya se taphaseel se poochha to pata chala ki subah maamoolee baat par jhagada ho gaya semee yaasar ke lie chaay bana rahee thee aur choolha band karana bhool gaee. ita saahab ne dekh liya. vah gusse mein bolane lage. itane mein yaasar kamare se nikal aaya. dabe-dabe lahaje mein ek-do baaten usake munh se bhee nikal gaeen. Ita saahab ka paara aur chadh gaya. unhonne yaasar se kaha agar vah tang hai to beshak alag ho jae. Yaasar ne kaha. Aap seedhee tarah kyon nahin. kahate ki mujhe alag karana chaahate hain. vah paanv patakata apane kamare mein chala gaya. miyaan-beevee ek-do ghante kamare mein band rahe. phir saamaan baandhane lage.
Vaalida ne bete aur bahoo ko bahut rokana chaaha. Lekin unakee ek na chalee. sobiya ka rona-dhona bhee bekaar gaya aur yon shaadee ke sirph saat maheene baad yaasar pita ke ghar se chala gaya. yaasar aur semee ke baad ghar ekadam veeraan ho gaya. Ita saahab dukaan se aane ke baad apane kamare mein ghus jaate. sobiya chupachaap baithee kitaabon mein gum ho jaatee. Yaasar kee vaalida saara din rotee rahatee. do teen haphte gujar gae, lekin yaasar kee koee khair-khabar nahin aaee. Ita saahab ooparee taur par beparavaah bane the, lekin bete aur bahoo kee judaee ne unhen andar se hilaakar rakh diya tha. teesare haphte yaasar ke ek dost ne kveta se phon kiya aur bataaya ki yaasar usake paas hai aur yahaan ek daphtar mein naukaree kar lee hai. yaasar kee khabar milate hee saare gharavaale betaab ho gae. yaasar kee vaalida to udakar usake paas pahunch jaana chaahatee thee. Vah apane bhaanje ko saath lekar kveta ravaana ho gaee. rukhasat ke vakt aapa najeeraan ne unhen taakeed kee thee ki har soorat mein vah yaasar ko ghar le aae. lekin ita saahab kee tarah yaasar bhee phaisala kar chuka tha ki ab vah kabhee pita ke ghar vaapas nahin aaega. do haphte baad yaasar kee vaalida aankhon mein aansoo aur maayoosee samete laahaur vaapas aa gaee. yaasar ke chale jaane ke baad aapa najeeraan ne bhee ghar chhod diya.
Usakee bahan ne use gujaravaalaan bula liya. Do-teen maah baad vah log gujaraanvala se mujaphpharanagar chale gae. yahaan aapa najeeraan takareeban paanch saal apanee bahan aur bhaanje ke saath raheen. is dauraan kabhee-kabhee use ita muhammad saahab aur usake gharavaalon kee khabar mil jaatee thee. use yah bhee pata chala ki yaasar kveta mein hee tha aur usake do bachche ho gae the. paanch saal ka khurram aur chaar saal ka shahajaad. aapa najeeraan takareeban paanch saal apanee bahan aur bhaanje ke saath mujaphpharanagar mein raheen. phir bahan ka dehaant ho gaya. bhaanja kveta chala gaya. Aapa najeeraan phir akelee rah gaeen. ita saahab kee khvaahish aur apanee jaroorat ke peshe-najar aapa najeera laahaur vaapas aa gaee aur ek baar phir ita saahab ke ghar kee rasoee sambhaal lee. Puraane ghar mein vaapas aate hee puraane jakhm taaja ho gae. Yaasar kee yaad shiddat se aane lagee . sanyogavash unheen dinon disambar kee chhuttiyaan thee.
Sobiya aur yaasar kee vaalida kveta ja rahee theen. Aapa najeeraan bhee unake saath gaee. yaasar ne itane saalon ke baad aapa najeeraan ko dekha to aankhon mein aansoo bhar aae. aapa najeeraan bhee sajal netr ho gaeen. Usane aage badhakar donon haathon se yaasar ko pyaar kiya usaka maatha chooma | yaasar ko gale laga liya. yaasar ke beevee-bachchon ne bhee garmajoshee se aapa ka svaagat kiya.
