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सीता स्वयंवर में अयोध्या नरेश को क्यों नहीं बुलाया गया , पूरी कथा | Shree Ram


अयोध्या नरेश को सीता स्वयंवर में आमंत्रित क्यों नहीं  किया | AYODHYA NARESH KO SITA SWANWAR ME AMANTRIT KYO NAHI KIYA ? - www.saralvichar.in


राजा जनक के शासनकाल में एक व्यक्ति का विवाह हुआ। जब वह पहली बार सज-संवरकर ससुराल के लिए चला, तो रास्ते में चलते-चलते एक जगह उसको दलदल मिला, जिसमें एक गाय फंसी हुई थी, जो लगभग मरने के कगार पर थी। उसने विचार किया कि गाय तो कुछ देर में मरने वाली ही है तथा कीचड़ में जाने पर मेरे कपड़े तथा जूते खराब हो जाएंगे, अतः उसने गाय के ऊपर पैर रखकर आगे बढ़ गया। जैसे ही वह आगे बढ़ा गाय ने तुरंत दम तोड़ दिया तथा शाप दिया कि जिसके लिए तू जा रहा है, उसे देख नहीं पाएगा, यदि देखेगा तो वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी।

वह व्यक्ति अपार दुविधा में फंस गया और गौ-शाप से मुक्त होने का विचार करने लगा। ससुराल पहुंचकर अनिष्ट से बचने के लिए वह दरवाजे के बाहर घर की ओर पीठ करके बैठ गया ! परिवार के अन्य सदस्यों ने उसको घर के अंदर चलने का काफी अनुरोध किया, किंतु वह नहीं गया और न ही रास्ते में घटित घटना के बारे में किसी को बताया।

उसकी पत्नी को जब पता चला, तो उसने कहा कि चलो, मैं ही चलकर उन्हें घर के अंदर लाती हूं। पत्नी ने जब उससे कहा कि आप मेरी ओर देखते क्यों नहीं हो तो भी वह चुप रहा। काफी अनुरोध करने के उपरांत उसने रास्ते का सारा वृतान्त कह सुनाया। पत्नी ने कहा कि मैं भी पतिव्रता स्त्री हूं। ऐसा कैसे हो सकता है। आप मेरी ओर अवश्य देखो। पत्नी की ओर देखते ही उसकी आंखों की रोशनी चली गई और वह गाय के शापवश पत्नी को नहीं देख सका।

पत्नी पति को साथ लेकर राजा जनक के दरबार में गई और सारा वृतांत कह सुनाया। राजा जनक ने राज्य के सभी विद्वानों को सभा में बुलाकर समस्या बताई और गौ-शाप से निवृत्ति का सटीक उपाय पूछा। सभी विद्वानों ने आपस में मंत्रणा करके एक उपाय सुझाया कि यदि कोई पतिव्रता स्त्री छलनी में गंगाजल लाकर उस जल के छींटे इस व्यक्ति की दोनों आंखों पर लगाए, तो गौ-शाप से मुक्ति मिल जाएगी और इसकी आंखों की रोशनी पुनः लौट सकती है।

राजा ने पहले अपने महल के अंदर की रानियों सहित सभी स्त्रियों से पूछा, तो राजा को सभी के पतिव्रता होने में संदेह की सूचना मिली। अब तो राजा जनक चिंतित हो गए। तब उन्होंने आस-पास के सभी राजाओं को सूचना भेजी कि उनके राज्य में यदि कोई पतिव्रता स्त्री है, तो उसे सम्मान सहित राजा जनक के दरबार में भेजा जाए।

जब यह सूचना राजा दशरथ (अयोध्या नरेश) को मिली, तो उसने पहले अपनी सभी रानियों से पूछा। प्रत्येक रानी का यही उत्तर था कि राजमहल तो क्या आप राज्य की किसी भी महिला यहां तक कि झाडू लगाने वाली, जो कि उस समय अपने कार्यों के कारण सबसे निम्न श्रेणी की मानी जाती थी से भी पूछेंगे, तो उसे भी पतिव्रता पाएंगे। राजा दशरथ को इस समय अपने राज्य की महिलाओं पर आश्चर्य हुआ और उसने राज्य की सबसे निम्न मानी जाने वाली सफाई वाली को बुला भेजा और उसके पतिव्रता होने के बारे में पूछा। उस महिला ने स्वीकृति में गर्दन हिला दी।

तब राजा ने यह दिखाने के लिए कि अयोध्या का राज्य सबसे उत्तम है, उस महिला को ही राज-सम्मान के साथ जनकपुर भेज दिया। राजा जनक ने उस महिला का पूर्ण राजसी ठाठ-बाट से सम्मान किया और उसे समस्या बताई। महिला ने कार्य करने की स्वीकृति दे दी। महिला छलनी लेकर गंगा किनारे गई और प्रार्थना की, ‘हे गंगा माता! यदि मैं पूर्ण पतिव्रता हूं तो गंगाजल की एक बूंद भी नीचे नहीं गिरनी चाहिए।

प्रार्थना करके उसने गंगाजल को छलनी में पूरा भर लिया और पाया कि जल की एक बूंद भी नीचे नहीं गिरी। तब उसने यह सोचकर कि यह पवित्र गंगाजल कहीं रास्ते में छलककर नीचे नहीं गिर जाए, उसने थोड़ा-सा गंगाजल नदी में ही गिरा दिया और पानी से भरी छलनी को लेकर राजदरबार में चली आई।

राजा और दरबार में उपस्थित सभी नर-नारी यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित रह गए तथा उस महिला को ही उस व्यक्ति की आंखों पर छींटे मारने का अनुरोध किया और पूर्ण राज सम्मान देकर काफी पारितोषिक दिया। जब उस महिला ने अपने राज्य को वापस जाने की अनुमति मांगी, तो राजा जनक ने अनुमति देते हुए जिज्ञासा वश उस महिला से उसकी जाति के बारे में पूछा। महिला द्वारा बताए जाने पर, राजा आश्चर्यचकित रह गए।

सीता स्वयंवर के समय यह विचार कर कि जिस राज्य की सफाई करने वाली इतनी पतिव्रता हो सकती है, तो उसका पति कितना शक्तिशाली होगा। यदि राजा दशरथ ने उसी प्रकार के किसी व्यक्ति को स्वयंवर में भेज दिया, तो वह तो धनुष को आसानी से संधान कर सकेगा और उनकी राजकुमारी किसी निम्न श्रेणी के व्यक्ति को न वर ले।

इस वजह से राजा जनक ने अयोध्या नरेश को सीता के स्वयंवर मे निमंत्रण नहीं भेजा। किंतु विधाता की लेखनी को कौन मिटा सकता है। अयोध्या के राजकुमार वन में विचरण करते हुए अपने गुरु के साथ जनकपुर पहुंच ही गए और धनुष तोड़कर श्री राम ने सीता को वर लिया।

SARAL VICHAR


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