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90 की उम्र में एक नई शुरुआत | 90 KI UMRA ME EK NAYI SHURUAAT | A New Beginning At The Age Of 90 In Hindi By Saral Vichar

90 की उम्र में एक नई शुरुआत | 90 KI UMRA ME EK NAYI SHURUAAT | A New Beginning At The Age Of 90 In Hindi By Saral Vichar

स्वामी रामतीर्थ भारत के बाहर यात्रा में पहली दफा गये थे। जिस जहाज पर वे यात्रा कर रहे थे, उस पर एक बूढ़ा जर्मन था, जिसकी उम्र कोई 90 साल होगी। उसके सारे बाल सफेद हो चुके थे, उसकी आंखों में 90 साल की स्मृति ने गहराइयां भर दी थीं, उसके चेहरे पर झुर्रियां थीं लम्बे अनुभवों की; लेकिन वह जहाज के डेक पर बैठकर चीनी भाषा सीख रहा था!

चीनी भाषा सीखना साधारण बात नहीं है, क्योंकि चीनी भाषा के पास कोई वर्णमाला नहीं है, कोई अ ब स नहीं होता चीनी भाषा के पास। वह pictorial (चित्रमय) लैंग्वेज है, उसके पास तो चित्र हैं। साधारण आदमी को साधारण ज्ञान के लिए कम से कम पांच हजार चित्रों का ज्ञान चाहिए तो एक लाख चित्रों का ज्ञान हो, तब कोई आदमी चीनी भाषा का पंडित हो सकता है। दस—पन्द्रह वर्ष का श्रम मांगती है चीनी भाषा। 90 साल का बूढ़ा सुबह से बैठकर सांझ तक चीनी भाषा सीख रहा है!

रामतीर्थ बेचैन हो गये। यह आदमी पागल है, 90 साल की उस में चीनी भाषा सीखने बैठा है, कब सीख पायेगा? आशा नहीं कि मरने के पहले सीख जायेगा। और अगर कोई दूर की कल्पना भी करे कि यह आदमी जी जायेगा दस—पन्द्रह साल, सौ साल पार कर जायेगा, जो कि भारतीय कभी कल्पना नहीं कर सकता कि सौ साल पार कर जायेगा। 35 साल पार करना तो मुश्किल हो जाता है, सौ कैसे पार करोगे? लेकिन समझ लें भूल—चूक भगवान की कि यह सौ साल से पार निकल जायेगा तो भी फायदा क्या है? जिस भाषा को सीखने में 15 वर्ष खर्च हों, उसका उपयोग भी तो दस—पच्चीस वर्ष करने का मौका मिलना चाहिए। सीखकर भी फायदा क्या होगा?

दो तीन दिन देखकर रामतीर्थ की बेचैनी बढ़ गयी। वह तो आंख उठाकर भी नहीं देखता था कि कहां क्या हो रहा है, वह तो अपने सीखने में लगा था। तीसरे दिन उन्होंने जाकर उसे हिलाया और कहा कि महाशय, क्षमा करिये, मैं यह पूछता हूं कि आप यह क्या कर रहे हैं? इस उम्र में चीनी भाषा सीखने बैठे हैं? कब सीख पाइयेगा? और सीख भी लिया तो इसका उपयोग कब करियेगा? आपकी उम्र क्या है?

तो उस बूढ़े ने कहा, उम्र? मैं काम में इतना व्यस्त रहा कि उम्र का हिसाब रखने का कुछ मौका नहीं मिला। उम्र अपना हिसाब रखती होगी। हमें फुर्सत कहां कि उम्र का हिसाब रखें। और फायदा क्या है उम्र का हिसाब रखने में? मौत जब आनी है, तब आनी है। तुम चाहे कितने हिसाब रखो, कि कितने हो गये, उससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। मुझे फुर्सत नहीं मिली उम्र का हिसाब रखने की, लेकिन जरूर नब्बे तो पार कर गया हूं।

रामतीर्थ ने कहा कि फिर यह सीखकर क्या फायदा? बूढ़े हो। अब कब सीख पाओगे? उस बूढ़े आदमी ने कहा- मरने का मुझे ख्याल नहीं आता, जब तक मैं सीख रहा हूं। जब सीखना खत्म हो जाएगा तो सोचूंगा मरने की बात। अभी तो सीखने में जिंदगी लगा रहा हूं अभी तो मैं बच्चा हूं क्योंकि मैं सीख रहा हूं। बच्चा सीखता है.. मैं सीख रहा हूं इसलिए बच्चा हूं।

यह आध्यात्मिक जगत में परिवर्तन हो गया।

उसने कहा, चूंकि मैं सीख रहा हूं और अभी सीख नहीं पाया, अभी तो जिंदगी की पाठशाला में प्रवेश किया है। अभी तो बच्चा हूं अभी से मरने की कैसे सोचें? जब सीख लूंगा, तब सोचूंगा मरने की बात।

फिर उस बूढ़े ने कहा, मौत हर रोज सामने खड़ी है। जिस दिन पैदा हुआ था, उस दिन उतनी ही सामने खड़ी थी, जितनी अभी खड़ी है। अगर मौत से डर जाता तो उसी दिन सीखना बंद कर देता। सीखने का क्या फायदा था? 

