नकारात्मक अनुभव
हो सकता है कि बच्चों ने पहले साझा करने या किसी के साथ घुलने-मिलने के दौरान कोई नकारात्मक अनुभव किया हो।
बच्चों को ऐसे अवसर दें जहां वे दूसरों के साथ अपनी चीजें साझा कर सकें, जैसे कि खेल, पार्टी या पारिवारिक गतिविधियां।( Family activities).
डिजिटल दुनिया का प्रभाव: कितना नुकसान ?
अगर बच्चे लोगों से घुले-मिले नहीं, रिश्तों से दूर भागें तो आने वाले समय में उन्हें अकेलेपन से लड़ना पड़ सकता है। यह अकेलापन कई अन्य बुरी आदतों जैसे ज्यादा वीडियो गेम खेलना, सोशल मीडिया की लत में बदल जाता है। डिजिटल गेम्स और सोशल मीडिया बच्चों को वास्तविक दुनिया से दूर कर सकते हैं, जिससे वे दूसरों के साथ बातचीत करने में कम रुचि रखते हैं। इससे भी आगे बढ़ने पर नशे की आदतों में भी तब्दील हो सकता है। ऐसे बच्चे लोगों पर भरोसा भी नहीं कर पाते।
रिश्ते देंगे बहुत कुछ... परिवार के माहौल का प्रभाव
अगर बच्चों के माता-पिता या परिवार के सदस्य भी दूसरों से ज्यादा दूरी बनाकर रहते हैं, तो बच्चों में भी वही व्यवहार आने की संभावना होती है। परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताने के लिए खुद को एक अच्छा उदाहरण बनाएं।
वहीं जो बच्चा लोगों से मिलता जुलता है, रिश्तेदारों के बीच रहता है उसके अंदर व्यक्तित्व के कुछ खास गुण विकसित होते हैं, जैसे -लोगों का अभिवादन करना, बड़ों के सामने तर्कपूर्ण बात रखना, अच्छा व्यवहार, दोस्त बनाने की काबिलियत बेहतर संवाद कौशल,(communication ), रिश्तों को निभा पाना, लोगों को साथ लेकर चलना इत्यादि।
मिलकर सुलझाएं समस्याएं- आमतौर पर बच्चे रिश्तों को तब नहीं समझते जब उनके अंदर रिश्तों के प्रति भरोसा नहीं होता। इसी कारण वे दूर भागते हैं। इस भरोसे को भरने के लिए शुरुआत अभिभावक को घर से करनी होती है। जब बच्चा मां-पिता पर पूरा भरोसा और सम्मान करता है तो वह बाहर के लोगों से जुड़ने के लिए भी तैयार होता है। इसका आसान तरीका यह है कि बच्चों की किसी भी शिकायत या समस्या को सुनकर अनसुना न किया जाए बल्कि उसका साथ देकर उसका निदान किया जाए। जैसे बच्चा मां के पास आकर कहे कि मेरा खिलौना नहीं मिल रहा है, क्या आपको पता है? इस पर अक्सर जवाब होता है कि नहीं पता, अभी मुझे परेशान मत करो। खुद ढूंढो। यह तरीका गलत है। यहां जबकि माता को बच्चे को सांत्वना देते हुए खिलौना ढूंढने में मदद करनी चाहिए। और जब वह खिलौना मिल जाएगा, तब उस बच्चे की खुशी और आत्मविश्वास बढ़ जाएगा।
प्रेरणा हमेशा काम आएगी- घर से बाहर जब भी जाएं बच्चे को भी ले जाएं। इससे उसकी आदत में ही घुलना-मिलना आएगा। यदि थोड़ा छोटा बच्चा है तो उसकी कोई छोटी-मोटी पसंद का लालच देकर भी प्रेरित कर सकते हैं। पर ध्यान रखें लालच हर बार नहीं होना चाहिए।
सकारात्मक माहौल- बेहतर परवरिश के लिए सकारात्मक माहौल भी जरूरी है। सकारात्मक यानी की आपकी बातों में किसी के लिए भी नकारात्मकता न हो, कम से कम बच्चों के सामने तो बिलकुल न हो। घर में अक्सर माता-पिता परिवार के लोगों की बुराई करते हैं। ये बातें जब बच्चे सुनते हैं तो वे भी बाहरी लोगों के प्रति मन में छवि बनाते हैं। ऐसे में जिनकी वे बुराई सुन रहे हैं उनसे जुड़ाव बनाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों के सामने किसी भी रिश्ते की बुराई न करें। आप अपने रिश्तों की खटास को बच्चे के जीवन में न उतरने दें।
तय करें मन का माहौल मिले- बच्चों को उनके मन का माहौल नहीं मिलेगा तो वे एक बार के बाद दोबारा न तो आपके साथ कहीं जाएंगे और न ही किसी से मिलना पसंद करेंगे। यह बात हर किसी पर लागू होती है। इसके लिए आवश्यक है कि आप उन्हें वहीं ले जाएं जहां उन्हें अच्छा लगे या उनकी उम्र के दोस्त आदि आएं। इसी से जब मन लगेगा तो वे स्वयं भी रिश्तों में जुड़ना व उन्हें निभाना सीखेंगे।
पेशेवर सहायता लें-
अगर बच्चे के व्यवहार में बदलाव नहीं आ रहा है, तो एक विशेषज्ञ से सलाह लेना महत्वपूर्ण है।
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