Yaasar pahale se kuchh mota najar aa raha tha. usake chehare par najar kee ainak ka ijaapha ho gaya tha. kanapatiyon par bhee baal saphed najar aane lage the. Aapa najeeraan ko yaasar ke ghar mein thahare aaj teesara din tha. Vah bhaaree-bharakam lihaaph odhe kamare mein so rahee thee. Achaanak kuchh aavaajen sunakar unakee aankh khul gaee. unhonne kaan lagaakar suna. yaasar kee aavaaj thee. vah bade bete khurram ke baare mein baat kar raha tha. kah raha tha, semee, ab vah doodh peeta bachcha nahin hai. us mein samajh honee chaahe. abhee parason kee baat hai, mere saamane usane garm paanee ka nal khola aur munh haath dhokar chalata bana. Nal band karane mein bhala kitana samay lagata hai. beparavaahee ka had hai. Teevee laga hai, traansameeshan khatm ho jaata hai lekin teevee chalata rahata hai. heetar on hai to raat-din chalata rahata hai. battee jalaee hai to bujhaana yaad nahin. tum dhyaan nahin detee ho. is tarah kab tak chalega ? mera to bol-bol kar dimaag khaalee ho gaya hai. semee ne kaha, yaasar ! apanee taraph se to bahut ehatiyaat karate hain. kisee vakt insaan bhool bhee jaata hai. ‘kisee vakt? yaasar ne vyangy se kaha, main to din raat ek hee tamaasha dekhata hoon. sach poochho to tumhaare laad pyaar ne bilkul hee bigaad diya hai donon ko. yaasar! bachche hain. Ahista-aahista samajh jaenge. semee ne dheere se kaha.
Samajh jaayenge. Mujhe to lagata hai, aahista aahista beparavaah aur ahamak ho rahe hain., yah dekho is maheene ka bajat. Pichhale mahine kee tulana mein is mahine ka bil jyaada hai. Agar yahee raphtaar rahee to saat-aath maah mein aadhee tanakhvaah bilon ke bhent chadh jaegee. phir chala lena khud hee is ghar ko. aahista bolo semee ne kaha, aapa najeeraan chhote kamare mein so rahee hain. Sun lengee... apana jikr sunate hee aapa najeeraan vaapas mudane lagee par andhere mein kisee cheej se thokar lagee aur jor ka khataka hua. vah apanee jagah sunn khadee rah gaeen.
Chand hee lamhe baad drawing room ka daravaaja khula aur aapa najeeraan ne yaasar ko apane saamane khade dekha... usakee aankhon mein hairat thee. aa.. aapa...najeeraan, tam yahaan? yaasar ne kaha.
Aapa najeera khaamosh khadee raheen. unaka dil chaaha ki vah yahaan apanee maujoodagee ke lie koee bahaana na banae. Yaasar ko saaph baat bata de ki usakee baaten sun chukee hai aur phir usane aisa hee kiya. vah jajbaat mein bojhil par behad thaharee huee aavaaj mein bolee, yaasar mainne tumhaaree saaree baaten sunee hain aur sunakar mujhe laga ki yah baaten mainne pahale bhee kaheen sunee hain. Mam... main samajha nahin aapa? Yaasar ne kaha.
Ab semee bhee usake peechhe aa khadee huee thee. aapa najeera kee aankhon mein aasuon kee chamak thee. vah bolee, jo baaten tum aaj kar rahe ho, yahee baaten tumhaare abba kaha karate the. us vakt ye baaten tumhe buree lagatee thee...tum kaha karate the...abba jaan par rok tok ka khabt savaar ho gaya hai. Yaad karo, yahee kaha karate the na tum . yaasar khaamosh raha. usake chehare par ekadam hee pareshaanee ke baadal umad aae. vah khoyee-khoyee najaro se aapa najeeraan kee taraph dekh raha tha. aapa najeeraan ne kaha, jo baaten tum abhee kah rahe the yah buree nahin hain. yah pahale bhee buree nahin theen, lekin tumane inhen bura samajha aur lad-jhagad kar ghar se nikal aae. jara thande dimaag se socho, tumhen aisa karana chaahie tha ? Yaasar ab bhee kuchh nahin bola, lekin ab aapa najeeraan kee tarah usakee aankhon mein bhee aansuon kee chamak prakat ho chukee thee.
Aapa najeeraan ne badee muhabbat se usake kandhe par haath rakha aur rundhee huee aavaaz mein bolee, chalo puttar! ghar chalo! in gujare barason mein ek din bhee aisa nahin gujara ki jab tumhaare pita ne tumhen yaad na kiya ho aur khidakee khol kar tumhaaree raah na dekhee ho!... yaasar kitanee hee der gumasum khada raha. Phir usane sveekrti mein sir hila diya.
SARAL VICHAR
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