मौत आ सकती है कल, लेकिन 90 साल का मेरा अनुभव कहता है कि मैं 90 साल मौत को जीत गया हूं। रोज मौत का डर रहा है कि कल आ जायेगी, लेकिन आयी नहीं। 90 साल तक मौत नहीं आयी तो कल भी कैसे आयेगी? अनुभव को मानता हूं, 90 साल तक डर फिजूल था। वह बूढ़ा पूछने लगा रामतीर्थ से- आपकी उम्र क्या है?

रामतीर्थ तो घबरा ही गये थे उसकी बात सुनकर। उनकी उम्र केवल 30 वर्ष थी।

उस बूढ़े ने कहा, तुम्हें देखकर, तुम्हारे भय को देखकर मैं कह सकता हूं, भारत बूढ़ा क्यों हो गया। तीस साल का आदमी मौत की सोच रहा है! मौत की सोचता कोई तब है, जब मर जाता है। तीस साल का आदमी सोचता है कि सीखने से क्या फायदा, मौत करीब आ रही है! यह आदमी जवान नहीं रहा। उस बूढ़े ने कहा, मैं समझ गया कि भारत बूढ़ा क्यों हो गया है? इन्हीं गलत धारणाओं के कारण।

भारत को एक युवा आध्यात्म चाहिए, बूढ़ा आध्यात्म हमारे पास बहुत है। हमारे पास ऐसा आध्यात्म है, जो बूढ़ा करने की केमिस्ट्री है। हमारे पास ऐसी आध्यात्मिक तरकीबें हैं कि किसी भी जवान के आसपास उन तरकीबों का उपयोग करो, वह फौरन बूढ़ा हो जाए‌गा। हमने बूढ़े होने का राज खोज लिया है, सीक्रेट खोज लिया है। 

बूढ़े होने का क्या राज है?

बूढ़े होने का राज़ है: जीवन पर ध्यान मत रखो, मौत पर ध्यान रखो। यह पहला सीक्रेट है। जिंदगी पर ध्यान मत देना, ध्यान रखना मौत पर। जिंदगी को खोज मत करना, खोज करना मोक्ष की। 

इस पृथ्वी की फिक्र मत करना, फिक्र करना परलोक की, स्वर्ग की। यह बूढ़ा होने का पहला सीक्रेट है। जिन-जिन को बूढ़ा होना हो, इसको नोट कर लें। कभी जिंदगी की तरफ मत देखना। 

अगर फूल खिल रहा हो तो तुम खिलते फूल की तरफ मत देखना, तुम बैठकर सोचना कि जल्द ही यह मुरझा जाएगा। यह बूढ़े होने की तरकीब है।

अगर एक गुलाब के पौधे के पास खड़े हो तो फूलों की गिनती मत करना, कांटों की गिनती करना ।

अगर दिन और रात को देखो, तो कभी मत देखना कि दो दिन के बीच एक रात है। हमेशा ऐसा देखना कि दो रातों के बीच में एक छोटा-सा दिन है।

जहां फूल दिखाई पड़े, गिनती मत करना और फौरन सोच लेना क्या रखा है फूल में? क्षणभर को है, अभी खिला है, अभी मुरझा जाएगा। और कांटा स्थायी है, शाश्वत है, सनातन है, न कभी खिलता है, न कभी मुरझाता है। हमेशा है। इन बातों पर ध्यान देने से आदमी बहुत जल्दी बूढ़ा हो जाता है।

स्वामी रामतीर्थ ने लिखा कि वह बूढ़ा उसके बाद दस साल तक जीया और उसने चीनी भाषा में एक पुस्तक भी लिखी।
मनुष्य जन्म मिलना ही भाग्य की बात है। भले हम भगवान न बनें, पर अच्छा इन्सान तो बन सकते हैं। अच्छा इन्सान ही आगे चलकर महान बन सकता है। हर कोई अपने जीवन में महान बनना चाहता है।

SARAL VICHAR








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