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क्यों और कैसे बनती हैं भावी भावनाएँ - भावनाएं कैसे व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करती हैं? | KYO OR KAISE BANTI HAI BHAVI-BHAVNAYEN ? How To Emotions Affect Personal Life In Hindi By Saral Vichar

 

भावनाएं कैसे व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करती हैं? | HOW TO EMOTIONS AFFECT PERSONAL LIFE?  - www.saralvichar.in


भावी- जिसका होना निश्चित हो; जिसके होने की पूरी संभावना हो 2. जो टले नहीं; अटल 3. जिसे टाला न जा सके, अनिवार्य।

परीक्षित की भावी
कलि (कलयुग) के गिड़गिड़ाने पर उन्हें उस पर दया आ गई और उन्होंने उसके रहने के लिये ये स्थान बता दिए - जुआ, स्त्री, मद्य, हिंसा और स्वर्ण। इन पंच स्थानों को छोड़कर अन्यत्र न रहने की कलि ने प्रतिज्ञा की। राजा ने पंच (पांच) स्थानों के साथ साथ ये पंच वस्तुएँ भी उसे दे डालीं - मिथ्या, मद, काम, हिंसा और बैर। (झूठ, अहंकार , कामना (इच्छा) लड़ाई, दुश्मनी)


एक दिन राजा परीक्षित जंगल में शिकार खेलने गया तो भटक गया। बहुत प्यास लगी। एक ऋषि समाधि में बैठे थे। परीक्षित ने उनसे पानी मांगा पर समाधि में लीन ऋषि को सुनाई नहीं पड़ा। मुकुटधारी राजा,(जिस मुकुट में स्वर्ण था, स्वर्ण में कलयुग था) राजाई के दम्भ में गुस्से में आ गए और उनके गले में मरा हुआ सांप डाल दिया। उस समय ऋषि के पुत्र स्नान करने गए हुए थे । उनको वहां ही किसी ने यह समाचार सुनाया तो ऋषि-पुत्र ने जल अंजलि में भरकर श्राप दे दिया कि राजा की मौत सातवें दिन तक्षक नाग के काटने से हो जाएगी।
ऋषि जब समाधि से उठे तो उन्हें ज्ञात हुआ कि राजा परीक्षित को श्राप मिला है उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि कलयुग के प्रभाव से यह सब हुआ है तो उन्होंने यह खबर एक ऋषि द्वारा राजा परीक्षित तक पहुंचाई।
भावी तो अटल होती है। राजा परीक्षित ने बहुत उपाय किए पर तक्षक नाग ने उन्हें काट लिया। कहते हैं... राजा परीक्षित ने 7 दिन भगवत कथा सुनी थी और वह मोक्ष को प्राप्त हुए।

रामचंद्र जी की भावी

श्रृंगी ऋषि पत्नी के वियोग में व्याकुल थे। विष्णु भगवान हंस दिए तो श्रृंगी ऋषि ने कहा, एक जन्म में तुम्हें भी पत्नी के वियोग में पीड़ा सहन करनी पड़ेगी।

लक्ष्मण जी की भावी
शबरी के बेर खाते हुए उनका भाव था कि यह जूठे बेर क्यों दे रही है। इसलिए उनको भी वनस्पति की जरूरत पड़ी। संजीवनी बूटी के लिए प्राण तरसे। कहते हैं यह वही बेर थे जो संजीवनी बूटी बने। जो उस समय लक्ष्मण नहीं खाए थे, वह बाद में उनके प्राणों के रक्षक बने।


हनुमान जी की भावी
हनुमान जी बचपन में भी बहुत शक्तिशाली थे। उनको मजाक सूझता तो जाकर ऋषि-मुनियों को सताते और उन पर अपना जोर आजमाते। ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि तुम अपनी शक्ति भूल जाओगे, फिर कोई तुम्हें याद दिलाएगा तभी याद आएगा।
जब उन्हें लंका जाना था, समुद्र पार करने, तब जामवंत ने उन्हें याद दिलाया कि वे पवन पुत्र हैं। तब वे उड़ कर जा सके।

सुदामा की भावी

एक बार जंगल में भूख लगने पर सुदामा ने कृष्ण के हिस्से के चने खा गए तो गुरू माता के श्राप से सुदामा की दरिद्रता भावी बन गई।

नल-नील की भावी
बचपन में दोनों भाई ऋषि-मुनियों को बहुत सताते थे और सामान समुद्र में फेंक देते थे। उन्होंने श्राप दिया कि तुम्हारी फेंकी हुई चीजें नहीं डूबेंगी तो पत्थर भी तैर गए । नल नील वही थे, जिसने रामसेतु बनाया। जिनके फेंके हुए पत्थर तैर जाते थे।

यह भावी क्यों बनती है?

जब हम किसी की परिस्थिति जाने बिना उन पर हंसते हैं कि यह कितना बुरा है, हम तो ऐसे नहीं हैं। जब हमें गर्व होता है।
जो अपनी शक्तियों का, ताकत का गलत प्रयोग करता है, उन्हीं परिस्थितियों का सामना उसे भी कभी ना कभी करना पड़ता है। यही भावी होती है।

SARAL VICHAR


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